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"अरे ताऊ इलेक्शन आ गए हैं, इस बार वोट किस को दे रहे हो ?"
"अरे हमें तो अभी ये ही नहीं पता कि इस बार ससुरा खड़ा कौन कौन है।"
"एक तो वही कुर्सी पार्टी वाला है।"
"अरे वो चोर ? छोडो, साले पूरा देश लूट कर खा गये।"
"नई पार्टी वाला भी खड़ा है।" 
"कौन ? वो जो आपस में लोगों को लड़ाता फिरता है? दफ़ा करो उसको।"
"एक नीली पार्टी वाली भी है न।"
"उसको वोट दे दिया तो पीछे वाली बस्ती सर पर मूतेगी हमारे।"
"तो फिर कामरेडों को वोट किया जाए?"
"कौन वो ज़िंदाबाद मुर्दाबाद वाले? अरे वो तो होम्योपैथी की दवाई जैसे हैं - न कोई फायदा न नुकसान।"
"तो आख़िर वोट डालोगे किस को ?"
"हम तो अपनी जात वाले को ही डालेंगे, वोट ख़राब थोड़े न करना है।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 2, 2016 at 10:15pm
वाह । क्या बात कह दी सर । बहुत ही बढ़िया कथा हुई है । बधाई स्वीकारें आदरणीय ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 8, 2016 at 1:30pm
बेहतरीन शीर्षक से बेहतरीन पंचपंक्ति तक सहज संवाद युक्त वास्तविकता को शाब्दिक करती लघुकथा सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी। हम सदैव आभारी रहेंगे आपकी इन मार्गदर्शक लघुकथाओं के प्रति।
Comment by Pawan Jain on June 8, 2016 at 12:54pm

बधाई कहूं या आभार उदाहरण के लिए प्रयुक्त सभी दृष्टिकोण से बेहतरीन कथा हेतु।सादर।

Comment by kanta roy on June 16, 2015 at 11:35pm
वाह ! क्या बात बनी है यहाँ ..... हम भी यहाँ पढते हुए कि वोट किसे देना चाहिए यह सीखने को उद्धृत हुए कि अचानक ही धरातल पर औंधे गिर पड़े पढते हुए , बेहतरीन कथा सर जी नमन आपको

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:07am

आदरणीय योग राज भाई , तमाम वोटरों की अच्छी ख़बर ली आपने , और कामरेड ... क्या बात है । हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Rita Gupta on June 4, 2015 at 11:03pm

लघु कथा में शीर्षक का विशेष महत्त्व रहता है ,ये बात आप हमलोगों को कई बार बता चुके हैं .इस रचना में यह प्रत्यक्ष प्रमाणित कर रही है . शीर्षक ही कथा का सार बन गया है .एक ख़ूबसूरत कृति हेतु बधाई सर .

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 3, 2015 at 10:53pm
लाजवाब। आद: योगराज सर, एक करारी चोट आज के वोटरस यानि की हम भारतीयो लोगो पर जो राजनैतिक पार्टियो का पोस्टमार्टम करती करती आखिर घूम फिर कर अपनी जाति के उम्मीदवार पर निहाल हो जाती है। ..... अनमोल कृति के लिये सादर बधाई स्वीकार करे।
Comment by Shyam Narain Verma on June 3, 2015 at 5:04pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by Shubhranshu Pandey on June 3, 2015 at 1:59pm

आदरणीय योगराज जी, 

//"कौन वो ज़िंदाबाद मुर्दाबाद वाले? अरे वो तो होम्योपैथी की दवाई जैसे हैं - न कोई फायदा न नुकसान।"//

कामरेडो का इस तरह का विश्लेषण कम ही किया गया होगा. 

बहुत सुन्दर कथा. 

सादर


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Comment by rajesh kumari on June 3, 2015 at 12:21pm

बात वही पुरानी है किन्तु प्रस्तुतीकरण ,वार्तालाप ,शब्द कौशल्य ...कमाल के हैं अंतिम पंक्ति भारत भाग्य की भारत सिस्टम की बखिया उधेड़ती है ..मुझे याद है मैं बहुत छोटी थी तब मेरी एक चाची ने मनमर्जी चलाते हुए दूसरी जाती के उम्मीदवार को वोट दिया था घर में जो प्रलय आई थी आज भी वो याद है .दिल से बहुत- बहुत बधाई आदरणीय योगराज जी इस प्रस्तुति पर.  

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