निर्मित विश्व हुआ तुम से, तुम मात शिवे सगरे जग की,
स्थावर जंगम या लघु हो,तुम मात नियामक हो सब की,
सात्विक प्रकृति साधक पूजत भाव लिए मन ब्रम्ह सदा,
पूजत साधक धूमवती बगला तुमको यह देश मृदा//
स्वरचित/अप्रकाशित
Added by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 10:30pm — 5 Comments
घर की रौनक ,
चौधवीं का चाँद हो !
मेरी दुआ .
मेरी फ़रियाद हो !
तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,
तुम्ही मेरी गीत हो !
तुम्ही मेरी हार .
तुम्ही मेरी जीत हो !
मेरी…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 10:00pm — 1 Comment
स्नेहा सिंघानिया मेरी फेसबुक मित्र थी, उनसे फेसबुक पर चैटिंग करते दो बरस बीत गयें थे, वह बहुत ही सकारात्मक व्यक्ति थी, मैं काफी दिनों से उनसे कुछ अच्छा सीखने की उम्मीद कर रहा था और मिलने का आग्रह भी | आज इलाहाबाद का यमुना तट, सरस्वती घाट और हजारो जलती रोशनियां हमारी पहली डेटिंग के गवाह बनने वाले थे | मैं अपनी आदत के मुताबिक तयशुदा समय से पहले ही आ गया था | हेलों पढ़ाकू ! सुनकर मैं चौका, वह इसी नाम से मुझे चैटिंग के दौरान संबोधित करती थी | आवाज की दिशा में मैं मुड़ा तो काले रंग का महंगा सूट…
ContinueAdded by ajay yadav on February 19, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
मित्रों संसार में मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है कृष्ण और सुदामा की मित्रता का वृत्तांत | उसी करुण मित्रता के दृश्य को एक रचना के माध्यम से लिखने का प्रयास किया है | कृपया आप अवलोकित करें |
एक बार द्वारिका जाकर बाल सखा से मिल कर देखो
अपने दुःख की करुण कहानी करूणाकर से कह कर देखो ||
हे नाथ ! दशा देखो घर की, दुःख को भी आंसू आयेंगे
तुम्हरी , मेरी तो बात नहीं बच्चों को क्या समझायेंगे ?
भूखी , नंगी व्याकुलता के दर्शन हैं…
Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 5:55pm — 3 Comments
हे शिव स्नेह के सागर ,
भर दो प्रेम गागर ,
मोह माया के तम से,
मुक्त कीजै आकर!
बंधनों से मुक्त करो ;
इतनी कृपा कर दो !
मुझे मलिन संसार से ,
अब तो पृथक कर दो !…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 3:40pm — 5 Comments
रक्तधार
विगत संबंधों से स्पंदन करती
पुरानी रक्तधार
सूखी नदी-सी सूख चुकी है,
पर मात्र स्मृति किसी एक संबंध की…
ContinueAdded by vijay nikore on February 19, 2013 at 1:54pm — 29 Comments
एक गज़लनुमाँ ***तहज़ीब उधार लॆं
चलॊ किसी सॆ तॊ तहज़ीब उधार लॆं ,
गल्ती अपनी-अपनी हम स्वीकार लॆं !!१!!
दूसरॊं कॆ मकान मॆं झाँकनॆ सॆ…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 19, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
इधर -…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
Added by seema agrawal on February 19, 2013 at 12:30pm — 18 Comments
उफ्फ ये स्वप्न!!
हृदय विदारक
कैसे जन्मा
सुषुप्त मन में ?
