For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : दरवाज़ा बोलता है

  •  दरवाज़ा बोलता है

 

                       मेरी पड़ोसन  सखी आई थीं। छुट्टी का  दिन।  .हम आराम फरमा  रहे थे।  प्रायः ऐसे ही टाइमपास किया करते थे। कुछ इधर उधर की बातें भी चल रही थीं। चाय की चुस्की लेते लेते मैडम अचानक रूक गयीं - अरे ! ये आवाज़ कैसी आ रही है? मैंने कहा हवा से पल्ला हिला  उसकी आवाज़ थी। फिर कुछ ही देर  में भड -भड की हलकी आवाज़। बोलीं अब क्या बोला ? मैंने कहा बाहर का दरवाज़ा। हवा थोड़ी तेज़ हुई होगी। कहती हैं धन्य हैं आप। ये नहीं कि  बंद कर दें। बोले ही न।   डर  नहीं  लगता ? मैंने कहा - किस बात का ? अरे ये  आवाजें ही तो मेरी तन्हाई की साथी हैं। बहुत कुछ ये बताती भी हैं। कमरे का दरवाज़ा चरमर  करता है तो समझ जाती हूँ हवा चलने लगी . खिड़की के परदे  जिस गति से हिलते हैं तो समझ जाती हूँ बाहर हवा तेज़ अथवा धीमी है। आँगन से लगा दरवाज़ा और और बाहर का भी भड -भाड़ाने  लगता है तो यह हवा का तीव्र वेग दर्शाता है साथ ही यह संकेत भी होता है कि  अब मै  दरवाज़े को विराम दूँ  . यानि बंद कर दूं।इसी तरह .......

बीच में मेरी बात को काटते  हुए बोलीं बस कीजिये बस। मान गए। आपका दरवाज़ा बोलता है। हम  दोनों ही हंस पड़े।

Views: 473

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 6, 2013 at 11:36pm

आदरणीया मन्जरी जी:

 

गत ५ सप्ताह से सफ़र पर होने के कारण कई अच्छी रचनाएँ पढ़ने से रह गईं।

अभी-अभी आपकी यह लघु कथा पढ़ी, अच्छी लगी।

 

नीरवता में हमें अपने अन्तरतम का कितना आभास होता है, कि जैसे हम स्वयं से दूर थे,

और अब उसी स्वयं को छू लेते हैं ... उसी तरह सन्नाटे को भंग करती आवाज़ भी हमें अपने

मर्म से पहचान कराती है, यदि हम उसे समझने का पर्यत्न करें तो।

 

अच्छी लघु कथा के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on February 27, 2013 at 5:58pm
तन्हाई मिटाने का अच्छा सहारा ढूँढा आपने। अति सुन्दर रचना, धन्यवाद।
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 11:28pm

तन्हाई काटने को न दौड़े ऐसे ही कोई बोले डोले मन मे रस घोले तो नीरसता भागे
सुंदर लघु कथा
भ्रमर ५

Comment by ajay yadav on February 19, 2013 at 11:15pm

दरवाजा बोलता हैं ,बहुत सुंदर लघुकथा हैं ,बधाई

Comment by Rekha Joshi on February 19, 2013 at 1:02pm

 मंजरी पांडे जी,.सुन्दर लघुकथा. बधाई..

Comment by Dr.Ajay Khare on February 19, 2013 at 12:24pm

aapka darbaja bolta hai mousam ke badalte mijaj ke raaj kholta hai badia racna pandey mam badhai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 11:42am

वाह मंजरी जी तन्हाई  में किस तरह जड़ अवचेतन वस्तुएँ भी हमे अपने होने का एहसास दिलाती हैं या  यूँ कहिये हम खामोशी से बातें करने लगते हैं इस मर्म को बड़ी सरलता से इस लघु कथा के माध्यम से कह दिया बहुत बधाई आपको  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 8:05pm

तन्हाई में सिर्फ़ दरवाज़ा ही नहीं बहुत कुछ बोलता है. हम भी बोलते हैं.. . हम उनसे बोलते हैं और बहुत खूब बोलते हैं जिनके कारण तन्हाइयाँ हुआ करती हैं.

इस सांकेतिक कथा को जिस बेलौस अंदाज़ में आपने साझा किया है, आदरणीया मंजरी जी, वह आपकी संवेदनशीलता के बड़े प्रखर पहलू को सामने लाता है.  आपकी इस कथा के लिए आपको हृदय से बधाई व शुभकामनाएँ

Comment by Abhinav Arun on February 18, 2013 at 3:35pm

सच कहा अगर हमें सुनने की फुर्सत और ख़याल हो तो हर चीज़ बोलती है और हमसे बतियाती भी है 
! इस सुन्दर सशक्त रचना के लिए दिली मुबारकबाद !!

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 18, 2013 at 7:48am

आदरणीया मंजरी पांडे जी सादर, सही है तन्हाइयों के खामोशियाँ भी बोलती है.सुन्दर लघुकथा. बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service