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February 2013 Blog Posts (194)

माँ दुर्गा स्तुति. (मदिरा सवैया)

निर्मित विश्व हुआ तुम से, तुम मात शिवे सगरे जग की,

स्थावर जंगम या लघु हो,तुम मात नियामक हो सब की,

सात्विक प्रकृति साधक पूजत भाव लिए मन  ब्रम्ह सदा,

पूजत साधक  धूमवती  बगला  तुमको  यह  देश  मृदा//  

 

 स्वरचित/अप्रकाशित

Added by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 10:30pm — 5 Comments

"प्रेम के नाम दो शब्द "

घर की रौनक ,

चौधवीं का चाँद हो !

मेरी दुआ .

मेरी फ़रियाद हो  !



तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,

तुम्ही मेरी गीत हो !

तुम्ही मेरी हार .

तुम्ही मेरी जीत हो !



मेरी…

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Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 10:00pm — 1 Comment

लाल गुलाब और पहली डेटिंग [एक ज्ञान वर्धक कथा }

स्नेहा सिंघानिया मेरी फेसबुक मित्र थी, उनसे फेसबुक पर चैटिंग करते दो बरस बीत गयें थे, वह बहुत ही सकारात्मक व्यक्ति थी, मैं काफी दिनों से उनसे कुछ अच्छा सीखने की उम्मीद कर रहा था और मिलने का आग्रह भी | आज इलाहाबाद का यमुना तट, सरस्वती घाट और हजारो जलती रोशनियां हमारी पहली डेटिंग के गवाह बनने वाले थे | मैं अपनी आदत के मुताबिक तयशुदा समय से पहले ही आ गया था | हेलों पढ़ाकू ! सुनकर मैं चौका, वह इसी नाम से मुझे चैटिंग के दौरान संबोधित करती थी | आवाज की दिशा में मैं मुड़ा तो काले रंग का महंगा सूट…

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Added by ajay yadav on February 19, 2013 at 6:30pm — 9 Comments

कृष्ण -सुदामा मित्रता चित्रण

मित्रों संसार में मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है कृष्ण और सुदामा की मित्रता का वृत्तांत | उसी करुण मित्रता के दृश्य को एक रचना के माध्यम से लिखने का प्रयास किया है | कृपया आप अवलोकित करें |



एक बार द्वारिका जाकर बाल सखा से मिल कर देखो 

अपने दुःख की करुण कहानी करूणाकर से कह कर देखो ||



हे नाथ ! दशा देखो घर की, दुःख को भी आंसू आयेंगे 

तुम्हरी , मेरी तो बात नहीं बच्चों को क्या समझायेंगे ?

भूखी , नंगी व्याकुलता के दर्शन हैं…

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Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 5:55pm — 3 Comments

"कण -कण के वासी "

हे शिव स्नेह के सागर ,

भर दो प्रेम गागर ,

मोह माया के तम से,

मुक्त कीजै आकर!



बंधनों से मुक्त करो ;

इतनी कृपा कर दो !

मुझे मलिन संसार से ,

अब तो पृथक कर दो !…



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Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 3:40pm — 5 Comments

रक्तधार

               रक्तधार

विगत संबंधों से स्पंदन करती   

पुरानी रक्तधार

सूखी नदी-सी सूख चुकी है,

पर मात्र स्मृति किसी एक संबंध की…

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Added by vijay nikore on February 19, 2013 at 1:54pm — 29 Comments

एक गज़लनुमाँ ***तहज़ीब उधार लॆं ....

एक गज़लनुमाँ ***तहज़ीब उधार लॆं



चलॊ किसी सॆ तॊ तहज़ीब उधार लॆं ,

गल्ती अपनी-अपनी हम स्वीकार लॆं !!१!!

दूसरॊं कॆ मकान मॆं झाँकनॆ सॆ…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 19, 2013 at 1:30pm — 5 Comments

पापा की लाडली .... मीना पाठक

मै अपने पापा 

की  लाडली 
उनकी ऊँगली 
पकड़   कर 
मचलती इठलाती 
थोड़ी ही दूर चली थी 
कि 
काल चक्र ने 
एक झटके से 
उनके हाथ से 
मेरी ऊँगली छुड़ा दी
 
अब मैं अकेली 
इस निर्जन 
बियावान जंगल 
में 

इधर -…

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Added by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:30pm — 31 Comments

जब उडाये लाल मौसम हो गया///गीत

बसंत के मौसम को समर्पित एक गीत 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर …

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Added by seema agrawal on February 19, 2013 at 12:30pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सुषुप्त मन में

उफ्फ ये स्वप्न!!

हृदय विदारक

कैसे जन्मा

सुषुप्त मन में ?

