हर मोड़ हर किनारे.
Added by Pradeep Kumar Kesarwani on August 19, 2012 at 1:41pm — No Comments
सत्य जानकर नहीं मानता, उहापोह में मन जी लेता
अमिय चाहता नहीं मिले तो, खूं के आँसू ही पी लेता..
अलकापुरी न जा पायेगा, मेघदूत यह ज्ञात किन्तु नित-
भेजे पाती अमर प्रेम की, उफ़ न करे लब भी सी लेता..
सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 19, 2012 at 9:00pm — 8 Comments
गीत:
लोकतंत्र में...
संजीव 'सलिल'
*
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
संसद में गड़बड़झाला है.
नेता के सँग घोटाला है.
दलदल मचा रहे दल हिलमिल-
व्यापारी का मन काला है.
अफसर, बाबू घूसखोर
आशा न शेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश…
Added by sanjiv verma 'salil' on June 23, 2012 at 8:10am — 11 Comments
गीत:
थिरक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
थिरक रही है,
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*
बाधाओं की चट्टानों पर
शिलालेख अंकित प्रयास के.
नेह नर्मदा की धारा में,
लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
धुआँधार का घन-गर्जन रव,
सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*
मौन मौलश्री ध्यान लगाये,
आदम से इन्सान बनेगा.
धरती पर रहकर जीते जी,
खुद अपना भगवान गढ़ेगा.
जिजीविषा सांसों की अप्रतिम
आस-हास बन बिखर रही है.
मृदुल चाँदनी…
Added by sanjiv verma 'salil' on June 9, 2012 at 11:59am — 6 Comments
मैं भी कुछ सुनाऊं तुमको,
जो ऐसी भी शक्ति दी होती
हे माँ तेरी चरणों में,
कुछ मेरी भी अर्जी तो होती
मैं दीन हूँ माँ समझो,
पर हीन न समझा करो
सीने से न अपने सही,
चरणों से न दूर करो
मैं पुत्र कुपुत्र हूँ माँ,
समझा न तेरे मन को
तुम तो माँ कुमाता नहीं,
समझो तो मेरे मन को
थोड़ा मुझ को भी दे दो माँ,
स्नेह अपनी झोली से तुम
है माँ बेटे का नाता,
माँ खोयी हो कहाँ तुम | …
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on June 7, 2012 at 1:00pm — 6 Comments
जिसका अंक है कोई, न रूप आकार है,
जो प्रकाश पुंज है, जो निर्विकार है,
कणों कणों से एक सुर में ये पुकार है,
वही तो सृजनकार है, वही तो सृजनकार है।
ये नगर ये…
ContinueAdded by इमरान खान on May 8, 2012 at 1:00pm — 8 Comments
जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.
हर कोई देखता है तुमको ही, रब…
Added by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:42am — 11 Comments
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.
होंठ तेरे गुलाबी ,शराबी नयन.
संगमरमर सा उजला है , तेरा बदन.
रूप यूँ ना सजाया - संवारा करो, टूट कर आईना भी बिखर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
सारी दुनिया ही तुम पर, मेहरबान है.
देख तुमको…
ContinueAdded by satish mapatpuri on April 5, 2012 at 6:58pm — 13 Comments
इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली
————
मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे
तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे
ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा
शाम यादों में ढली
इश्क़ की बात चली..
————…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:57pm — 22 Comments
दिल खोल गायें, तराना नये साल का.
सबको मुबारक हो, आना नये साल का.
खुशियाँ ही खुशियाँ, दिवाली ही दिवाली हो.
हर दिन सुहाना हो, रात मतवाली हो.
शांति- सुकून हो, नज़राना नये साल का.
सबको मुबारक हो, आना नये साल का.
प्यार बिना यारों, ये ज़िन्दगी बेकार है.
मिल्लत औ चाहत, अमन का आधार है.
सुख - समृद्धि हो, खज़ाना नये साल का.
सबको मुबारक हो, आना नये साल का.
मापतपुरी सबको हो,जलवा सिंगार का.
सबको सौगात मिले, उसके सच्चे प्यार का.
ऐसा हसीन हो,…
Added by satish mapatpuri on January 1, 2012 at 3:30am — 8 Comments
Added by satish mapatpuri on December 11, 2011 at 11:05pm — 1 Comment
Added by satish mapatpuri on December 5, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
प्यारे दोस्तो "दैनिक जागरण" ने "मेरा शहर मेरा गीत" आयोजन हेतु मेरा यानि कि आपके दोस्त सुमित प्रताप सिंह का गीत "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" का शीर्ष 3 स्थान (TOP 3) पर चयन किया है| इस गीत को प्रथम स्थान पर चयन हेतु SMS वोटिंग प्रक्रिया से गुजरना है| आपसे निवेदन है कि कृपया मेरे इस गीत को प्रथम स्थान दिलाने हेतु वोट…
ContinueAdded by SUMIT PRATAP SINGH on December 5, 2011 at 11:00am — No Comments
एक रचना:
कम हैं...
--संजीव 'सलिल'
*
जितने रिश्ते बनते कम हैं...
अनगिनती रिश्ते दुनिया में
बनते और बिगड़ते रहते.
कुछ मिल एकाकार हुए तो
कुछ अनजान अकड़ते रहते.
लेकिन सारे के सारे ही
लगे मित्रता के हामी हैं.
कुछ गुमनामी के मारे हैं,
कई प्रतिष्ठित हैं, नामी हैं.
कोई दूर से आँख तरेरे
निकट किसी की ऑंखें नम हैं
जितने रिश्ते बनते कम हैं...
हमराही हमसाथी बनते
मैत्री का पथ अजब-अनोखा
कोई न…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 2, 2011 at 8:00am — 5 Comments
कुछ चले हैं ,कुछ बढ़े हैं, कुछ चढ़े हैं हाँ मगर,
आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
बांटते हैं रोज लाखों लाख खुशियाँ , हाँ मगर,
आख़िरी इन्सान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
कौन समझाए हमें, ये है हमारी त्रासदी,
जागने भर में, अभी तक खर्च…
ContinueAdded by राजेश शर्मा on August 21, 2011 at 4:54pm — 2 Comments
प्यार-एकता की खुश्बू से महके चमन हमारा I
सारी दुनिया में सबसे आगे हो वतन हमारा I
कुर्बानी देकर पायी है आजादी की दौलत I
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो-छोड़ो बैर और नफ़रत I
देश के टुकड़े करने को, दुश्मन ने जाल पसारा है I
नींद से जागो, आज हिमालय ने हमको ललकारा है…
Added by satish mapatpuri on August 15, 2011 at 2:00am — 6 Comments
मौसम आया लुभावना मनभावना
चलो सखी झूला झूलें |
झूला झुलाने सखी पी मेरे आये
तन मन हुआ लुभावना
चलो सखी झूला झूलें |…
Added by mohinichordia on August 6, 2011 at 3:28pm — 3 Comments
बेल की पाती -कपूर की बाती.
बेला है थाली सजावन की.
सखी पावन सोमारी है सावन की .
सावन में शंकर को दूधो नहाओ.
रोरी और चन्दन का टीका लगाओ.
महीना है शम्भु मनावन की.
सखी पावन सोमारी है सावन की .
…
ContinueAdded by satish mapatpuri on July 26, 2011 at 11:00pm — No Comments
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