For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2017 Blog Posts (104)

बढ़ता धुआं- लघुकथा

खाला अपने रसोई में लगी हुई थीं, अब रमजान महीने के बस दो ही दिन तो बचे थे और अलीम बड़के शहर से आज ही आ रहा था. सबेरे सबेरे उन्होंने पड़ोसी मियां की दूकान से एक बार फिर लगभग गिड़गिड़ाते हुए सामान ख़रीदा था. अभी पिछले महीने का भी पूरा पैसा दिया नहीं था उन्होंने तो उम्मीद कम ही थी कि सामान मिल ही जायेगा. लेकिन एक तो उन्होंने बेटे के आने की खबर सुना दी थी और दूसरे आने वाली ईद, मियां ने थोड़े ना नुकुर के बाद सामान दे दिया.

"देखो खाला, इस बार अगला पिछला सब हिसाब चुकता हो जाना चाहिए, मेरे भी बाल बच्चे…

Continue

Added by विनय कुमार on June 24, 2017 at 1:03pm — 10 Comments

ग़ज़ल - तेरी महफ़िल में दीवाने रहेंगे

1222 1222 122



शमा के पास परवाने रहेंगे ।

तेरी महफ़िल में दीवाने रहेंगे ।।



तुम्हारी शोखियाँ कातिल हुई हैं ।

तुम्हारे खूब अफ़साने रहेंगे ।।



बना देंगे नया इक ताज़ हम भी ।

हमें जब हाथ कटवाने रहेंगे ।।



तुम्हारी बज्म में आता रहूँगा ।

खुले जब तक ये मैखाने रहेंगे ।।



जिसे है फिक्र दौलत की नहीं अब ।

उसी के साथ याराने रहेंगे ।।





तुम्हारी शोखियाँ कातिल हुई हैं ।

तुम्हारे खूब अफ़साने रहेंगे ।।



बड़ा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 24, 2017 at 11:15am — 2 Comments

अनुभव-धारा

सांसारिक स्वार्थग्रस्त प्रक्रियाओं से घबराकर

मुझसे ही कतराकर

चल बसी थी अकुलाती मेरी आस्था

उसके अंतिम संस्कार से पहले

टूटे विश्वास से फूटी तो थी रक्तधार

पर यह तो सदियों पुरानी बात है

समझ में न आए

कुलाँचते ख्यालों की अदृश्य रगों में

आज इतनी तपिश क्यूँ है

यादों के घावों को चोंच मार

छील गया कोई कैसे

कब से यहाँ जब कोई पास नहीं है

मेरी ही आन्तरिक कमज़ोरी को जानकर

तकलीफ़ भरे धूल…

Continue

Added by vijay nikore on June 24, 2017 at 7:30am — 19 Comments

'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते...तत्र..!' (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

परिपक्व कहे जाने वाले या माने जाने वाले लोकतंत्र की हथेली पर बैठी बेहाल नारी पांचों उंगलियों पर दया दृष्टि डाल रही थी। किसी में उसे परेशान जनता नज़र आ रही थी, तो किसी में मीडिया। बाकी उंगलियों में उसे लोकतंत्र की स्तंभ​ कही जाने वाली विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका नज़र आ रही थी, परेशान और भौचक्की सी।



"हे भारतीय नारी, क्षमा प्रार्थी हूं। समानता, सबलता, सशक्तिकरण करने के तमाम प्रयासों के बावजूद हम तेरी आबरू नहीं बचा पा रहे!" सभी की उदास, रोती सी शक्लें यही बयां कर रहीं… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 23, 2017 at 7:30pm — 8 Comments

पीते हैं ...

पीते हैं ...

सब 

कुछ न कुछ

पीते हैं //



रजनी

सांझ को

पी जाती है

और सहर

रजनी को

फिर सांझ

सहर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //

अंत

आदि को

पंथ

पथिक को

संत

अनंत को

घाव

भाव को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //



नयन

नीर को

नीर

पीड़ को

समय

प्राचीर को

सरोवर

तीर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 7:22pm — 4 Comments

ऐडवर्स रिपोर्ट(लघु कथा )

 मैं पहुंचा ही था कि मुझे अपने घर से दो अजनबी लड़के निकलते हुए दिखाई दिए. इससे पहले कि मैं उनकी बाबत कुछ जान पाता. वे बाईक पर बैठकर रफ्फूचक्कर हो गये.

दरवाजे पर बेटा खडा था. मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया कि डोमेस्टिक गैस सर्विस’ से आये थे .यह वही गैस सर्विस थी जहां से मेरे घर एल पी जी सिलिंडर आता है.

‘क्यूँ आये थे ?’- मैंने यूँ ही पूंछ लिया.

‘अपना गैस स्टोव चेक करने आये थे ?’

‘ स्टोव-------मगर क्यों ?’ मैं हैरत में पड़ गया –‘ जब चूल्हा…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 7:09pm — 6 Comments

सौगंध के बंधन ....

सौगंध के बंधन ....

