हौले से हिला कर के
नींद से जगा कर के
बहती है पवन जैसे
वो छू के गई ऐसे |
प्यारी सी एक लड़की
थी सांवले कलर की
एक ख़्वाब जगा करके
मुझे अपना बता कर के
वो छू के गई ऐसे-----
रात भर मुझे जगाना
बिन बात मुस्कुराना
सिर मेरा ही खाना
कहने पे रूठ जाना
वो छू के गई ऐसे----
दुनियाँ भली लगी थी
वो जब मुझे मिली थी
शायद थी भागवत वो
था मुझको गुनगुनाना |
वो छू के गई…
ContinueAdded by somesh kumar on February 8, 2018 at 9:30am — 4 Comments
अरकान-1212 1122 1212 22
तुम्हारे ख़त जो मेरे नाम पर नहीं आते
तो दुश्मनों के भी चहरे नज़र नहीं आते
सतर्क आप रहें हर घड़ी निगाहों से
लुटेरे दिल के कभी पूछ कर नहीं आते
भला भी वक़्त तुम्हारे लिये बुरा होगा
सलीक़े जीने के तुमको अगर नहीं आते
बदल दिए हैं हमीं ने मिजाज मौसम के
भिगोने अब्र हमें बाम पर नहीं आते
हमेशा पीछे भी क्या देखना जमाने में
समय जो बीत गए लौट कर नहीं…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:51pm — 8 Comments
कभी पेट पर लेकर अपने, हमें सुलाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
छाया देते घने पेड़ सी, लड़ते वो तूफानों से
हो निष्कंटक राह हमारी, उनके ही बलिदानों से
विपरीत रहें हालात मगर, कभी नहीं घबराते हैं
ओढ़ हौसलों की चादर को, हँसते और हसाते हैं
हँसकर तूफानों से लड़ना, हमें सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
बोझ लिए सारे घर का वो, दिन भर दौड़ लगाते हैं
हम सबके सपनो की…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:16pm — 14 Comments
-मेरी तो पक गयी।
-मेरी भी छन गयी।
-तो चल सब को छकाया जाय',पकौड़ी और छकौड़ी छहकती हुई एक साथ बोलीं।
-लेकिन उसके लिए चाय चाहिए,जो मेरे ही पास है',केतली ने कहर भरी नजर से दोनों को देखा।
-आ जा राम प्यारी! चल साथ-साथ चलते हैं',छकौड़ी और पकौड़ी केतली को गले लगाने लगीं।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on February 7, 2018 at 10:06am — 1 Comment
221 2121 1221 212
हमने तुम्हारे वास्ते क्या क्या नहीं किया
अफ़सोस तुमने हमपे भरोसा नहीं किया
oo
आया है जब से नाम तुम्हारा ज़बान पर
होटों ने फिर किसी का भी चर्चा नहीं किया
oo
ज़ुल्मों सितम ज़माने के हंस हंस के सह लिए
लेकिन कभी ईमान का सौदा नहीं किया
oo
अमनो अमां से हमने गुज़ारी है ज़िंदगी
मज़हब के नाम पर कभी झगड़ा नहीं किया
oo
उम्मीद उस बशर से करें क्या वफ़ा की हम
जिसने किसी के साथ भी अच्छा नहीं किया…
Added by SALIM RAZA REWA on February 6, 2018 at 10:30pm — 14 Comments
आत्मा के
कल-कल छल-छल जल में
शब्दों की ध्वनियाँ तैरती है
देर तक गूँजती रहती है
तब बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के मुहाने की छाती पर
नंगे पैर खड़े होकर चलना
समझौतों के ताबीज पहनना
मक्कारी का मंत्र जाप करना
रोज़ आत्मा का गला घोटना
खंडित-खंडित होकर
अखंडित समाधि बनना
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के रिश्तों में जीना
जहाँ रिश्तों में डाका पड़ा है
ख़ूनी हाथ अट्टहास करते हैं
अकेलेपन की साँसें थम गई है
रातरानी को लकवा हो गया है
गुलाब…
Added by Mohammed Arif on February 6, 2018 at 9:08pm — 15 Comments
221 2121 1221 212
गर बीज है जमीन में अंकुर भी आयेगा
,जागेगी ये अवाम तग़य्युर भी आयेगा
'ज़ह्नों में लाज़मी है तहय्युर भी आयेगा
बदलाव आयेगा तो तफ़क्कुर भी आयेगा
इंसानियत का आज कोई गीत गा रहा
,जब साज है नया तो नया सुर भी आयेगा
