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ग़ज़ल(रहे गर्दिश में जो हरदम)

जनाब साहिर लुधियानवी के मिसरे पर तरही ग़ज़ल।

1222 1222 1222 1222

रहे गर्दिश में जो हरदम, उन_अनजानों पे क्या गुजरी,
किसे मालूम ऐसे दफ़्न अरमानों पे क्या गुजरी।

कमर झुकती गयी वो बोझ को फिर भी रहें थामे,
न जाने आज की औलाद उन शानों पे क्या गुजरी।

अगर हो बात फ़ितरत की नहीं तुम जानवर से कम,
*जब_इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुजरी।*

मुहब्बत की शमअ पर मर मिटे जल जल पतंगे जो,
खबर किसको कि उन नाकाम परवानों पे क्या गुजरी।

'नमन' इतनी बढ़ी क्यों बेरुखी लोगों में अपनों से,
सभी को है यही अब फ़िक्र बेगानों पे क्या गुजरी।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 4:47pm

आ. भाई बासुदेव जी, सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 10, 2018 at 7:42pm

मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है ,बहुत मुश्किल ज़मीन है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। 

शेर1 मिसरों में रब्त की कमी ,यूँ करसकते हैं "रहें जो गर्दिशों में ऐसे अनजानों पे क्या गुज़री । "बताएं किस तरह उन दफ़्न अरमानों पे क्या गुज़री।

शेर2 मिसरों में रब्त नहीं ,यूँ सानी मिसरा करसकते हैं "।भला औलाद क्या जाने कि उन शानों पे क्या गुज़री।

शेर3 रब्त की कमी ,उला मिसरा यूँ करसकते हैं ।"बताता ही नहीं इंसानियत का फलसफा कोई " 

शेर4मिसरों में रब्त की कमी,उला बह्र में नहीं ,सानी में ऐब-तनाफुर (उन नाकाम) यूँ कर सकते हैं ।"पतंगे शम ए उल्फ़त पर जो जलकर मर मिटे यारो --खबर किस को भला नाकाम परवानों पे क्या गुज़री"।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 9, 2018 at 11:22am

आ0 सोमेश कुमारजी आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया का हृदय से आभार 

Comment by somesh kumar on February 8, 2018 at 10:02am

कमर झुकती गयी वो बोझ को फिर भी रहें थामे,
न जाने आज की औलाद उन शानों पे क्या गुजरी।

 बेहतरीन ,बधाई इस अच्छी और सच्ची गज़ल पर 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 7, 2018 at 1:12pm

जनाब मोहम्मद आरिफ जी आपका हृदय से आभार।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 7, 2018 at 1:10pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी आपका बहुत बहुत आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on February 7, 2018 at 12:15pm
हार्दिक बधाई आदरणीय। लाज़वाब गज़ल।
Comment by Mohammed Arif on February 6, 2018 at 5:30pm

आदरणीय वासुदेव जी आदाब,

                           जनाब साहिर लुधियानवी साहब की ज़मी पर बहुत ही अच्छे अश'आरों से सुसज्जित ग़ज़ल । हर शे'र बढ़िया । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन  अपनी राय देंगे ।

Comment by रक्षिता सिंह on February 6, 2018 at 5:11pm

आदरणीय नमन जी नमस्कार,

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ....

"मुहब्बत की शमअ पर मर मिटे जल जल पतंगे जो,

खबर किसको कि उन नाकाम परवानों पे क्या गुजरी"

हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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