2122 2122 212
धारणायें हों मुखर, तो चुप रहें
सच न पाये जब डगर, तो चुप रहें
शब्द ज़िद्दी और अड़ियल जब लगें
और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप रहें
जब धरा भी दूर हो आकाश भी
आप लटके हों अधर, तो चुप रहें
कृष्ण हो जाये किशन, स्वीकार हो
शह्र पर जब हो समर तो चुप रहें
सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें
जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें
तेल औ’र पानी मिलाने के लिये
कोशिशें देखें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 8:00am — 24 Comments
22 22 22 22 22 2
हर चहरे पर चहरा कोई जीता है
और बदलने की भी खूब सुभीता है
सांप, सांप को खाये, तो क्यों अचरज हो
इंसा भी जब ख़ूँ इंसा का पीता है
अर्थ लगाने की है सबको आज़ादी
चुप कह के, क़ुरआन, बाइबिल गीता है
भेड़, बकरियों, खर , खच्चर , हर सूरत में
अब जंगल में जीता केवल चीता है
बादल तो बरसा था सबके आँगन में
उल्टा बर्तन रीता था, वो रीता है
फर्क हुआ क्या नाम बदल के सोचो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 23, 2017 at 8:57am — 6 Comments
22 22 22 22 22 2
छिपे हुये फिर सारे बाहर निकले हैं
फिर शब्दों के लेकर ख़ंज़र निकले हैं
मोम चढ़े चहरे गर्मी में जब आये
सबके अंदर केवल पत्थर निकले हैं
आइनों से जो भी नफ़रत करते थे
जेबों मे सब ले के पत्थर निकले हैं
बाहर दवा छिड़क भी लें तो क्या होगा
इंसाँ दीमक जैसे अन्दर निकले हैं
अपनी गलती बून्दों सी दिखलाये, पर्
जब नापे तो सारे सागर निकले हैं
औंधे पड़े हुये हैं सागर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 21, 2017 at 9:48am — 16 Comments
1212 1122 1212 22 /122
सुनें वो गर नहीं,तो बार बार कह दूँ क्या
है बोलने का मुझे इख़्तियार, कह दूँ क्या
शज़र उदास है , पत्ते हैं ज़र्द रू , सूखे
निजाम ए बाग़ है पूछे , बहार कह दूँ क्या
कहाँ तलाश करूँ रूह के मरासिम मैं
लिपट रहे हैं महज़ जिस्म, प्यार कह दूँ क्या
यूँ तो मैं जीत गया मामला अदालत में
शिकश्ता घर मुझे पूछे है, हार कह दूँ क्या
यूँ मुश्तहर तो हुआ पैरहन ज़माने में
हुआ है ज़िस्म का…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 27, 2017 at 7:30am — 25 Comments
22 22 22 22 22 2 ( बहरे मीर )
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
***********************************
सबके अंदर एक सिकंदर ज़िन्दा है
इसीलिये हर ओर बवंडर ज़िन्दा है
सब शर्मिन्दा होंगे, जब ये जानेंगे
अभी जानवर सबके अंदर ज़िन्दा है
मरा मरा सा बगुला है बे होशी में
लेकिन अभी दिमाग़ी बन्दर ज़िन्दा है
फूलों वाला हाथ दिखा असमंजस में
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
परख नली की बातों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 2, 2017 at 8:30am — 15 Comments
22 22 22 22 22 2
गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है
धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है
वो बयान से खुद साबित कर देते हैं
जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है
बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?
समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है
बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं
अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है
सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में
हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?
कभी फटा था…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 12 Comments
Added by maharshi tripathi on June 15, 2016 at 1:06pm — 14 Comments
बहर - 222 221 221 22
माला के मोती बिखर जा रहे हैं
सब एक एक कर अपने घर जा रहे हैं
कर आँखें नम छोड़कर यूँ अकेला
देकर इतनें गम किधर जा रहे हैं
ढूंढेगें फ़िर भी नही अब मिलेंगे
हमसा कोई भी जिधर जा रहे हैं
देखो पूरी हो गयी है पढ़ाई
ले बिस्तर वापस शहर जा रहे हैं
भगवन मेरे यार रखना सलामत
साथी मेरे जिस डगर जा रहे हैं
.
मौलिक व अप्रकाशित
(बी.टेक पूरा होने पर अपने मित्रों के जाने पर लिखी गज़ल )
Added by maharshi tripathi on June 3, 2016 at 11:30pm — 4 Comments
तुम सोचते हो जो नहीं हूँ मैं
जो कुछ भी मैं हूँ वो यही हूँ मैं।
दुश्वारियाँ करती नहीं व्याकुल
आता है जीना जिंदगी हूँ मैं।
जो सोचना है सोचिए साहब
मैं जानता हूँ कि सही हूँ मैं।
साहिल से यारी मैं करूँ कैसे
जाना है आगे इक नदी हूँ मैं।
अच्छा किसे लगता भला जलना
पर क्या करूँ कि रोशनी हूँ मैं ।
नीरज कुमार नीर / मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on October 28, 2015 at 11:08pm — 12 Comments
१२२ /१२२ /१२२ /१२२
उजाले बहाये धधक करके रोये
फ़लक पे सितारे चमक करके रोये।
कोई चाँदनी बेवफ़ा तो थी वर्ना
क्यूँ सीना जलाये दहक करके रोये।
नमक इश्क का पी बहुत थीं ये आँखें
अदा अब ये सारे नमक करके रोये।
जो गम हम मिटाने चले जाम उठाने
तो पैमाँ भराये छलक करके रोये।
तेरी खुश्बुओं से घर आँगन भराया
शजर फूल सारे महक करके रोये।
सलामत रहे तू दुआ है हमारी
ये सुन गम…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 7, 2015 at 9:24am — 11 Comments
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
आ के फ़िर से खूने जिगर तू कर, दिलो-जान तुझपे फ़िदा करूँ
कोई कैनवास नया दे, रंगे-वफ़ा मैं फ़िर से भरा करूँ
.
