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March 2015 Blog Posts (229)


सदस्य कार्यकारिणी
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ

2122 1212 112/22

जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ

लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ

 

तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे

ये समझना तू बेनज़ीर हुआ

 

जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ

ये खबर है कि मैं फकीर हुआ

 

बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़

सो निशाने पर अब के तीर हुआ

 

तंग हाली ज़बाँ से झाँके है

कौन कहता है वो अमीर हुआ

(मुशीर-सलाहकार,  असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 3:32pm — 26 Comments

ग़ज़ल : एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२



रूह को सब चाहते हैं जिस्म दफ़नाने के बाद

दास्तान-ए-इश्क़ बिकती खूब दीवाने के बाद

शर्बत-ए-आतिश पिला दे कोई जल जाने के बाद

यूँ कयामत ढा रहे वो गर्मियाँ आने के बाद

कुछ दिनों से है बड़ा नाराज़ मेरा हमसफ़र

अब कोई गुलशन यकीनन होगा वीराने के बाद



जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर

फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद



एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई

और क्या कहने को रहता है…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 18, 2015 at 2:30pm — 32 Comments

श्रृंगारिक ग़ज़ल - कमसिन उमरिया

212 212 212 212

 

कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी

दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी

 

ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी 

नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी

 

फूल बन के खिली गुलबदन ये कली 

आरजू फिर महक की जवां हो गयी

 

प्यार की बात हमने छुपाई बहुत

लोग सुनते रहे दासतां हो गयी

 

होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए

कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी

 

दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”

आज मन की…

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Added by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:30pm — 32 Comments

आवरण

           

आवरण कितने गाढ़े ,कितने गहरे

कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे

नकाब ही नकाब बिखरे हुए

दुहरे अस्तित्व हर तरफ छितरे हुए  

कहीं हँसी दुख की रेखायें छिपाए है

तो कभी अट्टहास करुण क्रन्दन दबाए है

विनय की आड़ लिये धूर्तता

क्षमा का आभास देती भीरुता

कुछ पर्दे वक़्त की हवा ने उड़ा दिये

और न देखने लायक चेहरे  दिखा दिये

आडम्बर को नकेल कस पाने का हुनर

मुश्किल बहुत है मगर

कुछ चेहरों में फिर…

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Added by Tanuja Upreti on March 18, 2015 at 1:30pm — 2 Comments

आज़ादी

मन के कमरे में कैद हमारे भाव विचार

बने वाणी के मोती ,कलम की बहती धार

सुवासित हो फ़िज़ा ,पढ़े सुने संसार

बुने सतरंगी सपने,बरसे प्यार की फुहार

डूबे खुश्बुओं में ,सुगन्धित हो बहार

खुशिओं के फूटे झरने ,भीगें बार -बार

मिले जीने की उमंग,सपना हो साकार

भूल सारे गम ,नव अंकुर का आधार

चाहतों की संतुष्टि ,आशीष से सरोबार

खुले परिचय के द्वार ,जुड़ा नया परिवार

धन्य हो गए हम ,दिलों के जुड़े तार

भूल जोड़ बाकी का गणित ,मिला जीने का…

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Added by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:50am — 12 Comments

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

1 धन बल का मद 

धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन

दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |

हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया

सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया

सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के

थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के | 

(2) दुर्लभ मानव जीवन 

मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,

तन मन धन हमको…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 11:30am — 11 Comments

दीवारों में दरारें -3(सोमेश कुमार )

दीवारों में दरारें-3 

मीना की अध्यापिका पद  पर नियुक्ति के बाद

"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है | “आशा ये सन्देशा देकर चली जाती है |

रूम में पहुँचने पर |

“आ गई बेटा |” सुनीता दलाल की नानी पुष्पा ने मीना गौतम को देखकर कहा |

सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी और लंच में गर्मागर्म खाना उसके लिए लेकर आ गईं थी |

“इसकी क्या ज़रूरत थी,नानीजी ,मैं तो इसके लिए भी रोटियाँ लाई हूँ |”मीना ने…

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Added by somesh kumar on March 18, 2015 at 10:30am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - घी डालना होगा................ (मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा

यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।

 

कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन

बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो  देखना होगा।

 

हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब

कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।

 

किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन

सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।

 

लड़ाई कौम की खातिर, करो…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 4:30am — 31 Comments

गजल ,वो मुझे एकटक देखती रह गई

हाथ पर उसके ठोडी टिकी रह गई
वो मुझे एकटक देखती रह गई

वो हवा हो गई एक पल में कंही
मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई

मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,
जिंदगी कट गई बेबसी रह गई

आपकी याद जिंदा जलाई मगर,
आँधियाँ फिर चलीं,अधजली रह गई

सच का सूरज उजाला बहुत भर गया,
रात आईं मगर रोशनी रह गई

सूबे सिंह सुजान
मौलिक व प्रकाशित

Added by सूबे सिंह सुजान on March 17, 2015 at 11:38pm — 13 Comments

गजल

रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण ओ बी ओ नियमों के आलोक में प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है.

