For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

               रक्तधार

विगत संबंधों से स्पंदन करती   

पुरानी रक्तधार

सूखी नदी-सी सूख चुकी है,

पर मात्र स्मृति किसी एक संबंध की

जैसे नदी के सूखे तल को

आ कर ज्वार-भाटा-सी भिगो देती है।

विसंगत प्रसंगों में समन्वय ढूँढते

कितने वियोगाँत दृश्य

दुहरा जाते हैं विप्लव-से झट से

                     मेरी आहत आँखों में ...

              

आज मैंने डाल पर देखा

कोई उदास आँखों वाला

ठिठुरता रक्ताक्त पक्षी,

आशंकित,

झिझक रहा था लौट आने को डाल पर,

और फिर जा बैठा वह उसी डाल पर

क्षत-विक्षत हुआ था

               जिस डाल पर वह बार-बार।

... और मुझको लगा

           उस पक्षी का नाम ‘विजय’ था।

                           ---------

                                                    -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on February 24, 2014 at 9:03am

आह!

क्या बात है आदरणीय!

अंतिम बंद ने उत्कृष्टता के चरम ने छू लिया...ऐसा मुझे लगा।

आपको भुत बधाई इस गहन और गम्भीर अभिव्यक्ति के लिए।

रचना बहुत प्रभावी लगी आदरणीय।

सादर

Comment by vijay nikore on February 24, 2014 at 7:42am

// ऐसी रचना के साथ साथ बहा तो जा सकता है मगर कोई प्रतिक्रिया करना आसान नहीं है. ऐसी सारगर्भित प्रस्तुति पर हार्दिक नमन//

आपके यह शब्द पढ़कर जो भीगी भावनाएँ उमड़ आईं, उन्हें मैं कैसे कहूँ, शब्द नहीं हैं मेरे पास, आदरणीय भाई योगराज जी। कृपया स्नेह देते रहें।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 1:15pm

ऐसी रचना के साथ साथ बहा तो जा सकता है मगर कोई प्रतिक्रिया करना आसान नहीं है. ऐसी सारगर्भित प्रस्तुति पर हार्दिक नमन स्वीकारें।

Comment by vijay nikore on March 7, 2013 at 3:18pm

आदरणीय प्रदीप जी:

 

इस उदात्त सराहना के किए आपका कोटि-कोटि आभार।

आशा है आपका स्नेह मिलता रहेगा।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2013 at 3:10pm

आज मैंने डाल पर देखा

कोई उदास आँखों वाला

ठिठुरता रक्ताक्त पक्षी,

आशंकित,

झिझक रहा था लौट आने को डाल पर,

और फिर जा बैठा वह उसी डाल पर

क्षत-विक्षत हुआ था

               जिस डाल पर वह बार-बार।

आदरणीय सर जी 

सादर 

बार बार पढ़ रहा हूँ 

डूब और उतरा रहा हूँ 

क्या लिखूं क्या न लिखूं 

समझ नहीं पा रहा हूँ. 

बधाई, आशीर्वाद दीजिए. 

.

Comment by vijay nikore on February 21, 2013 at 10:04am

आदरणीया सीमा जी:

 

सीमा जी, आपके इतने अच्छे शब्द पढ़ कर

मैं भी अब असमंजस में हूँ कि मैं पर्याप्त

आभार कैसे अभिव्यक्त करूँ .... कि आपने

कितना प्रोत्साहन दिया है!

 

आपका शत-शत धन्यवाद।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 21, 2013 at 9:54am

आदरणीय अजय जी:

 

आपको मेरी कविता अच्छी लगी,

यह मेरा सौभाग्य है ...

आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:49pm

असमंजस में हूँ आदरणीय विजय जी कि क्या कहूं 

विसंगत प्रसंगों में समन्वय ढूँढते
कितने वियोगाँत दृश्य
दुहरा जाते हैं विप्लव-से झट से
मेरी आहत आँखों में ...
अन्दर तक झिंझोड़ दे रही हैं ये पंक्तियाँ ...

और फिर जा बैठा वह उसी डाल पर
क्षत-विक्षत हुआ था
जिस डाल पर वह बार-बार।........

क्या कोई प्रतिक्रिया हो सकती है इस स्थिति  में 

बस दो पंक्तियाँ  जो दिल से निकली थीं कभी किसी के लिए आपको भी समर्पित करती हूँ

मानती हूँ है धरातल सख्त पर चलना ही है 
भोर होने तक दिए को राह पर जलना ही है .....हार्दिक शुभकामनाएं .......

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:38pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी:

 

मैं अभिभूत हूँ कि मेरे अनुभवों का

पाठकों के संग यूँ स्पंदन हुआ..

किसी भी कवि के लिए इससे बढ़ कर

प्रोत्साहन क्या हो सकता है!

आपका शत-शत आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:29pm

आदरणीया प्राची जी:

 

सदैव समान मैंने कविता में शब्दों को

भावनाओं की सच्चाई का लिबास पहनाया,

पर मैंने नहीं सोचा था कि मित्रगण इस लिबास

के रंगों को इस कदर छू कर देखेंगे, भावनाओं को

इतना पास से अनुभव करेंगे।

 

अनुभवों की सच्चाई को छूने के लिए

आपका अतिशय धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service