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ग़ज़ल -चुप कह के, क़ुरआन, बाइबिल गीता है - ( गिरिराज )

22   22   22   22   22   2

हर चहरे पर चहरा कोई जीता है

और बदलने की भी खूब सुभीता है

 

सांप, सांप को खाये, तो क्यों अचरज हो

इंसा भी जब ख़ूँ इंसा का पीता है

 

अर्थ लगाने की है सबको आज़ादी

चुप कह के, क़ुरआन, बाइबिल गीता है

 

भेड़, बकरियों, खर , खच्चर , हर सूरत में

अब जंगल में जीता केवल चीता है

 

बादल तो बरसा था सबके आँगन में

उल्टा बर्तन रीता था, वो रीता है

 

फर्क हुआ क्या नाम बदल के सोचो तो

पहले जो थी सलमा अब वो सीता है

 

बन्द आँखों की दुनिया उल्टी है यारो

जिसने हारा सब कुछ वो ही जीता है  

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 545

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Comment by नाथ सोनांचली on March 24, 2017 at 5:32am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर अभिवादन, सांप, सांप को खाये, तो क्यों अचरज हो
इंसा भी जब ख़ूँ इंसा का पीता है
वाह बहुत खूब आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब .... हकीकत बयां करते अशआर की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई निवेदित हैं
Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on March 24, 2017 at 12:04am

बेहतरीन गजल ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on March 23, 2017 at 7:10pm

आदरणीय गिरिराज साहेब ......बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ........बधाई स्वीकार करें 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 23, 2017 at 5:16pm
बादल तो बरसा था सबके आँगन में
उल्टा बर्तन रीता था, वो रीता है...वाह आदरणीय वाह हर एक शेर लाजबाब..सादर
Comment by Mohammed Arif on March 23, 2017 at 2:08pm
आदरणीय गिरिराज जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल करें ।
Comment by Sushil Sarna on March 23, 2017 at 2:06pm

सांप, सांप को खाये, तो क्यों अचरज हो
इंसा भी जब ख़ूँ इंसा का पीता है

वाह बहुत खूब आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब .... हकीकत बयां करते अशआर की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

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