आना न मेरी जिन्दगी में तुम कभी सनम
,आए तो फुर्कतों का तसव्वुर भी आयेगा
'कमसिन रहे वो नाज़नीं यारो दुआ करो
आया अगर शबाब तकब्बुर भी आयेगा'
लिखदी ग़ज़ल समाज पे शाइर ने इक…
Added by rajesh kumari on February 6, 2018 at 5:30pm — 16 Comments
जनाब साहिर लुधियानवी के मिसरे पर तरही ग़ज़ल।
1222 1222 1222 1222
रहे गर्दिश में जो हरदम, उन_अनजानों पे क्या गुजरी,
किसे मालूम ऐसे दफ़्न अरमानों पे क्या गुजरी।
कमर झुकती गयी वो बोझ को फिर भी रहें थामे,
न जाने आज की औलाद उन शानों पे क्या गुजरी।
अगर हो बात फ़ितरत की नहीं तुम जानवर से कम,
*जब_इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुजरी।*
मुहब्बत की शमअ पर मर मिटे जल जल पतंगे जो,
खबर किसको कि उन नाकाम परवानों…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 6, 2018 at 4:04pm — 9 Comments
गरम कड़ाही में वे नाच रहे थे। नहीं, उन्हें नचाया जा रहा था। उबलते तेल में एक झारे से उन्हें पलटा जा रहा था। रंग बदलते ही उन्हें कड़ाही से बाहर कर थाली में और फिर दीवाने ग्राहकों को दोनों में चटनी के साथ पेश किया जा रहा था। उनमें से एक युवक की निगाहें कभी कड़ाही में, कभी हाथों में थामे गये 'दोनों' पर, तो कभी ग्राहकों के चलते जबड़ों पर जा रहीं थीं, तो कभी झारा चलाते युवा पकोड़ेवाले पर।
"यूं क्या देख रहे हो? क्या सोच रहे हो भाई? आपको कितने के चाहिए?" कुछ पकोड़े थाली में उड़ेलते…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 5, 2018 at 6:00pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है
क्या किसी तारे का फिर से नव सृजन प्रारम्भ है
इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ
प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है
मन-जगत घर्षण से अंतस में अनल जो है प्रकट
भावनाओं का उसी से आचमन प्रारम्भ है
लेखनी नें स्वयं से संकल्प इक धारण किया
एकता के भाव का सो संवहन प्रारम्भ है
चक्षुओं पर जो लगा कर घूमते चश्मा उन्हें
ताप…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:07pm — 14 Comments
-कब फिरेंगे अपने दिन?
-फिर ही तो रहे हैं।सुबह से शाम,फिर बातें तमाम।
-अरे भइये!अच्छे दिन आनेवाले थे।सुना था कभी।
-सब दिन अच्छे होते हैं।सब ईश्वर प्रदत्त हैं।
-सो तो ठीक है,अकलू।पर यहाँ तो 'नून-तेल-तरकारी,पड़ रही है भारी।'
-ठीके बोलते हो ,बकलू।ई नयको बजटवा में तरकारी महंगी हुई है।और वनस्पति तेल भी।
-ऊपर से होरी आई है।रंग फीका हो गया भाई।
-सो तो है।
-अरे का खुसर-पुसर चल रहल बा रे तू दुनो में?' टकलू ने टिटकारी भरी।
-लो आ गया अपन टकलू।'जोरू न…
Added by Manan Kumar singh on February 4, 2018 at 11:30pm — 6 Comments
डर लगता है दुनिया से
और घर वालों के तानों से,
और कभी डर जाती हूँ मैं
प्यार के इन अफसानों से।।
कितनी मुश्किल आती है
और कितने ही गम सहते हैं,
लाखों कोशिश कर लें-
फिर भी तन्हा ही हम रहते हैं।।
रहता कुछ भी याद नहीं
जब याद किसी की आती है,
प्रेस से कपड़े जलते हैं-
काॅफी फीकी रह जाती है।।
माँ भी गुस्सा करती है
और बापू भी चिल्लाते हैं,
मगर किसी को इस दिल के
हालात समझ ना…
ContinueAdded by रक्षिता सिंह on February 4, 2018 at 5:00pm — 10 Comments
1. खोये स्वप्न ...
तमाम रात
मेरे साथ था
एक स्वप्न
भोर होते ही
वो स्वप्न
स्वप्न सा हो गया
मैं
देर तक
पलकों की दहलीज़
बुहारती रही
खोये स्वप्न को
ढूंढने के लिए
...........................