एडमिन 

२०१५०३१९०७ 

Added by Naveen Mani Tripathi on March 17, 2015 at 9:00pm — 16 Comments

अमीर खुसरो की काव्य रचना का हिन्दी-कविता मे भावानुवाद

        अमीर खुसरो की रचना

 

जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।

कि ताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।

शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।

सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।

यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।

किसे पड़ी…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 17, 2015 at 4:00pm — 23 Comments

चाहिये गंगा नहाना जा नहाते गंदगी में ,

२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम
छोड़ कर आतंक का दर नेक कोई काम करते |
जान  लेने  के सिवा सारे जहाँ में नाम करते |
लोग जो आये जहाँ में  चाँदनी सब के लिए है ,…
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Added by Shyam Narain Verma on March 17, 2015 at 3:03pm — 14 Comments

मिलन की आस - मुक्त कविता

तुझसे मिलन के इंतज़ार में 

बसाया था बलम

तेरी छवि को यादों में

तेरी प्रीत को ख्वाबो में

करवटों को बाँहों में 

और

सिलवटों को रातों में

 

तुझको पाने की प्यास में

सीखा था सनम

गीतों को गाना

नृत्य को जीना

शराब को पीना

और

ज़ख्मों को सीना

 

तुझसे मिलन की आस पिया 

और सजाया था

कजरा आँखों में

गजरा बालों में

नखरा गालों पे

और

मदिरा होठों…

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Added by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 11:42am — 11 Comments


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ग़ज़ल - तितलियाँ परीशाँ हैं ( गिरिराज भंडारी )

212    1222         212      1222

क्या हुआ यहाँ पर कल , क्यूँ उदास मौसम है

तितलियाँ परीशाँ हैं , क्यूँ गुलों में भी ग़म है

 

कितनी प्यारी लगतीं हैं , ये गुलाब की कलियाँ

और बर्गे गुल में वो , सो रहा जो शबनम है 

 

अपनी क़िस्मतों मे तो , सिर्फ ये सराब आये 

क़िस्मतों में कुछ के ही, सिर्फ़ आबे जम जम है

 

जगमगाती खुशियों की , नीव कह रही है ये  

कुछ घरों में तारीक़ी , कुछ घरों में मातम है

 

आइने के गावों में…

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Added by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:42am — 39 Comments

जिद्द की दीवार - लघुकथा

जिद्द की दीवार

           पड़ोस के जोशीजी की छोटी बेटी माला फिर मायके लौट आयी थी, बड़ी बेटी कामना पहले ही पति से संबंध विच्छेद के बाद घर में विराजमान थी। जोशीजी बेटियो की जिद्दी स्भाव के चलते चिन्तित रहते थे तो उनकी पत्नी बेटियो के ससुराल वालो को भला-बुरा कहकर अपना मन शान्त कर लेती थी। दिन गुजरने के साथ बूढे माँ बाप की उम्र का ग्राफ बढ़ रहा था और बेटियो की जवानी ढल रही थी।

लेकिन एक शाम छोटा दामाद रवि, अचानक अपनी पत्नि को लिवाने आ पहुँचा तो घर में सभी के चेहरे खिल गये। माला भी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 17, 2015 at 8:30am — 17 Comments

भँवरा........'इंतज़ार'

भँवरा हूँ ......
फूल दर फूल घूमना आदत मेरी
हर फूल को चूमना चाहत मेरी
फूल कहाँ पहचानते हैं मुझे
मेरे जैसे कई आते हैं हर रोज़ 
बिन बुलाये यहाँ !
मेरी तो फ़ितरत है
नये मन्ज़र ढूँढ़ना
रुक तो तभी पाऊंगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ा जाऊंगा
वर्ना उड़ता उड़ता
बहुत दूर निकल जाऊंगा.........

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:30am — 10 Comments


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ग़ज़ल - गज़ब का छा रहा हूँ मैं (मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

ग़ज़ल से पा रहा हूँ मैं, ग़ज़ल ही गा रहा हूँ मैं

ग़ज़ल के सर नहीं बैठा, ग़ज़ल के पा रहा हूँ मैं

 

किसी की नीमकश आँखों का तारा हूँ जमानों…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 16, 2015 at 11:00pm — 35 Comments

जिंदगी को सौ बार जिया होता --डॉo विजय शंकर

इक बार जिंदगी में प्यार किया होता

खोने का मजा भी आ गया होता ,

जिंदगी भर जोड़ते रहे योगी बन के

कुछ बाँट दिया होता कुछ भोग लिया होता ,

रिश्तों को , दोस्तों को , तराजू पे तौलते रहे

कभी तो तराजू को आराम दिया होता ,

दुनिया कुछ नहीं , इक खूबसूरत नज़ारा है

जी भर के इसको , देख लिया होता ,

कुछ कह लिया होता ,कुछ सुन लिया होता

कुछ खो दिया होता ,कुछ पा लिया होता ,

कुछ भी तो साथ यहां से जाता नहीं

जो कुछ था यहीं , भुना लिया होता ,

जिंदगी को नसीहतें… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 9:10pm — 28 Comments

रात की रानी : नवगीत : हरि प्रकाश दुबे

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

बिस्तर पर लेटी राज दुलारी ,

पर उसको चोट लगी है भारी ,

लौटा दो फिर से उसकी हँसी,

उसे धीरे से गुदगुदाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

तरह - तरह के मर्ज पड़े है,

जाने कितने दुःख-दर्द पड़ें हैं,

पीड़ा कम हो जाए उनकी,

ऐसा मरहम लगाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

कुछ…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 8:33pm — 28 Comments

ग़ज़ल ------------------गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२  २१२

दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी

आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी

मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी

ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी

बोझ ढोता  ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली  सँवारी ज़िन्दगी

गुमनाम पिथौरागढ़ी

मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on March 16, 2015 at 8:00pm — 14 Comments

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