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देख तो ले तिलमिला कर ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122         2122

खुश हुआ खुद को भुला कर

या कहूँ मै तुझको पा कर

खुद को भी मै ने सताया 

दोस्ती को आजमा कर

ज़िंदगी का बोझ सर पे

चल रहा हूँ लड़खड़ा कर

मैने सच को सच कहा है

तू गिला से अब मिला कर

दर्द पिघले ,बह के निकले

कुछ तो ऐसा सिलसिला कर

हाथ चाहे तू झटक दे

मैने रक्खा दिल मिलाकर

ग़ैर के आंसू कभी पी

देख तो ले तिलमिला कर

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर 

ले धनक से रंग तू भी

फूल के जैसे खिला कर

*********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:29pm

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर ......वाह! क्या कहने है.

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 9:38pm

आदरणीय आपने बहर को बखूबी साधा है ... छोटे बहर के अपने खतरे होते हैं ,, अभिव्यक्ति को उचित ढंग से संयोजित न् कर सके तो सारी मेहनत पानी हो जाती है ,,, आपकी ग़ज़ल के चंद अशआर इसका शिकार हो गए हैं कुछ अच्छे शेर ग़ज़ल को संभाल ले गए हैं

बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 9:14pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी बात समझ गया हूँ , प्रयास इमानदरी से करूंगा , देखिये कहाँ तक सफल होता हूँ !! अभी बह्र को , सोच को , और बह्र के दोषों को एक साथ याद रखते हुये , निबाहने मे थोडी मुश्किल जा रही है !!!!

                     आपने इस योज्ञ समझा इसके लिये आपका बहुत बहुत आभार !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 8:01pm

भाई अरुन अनन्त जी ने जब बेमिसाल कामयाब की उपमा ही दे डाली तो अब आगे क्या कह सकता हूँ आदरणीय !! .. :-))

वैसे , आपकी सकारात्मक ऊर्जा और आपके गहन अनुभवों को शब्दों में ढला देखना चाहता हूँ अब. विश्वास रखियेगा मेरा.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 6:30pm

आदरणीय अरविन्द भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!! स्नेह बनाये रखें !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 6:28pm

आदरणीय अरुण भाई , आपको गज़ल पसन्द आई , ये मेरे शुभ सूचक है , उत्साह वर्धक है !!!!! आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 17, 2013 at 6:55am

खुश हुआ खुद को भुला कर

या कहूँ मै तुझको पा कर

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर ........... वाह!!!!!! बहुत ही शानदार गज़ल....... आदरणीय गिरिराज जी...... हृदय से दाद कुबूल करें.|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 16, 2013 at 11:43pm

आदरणीय गिरिराज छोटी बहर की उम्दा गज़ल . प्रत्येक अश'आर में भावों की सहजता मन की गहराइयों में उतर गई, बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 10:07pm

आदरणीय सुशील भाई आपके हृदय निकली सराहना मुझ तक सीधे पहुँची , हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 10:04pm

आदरणीय बडे भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार !!!!!

कृपया ध्यान दे...

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