2. मन्नत ....
देर तक
रुका रहा
मेरे घर की छत पर
वो आसमान से टूटा
मन्नत का तारा
मेरे ज़ह्न में
काँपता रहा
देर तक उसका ख़्याल
मेरी आँखों के कटोरों में
कोई अपने अक्स की…
Added by Sushil Sarna on February 4, 2018 at 3:52pm — 13 Comments
221 2121 1221 212
जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ
ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के साथ
-
नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ
दिल में उतर गया वो बड़ी सादगी के साथ
-
आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे
कुछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िन्दगी के साथ
-
ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में
यूँ ही नहीं है प्यार हमें शायरी के…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on February 4, 2018 at 10:00am — 18 Comments
पहली दिल्ली यात्रा के दौरान गन्तव्य की ओर जाते समय टैक्सी इण्डिया गेट के नज़दीक़ पहुंची ही थी कि वहां दर्शकों की भीड़ देखकर उसने टैक्सी चालक से कहा - "यह तो इण्डिया गेट है न! ग़ज़ब की भीड़ है! देखने लायक ऐसा क्या है यहां? लोग तो फोटो भर उतार रहे हैं, सेल्फी ले रहे या खाने-पीने में भिड़े हुए हैं?"
"यह मॉडर्न देशप्रेम है साहब! शहीदों के नामों और कामों से कोई मतलब नहीं इन्हें! ये तो बस लोकेशन और गेटप्रेम है!" टैक्सी-चालक ने उसकी तरफ़ मुड़कर कहा -"वैसे आप कहां ठहरेंगे? आप कहें तो एक…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 4, 2018 at 9:00am — 14 Comments
212 212 212 212
मुद्दतों बाद फिर मुस्कुराना रहा ।
आज मौसम बड़ा आशिकाना रहा ।।
आप आये यहां ये थी किस्मत मेरी ।
इक मुलाकत से दिन सुहाना रहा ।।
मुफ़लिसी में सभी छोड़ कर चल दिये ।
इस तरह से मेरा दोस्ताना रहा ।।
वो मुकर ही गए आज पहचान से ।
जिनके घर तक मेरा आना…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 4, 2018 at 2:08am — 10 Comments
बीत गई सर्दी , बीत गई ठंड रे ,
दिनभर लुआर बहे गर्मी प्रचंड रे ,
चार दिन की चाँदनी सा प्यारा बसंत था,
पसीने की बूंदों से भीगा अंग-अंग रे ,
स्वेटर,कमीज,कोट लिपटे कई असन वस्त्र,
छोड़छाड़ देह को हुए खंड-खंड रे ,
गर्मी की चुभन से हाल बेहाल हुआ ,
"अज्ञात" कैसे ! कैसे करे व्यंग रे .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ajay Kumar Sharma on February 3, 2018 at 10:30pm — 4 Comments
तेज़ चाल से चलते हुए काउंसलर और डॉक्टर दोनों ही लगभग एक साथ बाल सुधारगृह के कमरे में पहुंचे। वहां एक कोने में अकेला खड़ा वह लड़का दीवार थामे कांप रहा था। डॉक्टर ने उस लड़के के पास जाकर उसकी नब्ज़ जाँची, फिर ठीक है की मुद्रा में सिर हिलाकर काउंसलर से कहा, "शायद बहुत ज़्यादा डर गया है।"
काउंसलर के चेहरे पर चौंकने के भाव आये, अब वह उस लड़के के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा, "क्या हुआ तुम्हें?"
फटी हुई आँखों से उन दोनों को देखता हुआ वह लड़का कंधे पर हाथ का स्पर्श…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 3, 2018 at 10:10pm — 10 Comments
अमर हो गए ...
मेरी हिना
बहुत लजाई थी
जब तुम्हारे स्पर्श
मेरे हाथों से
टकराये थे
मेरा काजल
बहुत शरमाया था
जब
तुम्हारी शरीर दृष्टि ने
मेरी पलक
थपथपाई थी
मेरे अधर
बहुत थरथराये थे
जब तुम्हारी
स्नेह वृष्टि ने
मेरे अधर तलों को
अपने स्नेहिल स्पर्श से
स्निग्ध कर दिया था
मैं शून्य हो गयी
जब
प्रेम के दावानल में
मेरा अस्तित्व
तुम्हारे अस्तित्व के…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2018 at 4:35pm — 6 Comments
कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल
बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |
आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का
टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |
एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में
नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |
सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का
उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |
आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on February 3, 2018 at 4:34pm — 2 Comments
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