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राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना

२१२२   ११२२   ११२२  २२/११२

वक़्त ये चलता है चलते हुए सूरज की तरह 

तन मेरा जलता है जलते हुए सूरज की तरह 

रोशनी इल्म की दुनिया में तभी बिखरेगी 

तम को निगलोगे निगलते  हुए सूरज की तरह

जुल्फ की छांव तले शाम गुजारो अपनी 

अब्र में छुप के बहलते हुए सूरज की तरह 

राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना 

कितने फिसले हैं फिसलते हुए सूरज की तरह 

अब्र की छांव में हर रोज छुपाकर खुद को 

इक कमर ने छला छलते हुए सूरज की तरह 

चाँदनी शब् में हैं जीने के बसर जो आदी

उनको खलते दिए खलते हुए सूरज की तरह

काम कुछ करना हो आशू तो यकीनन करना

चीर के तम को निकलते हुए सूरज की तरह

मौलिक व अप्रकाशित  

 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 9, 2015 at 12:30pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आदरणीय विजय सर ...आप सबके मार्गदर्शन , हौसला अफजाई और मार्गदर्शन से मुझे रचना धर्मिता की नूतन उर्जा मिल्ती है ..सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 9, 2015 at 12:29pm

आदरनीय नूर जी रचना को आपका स्नेह मिला मेर लिए उत्साह्वार्धक है ''सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:22am

 सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:17pm

आ. आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:59pm

वाह वा..बहुत ख़ूब 

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 7:08pm

काम कुछ करना हो आशू तो यकीनन करना

चीर के तम को निकलते हुए सूरज की तरह,,,,,,बढिया सन्देश ,,आ. इस खूबसूरत गजल पर आपको आपके अनुज का प्रणाम |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 5:20pm

आदरणीय श्याम नारयण जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 5:19pm

आदरणीय गोपाल सर.. प्रयास मैं यू ही करता रहूँगा बस आपका आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहे ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 5:18pm

आदरणीय समर कबीर जी ..मैंने अपने समझ के अनुरूप लिखा ..तकनीकी रूप से ये गलत हो सकता है ..बचपन में सीमेंट की बने स्लोप को हम फिसलनी कहते था ..वाटर पार्क में  भी कुछ ऐसा देखा ..फिसलनी के अर्थ के सन्दर्भ में मैंने फिसलन का उपयोग किया ..आसमान से सूर्या का सागर में गिरना पानी के छोटे से टैंक में जाता मेरा वो सीमेंट का स्लोप लगा ..और मैंने यह लिखा ..अगर गलत है तो मैं इस शेर को हटा दूंगा ..आपके मशविरे और प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर .

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 4:12pm

// काम कुछ करना हो आशू तो यकीनन करना
चीर के तम को निकलते हुए सूरज की तरह // । वाह , बहुत उम्दा पंक्तियाँ , बधाई क़ुबूल करें आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी.

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