मुझे

सब याद है

समय की गर्द में

कुछ भी तो नहीं छुपा

न तुम

न तुम्हारी

आँखों में आंखें डालकर

सात जन्मों तक

साथ निभाने की

सौगंध

चलते रहे

चलते रहे

साथ साथ

इक दूजे के दिल में

पुष्प भाव से गुंथे हुए

अर्थपूर्ण तृषा

और अर्थपूर्ण तृप्ति की

अभिलाष के साथ

इक दूसरे  के

अंतर्मन को छूते हुए

कब यथार्थ की नदी पर

एक किनारे ने

दूसरे किनारे को जन्म…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 4:21pm — 8 Comments

गजल(क्या करेगा...)

2122 2122 212

---------------

क्या करेगा माँद का मारा हुआ

बन गया मुजरिम अभी हारा हुआ।1



लोग कसते फब्तियाँ,बेजार वह

'लाल' कल का आज बेचारा हुआ।2



मौसमों की मार खाकर शीत जल

पर्वतों से भी ढुलक खारा हुआ।3



दी हवा जब,थरथरायीं चोटियाँ,

छटपटाता आज,नक्कारा हुआ।4



बंदगी में थे खड़े सब लोग तब

अब ठिठोलीबाज जग सारा हुआ।5



जो मिली कुर्सी,सलामत भी रहे

हर दिशा में आज यह नारा हुआ।6



सीढियाँ दी तोड़ जब ऊपर… Continue

Added by Manan Kumar singh on June 23, 2017 at 8:53am — 3 Comments

अनकहा ...

अनकहा ...

कुछ तो

रहने दिया होता

मन की कंदराओं में

करवटें लेता

कोई भाव

अनकहा

क्या

ज़रूरी था

स्मृति पृष्ठ की

यादों को

नयन तीरों का

पता देना

आखिर

पता लग गया न

ज़माने को

सब कुछ

जो दबा के रखा था

दिल में

इक दूजे से

बांटने के लिए

सांझा दर्द

अनकहा

सांझ

कब तलक

तिमिर को रोकती

प्रतीक्षा की रेशमी डोरी

प्रभात की तीक्षण रश्मियों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2017 at 3:25pm — 8 Comments

ग़ज़ल ---झुकी झुकी सी नज़र में देखा

-----**** ग़ज़ल ***------



121 22 121 22 121 22 121 22



झुकी झुकी सी नज़र में देखा ,

कोई फ़साना लिखा हुआ है ।।

ये सुर्ख चेहरा बता रहा है

के दिल का मौसम जुदा जुदा है ।।



------------------------------------------------



फ़िजा की सूरत बदल रही है ,

अजीब मंजर है आशिकी का ।।

हैं मुन्तजिर ये सियाह रातें ,

वो चांद कितना ख़फ़ा खफ़ा है ।।



-----------------------------------------------



तमाम शिकवे गिले हुए हैं ,

तमाम… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 21, 2017 at 1:49pm — 15 Comments

लघु कथा

लघु कथा

खिलते गुलाब



आज बैंक की छुट्टी होने से रोहित घर पर ही था । पड़ोसी वर्मा जी के घर चहल पहल देख कर उसने माँ से पूछा , उन्होंने बताया आज उनकी बेटी का रिश्ता पक्का करने कुछ लोग आ रहे है । ये सुनते ही वो उदास हो गया ,जूही और वो एक दूसरे को शुरू से पसंद करते थे ।

अब जब उसकी नौकरी लग गयी थी तो उसने सोचा था ,माँ को अपनी पसंद बता देगा । जूही भी अपनी माँ को कुछ बता नहीं पायी थी ।वो दिनभर अनमना ही रहा ।

चार बजे तक पड़ोस से आवाज़ें आती रही । फिर सब शांत हो गया । थोड़ी देर… Continue

Added by Barkha Shukla on June 21, 2017 at 1:13pm — 3 Comments

लल्ला गया विदेश.

लल्ला गया विदेश

© बसंत कुमार शर्मा

 

जाने क्यों अपनी धरती का,

जमा नहीं परिवेश.

ताक रही दरवाजा अम्मा,

लल्ला गया  विदेश.

 

खेत मढैया बिका सभी कुछ,

हैं जेबें  खाली.

बैठी चकिया पीस रही है,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2017 at 6:55pm — 4 Comments

विरासत (लघुकथा )

   

विरासत (लघुकथा )

सुबह पढ़ी कहानी से महेंद्र बहुत प्रभावित हुए |

वह चाहते थे कि घर का हर सदस्य भी इसे पढ़ें क्यूंकि इस कहानी में लेखक ने जो बताने की कोशिश की है |

वे आज के दौर के बारे में है जो हमारी आने वाली जिंदगी  को कैसे प्रभावित करेगी के बारे में है |

घर के सदस्य टेलीविज़न देख रहे हैं |

मगर सब से छोटी लड़की सौफे पे बैठी पढ़ रही है |

महेंद्र इस कहानी को पढ़ने के लिए, उसे देना चाह रहा है |

क्यूंकि के उसकी लाइब्रेरी में कई किताबें हैं, मगर वे सब…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on June 19, 2017 at 3:30pm — No Comments

पश्चिम का आँधी

पश्चिम की आँधी

 

पश्चिम की आँधी शहरों से,

गाँवों तक आई.