तेरी आँख को कभी झील तो कभी आसमां कहूँ और शाम
उसी खिडकी पर मै पलक बिछा, अपलक क़ुरान पढ़ा करूँ
.
नहीं चाँदनी है नसीब मेरा तो ख़्वाब रख के सिराहने
तेरी स्याह गेसुओं में छुपे हुए, जुगनुओं को गिना करूँ
.
तेरी बज्म के हैं जो क़ायदे, न कभी कुबूल रहे मुझे
मुझे तिश्नगी…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 10:31am — 12 Comments
22/22/22/22/22
तुमौर मै हमारी छोटी सी दुनिया
सागर से बारिश बारिश से नदिया
.
मीठी होती है मेहनत की रोटी
मैंने देखी है माँ दरते चकिया
.
ए.सी कूलर ने छीनी आबो-हवा
याद आती है नीम-छांव की खटिया
.
पक्की छत में जगह उसी को न मिली
सदियों रहा जो बन छप्पर की थुनिया
.
याद मुझे पुरनम बस तू है आती
मन महकाये जब बौंराई अमिया
.
दिल का सौदा क्या खाक वो करेगा?
नुकसान-नफ़ा सोचे तबीयते…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 8:50am — 8 Comments
2212 2212 22
क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ
दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ
.
मुफ़्त इक मुसीबत पाल बैठा हूँ
बुत की मुहब्बत पाल बैठा हूँ
.
क्यूँ ये सितारे हैं ख़फ़ा मुझसे?
जो तेरी चाहत पाल बैठा हूँ
.
वो बेवफा कहने लगा मुझको
जबसे मुरव्वत पाल बैठा हूँ
.
कोई तो तुम अब फ़ैसला दे दो
पत्थर की सूरत पाल बैठा हूँ
.
गर तू तगाफुल पे अड़ा है
सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ
.
वारे…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 15, 2015 at 8:30am — 19 Comments
२१२ / २१२ / २१२
इश्क के बाद है क्या मिला?
वाँ भी था याँ भी पर्दा मिला
.
अब सनम जबकि तुम खो गये
ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला
.
उनके वादों का हासिल है क्या?
हाथ वादों के वादा मिला
.
हमने दुनिया बहुत देखी पर
कोई मुझको न तुमसा मिला
.
लाख़ कोशिश की हमने मगर
दिल से दिल का न सौदा मिला
.
जब खुला ख़त मेरे वास्ते
नाम हर शय में उसका मिला
.
बेतकल्लुफ़ न इतना हो…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 3, 2015 at 9:00am — 16 Comments
२१२ २१२२ २१२२
आग पर आप भी इक दिन चलेंगे
मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे
.
फूल सा तन महकने ये लगेगा
याद में रातदिन जब दिल जलेंगें
.
चाँद सा रूप निखरेगा सुनहरा
इश्क की धूप में गर जो तपेंगें
.
आइना बातें भी करने लगेगा
यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे
.
रातभर रतजगे आँखें करेंगी
सुबहों-शाम आप भी रस्ता…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 31, 2015 at 7:48pm — 6 Comments
है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया
मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया
|
Added by नादिर ख़ान on July 26, 2015 at 4:30pm — 7 Comments
२२१२ २२१२ २२
फ़रियाद ये मेरी सुनो कोई
दो इश्क में मुझको डबो कोई
..
सात आसमां पार उनका गर है शह्र
कू-ए-सनम ही ले चलो कोई
..
है दोजखो जन्नत मुहब्बत में
आशिक हो पर शायर न हो कोई
..
जाने गज़ल तुम मुझको दो थपकी
बरसों न पाया मुझमें सो कोई
..
‘जान’ आखिरी वख्त अपना जाने कौन?
लो प्रीत के मनके पिरो कोई
.
जीने की ख्वाहिश फिर न जाग उट्ठे
मरता हूँ नाम उस का न लो…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 12, 2015 at 9:30am — 11 Comments
122 122 122 122
जहाँ वाले यूँ तो बताते रहे हैं
हमी अपनी ख़ामी छुपाते रहे हैं
वो अमराई , झूले वो पेड़ों के साये
बहुत देर तक याद आते रहे हैं…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 6:12am — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
पियाला वो किसी को भी, कभी भर कर नहीं देता
जिसे वो नींद देता है , उसे बिस्तर नहीं देता
कभी शीशा छुपाता है , कभी पत्थर नहीं देता
बहे गुस्सा मेरा कैसे , ख़ुदा अवसर नहीं देता
तुम्हारी हर ज़रूरत पर नज़र वो खूब रखता है
तुम्हारी ख़्वाहिशों पर ध्यान वो अक्सर नहीं देता
खुशी तुम भीतरी मांगो तो वो तस्लीम करता है
अगर बाहर के सुख मांगे तो वो भीतर नहीं देता
किया तुमने नहीं वादा शिकायत फिर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 7, 2015 at 5:30am — 18 Comments
1212 1122 1212 22 /112
फ़लक पे जो मुझे अक्सर दिखाई देता है
वो आम लोगों में तनकर दिखाई देता है
अभी हैं बदलियाँ चारों तरफ से घेरी हुईं
तभी तो चाँद भी बदतर दिखाई देता है
जो तोप ले के चले साथ अपनें , वो हमको
कहें हैं हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 23, 2015 at 9:00am — 22 Comments
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