रेंगती संवेदनाएं
कंपकपाएँ
जड़ जमाएं
भयभीत मन में
अतीत है या
भावी दर्पण
उथल पुथल है
मन उलझन में
गर…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 19, 2013 at 10:00am — 24 Comments
Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 9:37am — 5 Comments
मैं महसूस करता हूँ
जब भी
अंदर तक बिखरा
तुम्हारे कदमों की आहट
फिर से समेट देती है
मेरा अंर्तमन
चेतनशून्य से
चैतन्यता लौट आती है
मेरे…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 18, 2013 at 11:31pm — 15 Comments
जब से मजबूरी मेरी बढ़ने लगी
दोस्तों से दूरी भी बनने लगी
उनकी हाँ में हाँ मिलाया जब नहीं
बस मेरी मौजूदगी डसने लगी
कद मेरा उस वक्त से बढ़ने लगा
आजमाइस दुनिया जब करने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 18, 2013 at 10:00pm — 21 Comments
आज बेमौत मर रहा होगा,
जो सवालों से डर रहा होगा ।
बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,
नव युगल प्यार कर रहा होगा ।
अपने होने लगे हैं बेगाने,
कोई तो कान भर रहा होगा ।…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 18, 2013 at 3:30pm — 46 Comments
+++++++++++++++++++++++++++++++
दिया अब सब्र का भी बुझ रहा अंतिम बगावत है
मगर ये रात खुलती ही नहीं लम्बी अमावस है ||
तमन्ना की जमीं पर जब कभी भी घर बनाया था
हकीकत की लहर ने एक पल में सब डुबा डाला |
मेरी कोशिश मनाने की अभी तक भी निरंतर है
सभी नाराज होने की वजह को भी मिटा डाला ||
तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है
सभी आदत बदल लूँगा…
Added by Manoj Nautiyal on February 18, 2013 at 3:00pm — 16 Comments
आरती की थाली
लिए हाथों में
जाने कब से
निहार रही हूँ बाट ....
आएगी वह
जब सिमटी लाल-जोड़े में ,
मेहँदी रचे हाथों…
Added by Meena Pathak on February 18, 2013 at 2:00pm — 26 Comments
हम ढोते हैं अपनी विरासत को
सभ्यता को
संस्कृति को
शाश्वत दर्शन को
बिना जाने
बिना समझे
जीवन में उतारे बिना
हम पूजते हैं
अपने मूल्यों को
बिना समझे
बिना जाने
भटकते हैं
रौशनी के काफिले
हमें गर्व है
अपनी थाती पर
वेदों पर
पुराणों पर
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा
के अवशेषों पर
कटकर
अपनी जड़ों से-
कैसा
माटी का गुणगान ?
अध्यात्म की वृहद चर्चाओं में
कथित 'बाबाओं' की सभाओं में
खेली- खाई…
Added by Vinita Shukla on February 18, 2013 at 10:08am — 25 Comments
राज की बात हम तलक ही रहे
ये मुलाक़ात हम तलक ही रहे ।
कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।
उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे ।
डर है तुझको बहा न ले जाये
ऐसी बरसात हम तलक ही रहे ।
इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।
(इस्बात - प्रमाण/सुबूत)
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 17, 2013 at 11:31pm — 33 Comments
बातों से भी ये गम क्यूँ कम नही होते,
आंसुओ से दिल के कोने नम नही होते.
थी बहुत उम्मीद तो अपनों से इस दिल को कभी,
पर हमेशा साथ ये हमदम नही होते...
बेबसी हंसने लगी ख़ामोशी अब है गूंजती,
बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.
जहाँ ख़ुशी वहां खिलती मन की हर कली,
उन घरानों में क्या कभी मातम नही होते... …
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 17, 2013 at 10:30pm — 30 Comments
मेरी पड़ोसन सखी आई थीं। छुट्टी का दिन। .हम आराम फरमा रहे थे। प्रायः ऐसे ही टाइमपास किया करते थे। कुछ इधर उधर की बातें भी चल रही थीं। चाय की चुस्की लेते लेते मैडम अचानक रूक गयीं - अरे ! ये आवाज़ कैसी आ रही है? मैंने कहा हवा से पल्ला हिला उसकी आवाज़ थी। फिर कुछ ही देर में भड -भड की हलकी आवाज़। बोलीं अब क्या…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on February 17, 2013 at 9:00pm — 10 Comments
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