देख सड़क को पगडंडी ने,

ली है अँगड़ाई.

 

बग्गी, घोड़ी छोड़ कार में,

बैठा है दूल्हा.

नई बहुरिया माँग रही है,

तुरत गैस चूल्हा.…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2017 at 4:30pm — 2 Comments

52 शेर की ग़ज़ल।

-------ग़ज़ल -------

2122 1212 22

बात तुम भी खरी नही करते ।

काम कोई सही नही करते ।



चोट दिल पर लगी है फिर उसके ।

काम ये मजहबी नहीं करते ।।



जब से अफसर बना दिया कोटा ।

बात अच्छी भली नहीं करते ।।



दोस्तों की किसी तरक्की में ।

यूँ मुसीबत खड़ी नहीं करते ।।



जिंदगी पर यकीन है जिनको । वो कभी खुदकुशी नहीं करते ।।



कुछ तो खुन्नस बनी रही होगी ।

बेसबब बेरुखी नहीं करते ।।



पेंग गर प्यार की बढ़ानी है ।

प्यार में… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2017 at 12:00am — 4 Comments

पिता (पितृ दिवस विशेष)

पिता संबल है , सहारा है ,
पिता आहुति है , उजियारा है ।
पिता साहस है , आधार है ,
पिता ग़लतियों पर वार है ।
पिता बच्चों का संसार है ,
पिता कुसंग को ललकार है ।
पिता समाज पर उपकार है ,
पिता सच्चाई की पुकार है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on June 17, 2017 at 10:58pm — 4 Comments

ग़ज़ल -- मैं आँखों में सपने बोना चाहता हूँ

22--22--22--22--22--2



बच्चों के मन जैसा होना चाहता हूँ

बे-फ़िक्री की नींदें सोना चाहता हूँ



दुनिया के मेले में खो कर देख लिया

अब मैं ख़ुद के भीतर खोना चाहता हूँ



राग द्वेष ईर्ष्या लालच को त्याग के मैं

रूह की मैली चादर धोना चाहता हूँ



प्यार का सागर है तू मैं प्यासा सहरा

अपनी हस्ती तुझ में डुबोना चाहता हूँ



जीवन व्यर्थ गँवाया, दिल पर बोझ है ये

ख़ुद से नज़र चुरा के रोना चाहता हूँ



गीली मिट्टी है, शायद जड़ पकड़ भी… Continue

Added by दिनेश कुमार on June 17, 2017 at 1:34pm — 4 Comments

किस्सा (कविता)

किस्सा
............

जिंदगी सपनों का संसार हुई.
आँखें जब से उन से चार हुई.
.
महकी इश्क की खुश्बू बहुत
दास्तानें सारी अखबार हुई.
.
याद करने का अंदाज देखो
हचकियाँ चिट्ठी पत्री तार हुई.
.
आफत में अब दिल आ गया
तेज धड़कनों की रफ्तार हुई.
.
सिलसिला कसमों का चला
रस्में ऊँची जब दीवार हुई.
.
हकीकत जमानें से बस यही
मुहब्बत किस्सों में साकार हुई.
.
(सुरेश बीनागंजवी)

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by suresh jadav 'Binaganjvi' on June 17, 2017 at 2:00am — 4 Comments

जिंदगी (कविता)

जिंदगी

...........



वक्त की रेत हाथों से, कुछ यूं फिसल गई.

जिंदगी समझे जब तक, जिंदगी निकल गई.

.

किया था वादा ता-उम्र, इमदाद का उसने

मुश्किलों मे किस्मत की भी, नीयत बदल गई.

.

बेमन उदास बैठी थी, तन्हाई में जब शाम

आमद जो उसकी हुई तो, तबियत बहल गई.

.

दुनिया की बंदिशों का, हमें इल्म है मगर

उसे पाने की फिर भी, ख्वाहिश मचल गई.

.

तूफां का जुनून 'सुरेश', काबिले तारीफ था

हौंसलों की जद्दोजहद से, कश्ती संभल…

Added by suresh jadav 'Binaganjvi' on June 17, 2017 at 1:57am — 3 Comments

कागज़ की नाव :कहानी

“यार अच्छी-खासी नौकरी है तुम्हारी ये दिन रात इंटरनेट और मोबाइल पर क्या खेल खेलते रहते हो, थोड़ा हम लोगों के पास भी बैठा करो, पिता ने बड़ी ही मित्रतापूर्वक भाव से ‘आनंद’ से पूछा !

आनंद ने अपना लैपटॉप बंद करते हुए बड़े ही सहज भाव से कहा “कुछ नहीं पिताजी आपकी समझ से बाहर है यह सब, जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊँगा तब आपको अपने आप पता चल जाएगा !”

पिता अपना सा मुहँ लेकर खामोश हो गए तभी आनंद की माँ आ गईं और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, बेटा सबकुछ तो ठीक चल रहा है, अच्छी खासी तन्खाव्ह है…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on June 16, 2017 at 3:30pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
45 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
48 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
11 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service