For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

January 2015 Blog Posts (202)

घिर आई है शाम

घिर आई है शाम

 

यादें भटके जंगल-जंगल

नींद गई वनवास

अच्छे दिन परदेशी ठहरे

फ़ाग मिलन की आस |

बचपन यादें गहरी रंगी

खेले-कूदे   संग

यौवन की लाल चुनरिया

डूबी पीया के रंग |

नंदे-देवर निकले हरजाई

करें ठिठोली छेड़ |

माघ कली झुलस चली

आन करो ना देर |

कीरत अर्जित करते जाते

तीर्थ है किस धाम

छोड़ो-अपनाओं  दिल से

जब जोड़ा है नाम |

मीरा जैसा जीवन काटा

रुक्मणी बस…

Continue

Added by somesh kumar on January 28, 2015 at 8:50am — 10 Comments

तान्या :फिर मिलना कभी

मैं सोचता था

कि वह खो गया है कहीं

मगर

गुनगुनी धूप से धुली

उस सुबह

एक मोड़ पर

वह अचानक मिला

मैं जानता था

कि वह रुकेगा

वह रुक गया

मैं

यह भी जानता था

कि वह

मुझसे बातेँ करेगा

और वह

मुझ से बातेँ करने लगा

और तभी मैंने चाहा कि

मैं

उन अचानक मिले

कुछ पलों में

वे सारे स्वप्न साकार कर लूं

जो मैंने संजोये थे

मगर

उसके लिए ये पल तो

सिर्फ

कुछ पल थे ,

और वह…

Continue

Added by ARVIND BHATNAGAR on January 27, 2015 at 11:00pm — 8 Comments

वेंटिलेटर (लघुकथा)

“सुनिए , जरा प्याज काट दीजिये । ”

“देख नहीं रही हो , अभी-अभी थक हार के घर लौटा हूँ ।”

अरे….मैं भी तो आज 5 बजे दफ्तर से आयीं हूँ ।

“हाँ तो कौन सा पहाड़ खोद कर आई हो ।”

“तो तुम ही कौन सा लोहा पिघला रहे थे ?”

“इतना सुनते ही पति ने चप्पल उठा के पत्नी के मुहँ पर दे मारी, पत्नी तमतमा कर आई और पास ही पड़ा जूता उठा कर पति के मुहँ पर जड़ दिया ।”

इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”  

© हरि प्रकाश…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 10:00pm — 25 Comments

दांव पेंच--

" क्या हुआ सलीम साहब , चेहरा इतना उतरा हुआ क्यूँ है ? कहीं फिर इस बार टिकट का मसला तो नहीं फंस गया "|

" नहीं , कुछ नहीं , बस यूँ ही तबीयत कुछ नासाज़ लग रही है "| टाल तो दिया उन्होंने लेकिन अंदर ही अंदर कुछ खाए जा रहा था | पिछली बार भी यही हुआ था , आखिरी समय तक आश्वासन मिलता रहा था कि सीट आपकी पक्की है , इस बार भी उम्मीद नहीं दिख रही |

अगले दिन उन्होंने अख़बारों में खबर छपवा दी " सलीम साहब ने अपनी पार्टी का टिकट ठुकराया "| शाम तक उनको दूसरी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया |…

Continue

Added by विनय कुमार on January 27, 2015 at 8:56pm — 19 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : गैरत (गणेश जी बागी)

शेखर वेश्यावृति पर केन्द्रित एक किताब लिख रहा था, किन्तु उसे पत्रकार समझ इस धंधे से जुड़ी कोई भी लड़की कुछ बताना नहीं चाहती थी, आखिर उसने ग्राहक बन वहाँ जाने का निर्णय लिया.

“आओ साहब आओ, पाँच सौ लगेंगे, उससे एक पैसा कम नहीं”

शेखर ने हाँ में सर हिलाया और उसके साथ कमरे में चला गया.

“सुनो, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ”

“बाssत ?”