रेंगती संवेदनाएं  

कंपकपाएँ

जड़ जमाएं  

भयभीत मन में

अतीत है या

भावी  दर्पण

उथल पुथल है

मन उलझन में

गर…

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Added by rajesh kumari on February 19, 2013 at 10:00am — 24 Comments

द्रोपदी विरह

मित्रों , सुप्रभात | यह रचना है कुरुवंश के दरबार में जब पांडव द्यूत गृह में कौरवों से हार जाते हैं और इस हार जीत के खेल में इतिहास की यह पहली घटना है जब एक नारी को भी दांव पर लगाया जाता है | द्रोपदी को दुशासन खींच कर सभा में ले आता है | और फिर द्रोपदी सभी कुरुवंशी अपने अग्रजों को धिक्कारती है | तो लीजिये यह रचना आपके अवलोकन हेतु ||

++++++++++++++++++++++++++++++++



हे कुरुवंशी राज्यसभा में सम्मानित जन मंच…
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Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 9:37am — 5 Comments

तुम

मैं महसूस करता हूँ

जब भी

अंदर तक बिखरा

तुम्हारे कदमों की आहट

फिर से समेट देती है

मेरा अंर्तमन

चेतनशून्य से

चैतन्यता लौट आती है

मेरे…

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Added by बृजेश नीरज on February 18, 2013 at 11:31pm — 15 Comments

बस तेरी चुप्पी मुझे खलने लगी

जब से मजबूरी मेरी बढ़ने लगी

दोस्तों से दूरी भी बनने लगी

 

उनकी हाँ में हाँ मिलाया जब नहीं 

बस मेरी मौजूदगी डसने लगी

 

कद मेरा उस वक्त से बढ़ने लगा

आजमाइस दुनिया जब करने…

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Added by नादिर ख़ान on February 18, 2013 at 10:00pm — 21 Comments

"ग़ज़ल "

"ग़ज़ल "

आज बेमौत मर रहा होगा,

जो सवालों से डर रहा होगा ।

बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,

नव युगल प्यार कर रहा होगा ।

अपने होने लगे हैं बेगाने,

कोई तो कान भर रहा होगा ।…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 18, 2013 at 3:30pm — 46 Comments

दिया अब सब्र का भी बुझ रहा ...

‎+++++++++++++++++++++++++++++++

दिया अब सब्र का भी बुझ रहा अंतिम बगावत है

मगर ये रात खुलती ही नहीं लम्बी अमावस है ||



तमन्ना की जमीं पर जब कभी भी घर बनाया था 

हकीकत की लहर ने एक पल में सब डुबा डाला |

मेरी कोशिश मनाने की अभी तक भी निरंतर है 

सभी नाराज होने की वजह को भी मिटा डाला ||



तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है 

सभी आदत बदल लूँगा…

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Added by Manoj Nautiyal on February 18, 2013 at 3:00pm — 16 Comments

लक्ष्मी मेरे घर की .....-- मीना पाठक

आरती की थाली 

लिए हाथों में 

जाने कब से 

निहार रही हूँ बाट ....

आएगी वह 

जब सिमटी लाल-जोड़े में ,

मेहँदी रचे हाथों…

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Added by Meena Pathak on February 18, 2013 at 2:00pm — 26 Comments

हम ढोते हैं अपनी विरासत को

हम ढोते हैं अपनी विरासत को

सभ्यता को

संस्कृति को

शाश्वत दर्शन को

बिना जाने

बिना समझे 

जीवन में उतारे बिना

हम पूजते हैं

अपने मूल्यों को

बिना समझे

बिना जाने

भटकते हैं

रौशनी के काफिले

हमें गर्व है

अपनी थाती पर

वेदों पर

पुराणों पर

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा

के अवशेषों पर 

कटकर

अपनी जड़ों से-

कैसा

माटी का गुणगान ?

अध्यात्म की वृहद चर्चाओं में

कथित 'बाबाओं' की सभाओं में

खेली- खाई…

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Added by Vinita Shukla on February 18, 2013 at 10:08am — 25 Comments

ग़ज़ल - हम तलक ही रहे !!!

राज की बात हम तलक ही रहे
ये मुलाक़ात हम तलक ही रहे ।

कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।

उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे ।

डर है तुझको बहा न ले जाये
ऐसी बरसात हम तलक ही रहे ।

इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।

(इस्बात - प्रमाण/सुबूत)

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 17, 2013 at 11:31pm — 33 Comments

बेबसी हंसने लगी ...

बातों से भी ये गम क्यूँ कम नही होते,

आंसुओ से दिल के कोने नम नही होते.

थी बहुत उम्मीद तो अपनों से इस दिल को कभी,

पर हमेशा साथ ये हमदम नही होते...

बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,

बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.

जहाँ ख़ुशी वहां खिलती मन की हर कली,

उन घरानों में क्या कभी मातम नही होते...                    …

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Added by Aarti Sharma on February 17, 2013 at 10:30pm — 30 Comments

लघुकथा : दरवाज़ा बोलता है

  •  दरवाज़ा बोलता है

 

                       मेरी पड़ोसन  सखी आई थीं। छुट्टी का  दिन।  .हम आराम फरमा  रहे थे।  प्रायः ऐसे ही टाइमपास किया करते थे। कुछ इधर उधर की बातें भी चल रही थीं। चाय की चुस्की लेते लेते मैडम अचानक रूक गयीं - अरे ! ये आवाज़ कैसी आ रही है? मैंने कहा हवा से पल्ला हिला  उसकी आवाज़ थी। फिर कुछ ही देर  में भड -भड की हलकी आवाज़। बोलीं अब क्या…

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Added by mrs manjari pandey on February 17, 2013 at 9:00pm — 10 Comments

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