“हां, कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ”

“ऐ... साहेब, काहे को अपना और मेरा समय खोटी कर रहे हो, आप अपना…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 11:10am — 41 Comments

ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२........डराओ मत

१२२२—१२२२—१२२२

उमंगों के चरागों को बुझाओ मत

उजाले को अँधेरों से डराओ मत

 

न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का            तगाफ़ुल= उपेक्षा

परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत

 

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत

 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत

 

सजाओ आइने दीवार में लेकिन

हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत

 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां…

Continue

Added by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:38am — 26 Comments

ग़ज़ल--ज़हर आकर पिला दे तू

मुहब्बत को निभा दे तू
ज़हर आकर पिला दे तू
....
नज़र से उठ नहीं पाऊँ
मुझे ऐसा गिरा दे तू
....
व़फायें जानता हूँ मैं
नया कुछ तो सिख़ा दे तू
....
मुझे मँझाधार मैं लाकर
मेरी कश्ती हिला दे तू
....
कभी सोचा न हो मैंने
मुझे ऐसा सिला दे तू
....
क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू
..
..
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Added by umesh katara on January 27, 2015 at 10:00am — 29 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रिक्शा वाला -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

रिक्शा वाला

************

आपको याद तो होगा

वो रिक्शा वाला

 

गली गली घूमता ,

माइक में चिल्लाता , बताता

आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है

पर्चियाँ हवा में उड़ाता

पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे

बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता

किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता

बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,

एक जानकारी सब से साझा करता

 

न कोई आग्रह , न…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 7:51am — 24 Comments

एक ग़ज़ल

जिंदगी रेत की मानिंद सरक जाती है

ये मेरी जीस्त हरेक गाम लरज जाती है

तू खफा है तो हुआ कर या रब

सामने मेरे फकत माँ ही काम आती है

ये हुस्न ये शबाब ये नामो शौकत

तूँ बता बाद में मरने के किधर जाती है

मेरी किस्मत है जैसे आंधियो में रेत के घर

जब चमकती है सरे राह बिखर जाती है

यूँ हुआ बेवफा मुझी से जहाँ

याद करता हूँ वफ़ा आँख बरस जाती है

अब मेरा दिल है मेरी जां है और बस मैं हूँ

उसको देखूं कभी ये रूह तरस जाती है

अब तो घर चल बहुत ही रात हुई अब तो… Continue

Added by vijay on January 26, 2015 at 10:53pm — 12 Comments

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२ २१२ २१२

वो वफ़ा जानता ही नहीं
इस खता की सजा ही नहीं


फिर वही रोज जीने की जिद
जीस्त का पर पता ही नहीं


शहर है पागलों से भरा
इक दिवाना दिखा ही नहीं


पूजता हूँ तुझे इस तरह
गो जहां में खुदा ही नहीं


खा गए थे सड़क हादसे
सारे घर को पता ही नहीं


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on January 26, 2015 at 8:30pm — 20 Comments

अराजक

अराजक(लघुकथा )

“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा

“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”

“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया

“नहीं!”वो मायूस हो गया

“ तो भाई पीछे  जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला  

“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा

“…

Continue

Added by somesh kumar on January 26, 2015 at 6:30pm — 9 Comments

बन जाए मेरा भाई सूरज, सज जाए मेरी भी डोली

किरणें चित्र उकेरें अँगना, है प्रीत तेरी हमें बांधन निकली 

धरती का मैं लहंगा सिला लूँ, हरियाली की पहनूं चोली

अम्बर की बन जाए ओढ़नी, देखूं फिर नववर्ष रंगोली

तारों की मैं माला गूंथुं, चाँद बने बिंदिया की रोली

बने चांदनी मेरी मेहँदी, सज जाए मेरी भी हथेली

नेह झड़ी की आस लगाए, सुलगी जाए मरी दूब हठीली

सूरज को मैं बांधू राखी, फिर घोलूं किरणों की शोखी

बन जाए मेरा भाई सूरज, सज जाए मेरी भी डोली..... 

केसर रंग में मांग सजाऊं, देख घटा की अलक…

Continue

Added by sunita dohare on January 26, 2015 at 2:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल १२२२--१२२ \ १२२२--१२२ ..तो सो गये हम

थकन से चूर होकर , गिरे तो सो गये हम

जो चलते चलते गाफ़िल , हुये तो सो गये हम

 

हमारी भूख का क्या , हमारी प्यास का क्या

ये अहसासात दिल में , जगे तो सो गये हम

 

शनासा भी न कोई , तो अपना भी न कोई

अकेले थे अकेले , रहे तो सो गये हम

 

हमारी नींद सपने , सजाती ही नहीं है

हक़ीक़त से जहाँ की , डरे तो सो गये हम

 

मनाओ शुक्र तुम हो , गमों से दूर साथी

हमें तुम मुस्कुराते , मिले तो सो गये हम

 

हमारा दर्द…

Continue

Added by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:00pm — 22 Comments

“भारतीय कुत्ता” (लघुकथा)

“अरे यार ओबामा साहब के रास्ते में कुत्ता आ गया, सुरक्षा व्यवस्था में भयंकर चूक हो गयी, अगर उसमें बम लगा होता तो?”

“कुछ नहीं यार “भारतीय कुत्ता” था, जान दे देता पर ओबामा साहब को कुछ नहीं होने देता, यार देश की इज्ज़त का सवाल था आखिर ।" जय हिन्द !

 

हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित

Added by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 1:00pm — 29 Comments

जनतंत्र पूर्ण हो जाएगा --- डॉ o विजय शंकर

ये हुकूमतें , ये शान,

ये ऐशो -आराम ,

किस से हैं , किस की बदौलत हैं ,

जिस दिन ये यह अहसास हो जाएगा ,

उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा ॥



बत्तीस रूपये प्रतिदिन में

जिंदगी गुजारने वाले,

किसके बनाये हुए हैं ,

इनकी सोच , इन्होंने ही

एक एक वोट जोड़कर ,

तुझ जैसों को राजा बनाया है ||



महल की ऊपरी आखिरी ईंट तक

बुनियाद की शुक्रगुजार होती है ,

ख्याल कर ,

ये कब से तुझको

इतना ऊंचा उठाये हैं अपने सिर पर ,

इनका तो ख्याल… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 11:10am — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पटरियाँ

रूपमाला छंद पर एक छोटा सा प्रयास

हैं अचल पर चल रही हैं, पटरियाँ पुरजोर
दौड़ती हैं साथ महि के, ये क्षितिज की ओर
अनवरत चलना यही तो, जिन्दगी का नाम
दो कदम के बीच ही बस, है इन्हें आराम

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 8:30am — 8 Comments

"संघर्ष में आनंद"

संघर्ष,

कहीं भी हो ,

कैसा भी हो,

होता, बहुत  बुरा है ,

बहुत तड़पाता है,

काटता है ,

दुधारा छुरा है !

 

लेकिन,

संघर्ष न हो ,

तो सूख जाता है ,

मन का चमन ,

हर हाल में,हरा रखे ,

आदमी को,

संघर्ष वो सुरा है !

 

डरता,

जो पीने से ,

संघर्ष के,

छलकते हुए पैमाने ,

उस आदमी का जीवन,

बड़ा बेरंग,

बड़ा बेसुरा है !

 

लड़ता ,

हर आदमी…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 2:00am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आखिर मैं आज कहाँ हूँ ? (मिथिलेश वामनकर)

वो अलसाया-सा इक दिन

बस अलसाया होता तो कितना अच्छा

 

जिसकी

थकी-थकी सी संध्या

जो गिरती औंधी-औंधी सी

रक्ताभ हुआ सारा मौसम

ऐसा क्यों है.....

बोलो पंछी?

 

ऐसा मौसम,

ऐसा आलम  

लाल रोष से बादल जिसके

और

पिघलता ह्रदय रात का

अपना भोंडा सिर फैलाकर अन्धकार पागल-सा फिरता

हर एक पहर के

कान खड़े है

सन्नाटे का शोर सुन रहे

ख़ामोशी के होंठ कांपते

कुछ कहने को फूटे कैसे…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 12:30am — 32 Comments

है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है .......

बडा मंदिर न मस्जिद , न कोई गिरजा शिवाला है

न कोई अर्चना , पूजा बडी , अरदास , माला है

वतन सबसे बडा मंदिर , वतन सबसे बडी पूजा

है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है ।

जो सच की पैरवी और झूठ का प्रतिकार करता है ,

मोहब्बत हो जिसे इंसानियत से और एतबार करता है

जरूरी है नहीं हर शख्स सरहद पर लडे जाकर ,

वही सच्चा सिपाही है , जो वतन से प्यार से करता है ।

न कोई आरजू , ख्वाहि श , न कोई शर्त रखते हैं ।

न बोझा कोई सीने पर , न सर पे कर्ज…

Continue

Added by ajay sharma on January 25, 2015 at 11:01pm — 9 Comments

मैं बदल गया हूँ!

आसमान में उगता सूरज, जलता सूरज तपता सूरज

बदरियों की बगियाँ में, लुका-छिपी करता सूरज

सांझ सकारे किसी किनारे, धीरे धीरे ढलता सूरज

मैं भी तो इस सूरज सा, चढ़ा कभी कभी ढ़ल गया हूँ

जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!…

Continue

Added by Ranveer Pratap Singh on January 25, 2015 at 10:00pm — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
9 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service