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मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .

 

जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.
हर कोई देखता है तुमको ही, रब तुम्हें आईना बनाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
कल कहीं तुम जुदा ना हो जाओ , बात ये सोचकर मैं डरता हूँ.
अपने गीतों में  अब  सदा के लिए , कैद तुमको मैं आज करता हूँ .
आके छुप जाओ तुम  ख्यालों में, मेरे शब्दों ने ही सजाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .              

               ----- सतीश  मापतपुरी

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on April 14, 2012 at 11:58pm

प्रदीप जी सराहना के लिए आभार . शर्मा साहेब, खूबसूरती का बखान मुझसे सिखाने की बात कहकर , आपने मुझे जो मान दिया उसके लिए सलाम करता हूँ . चटखते रंग में भटकते हुए आदरणीय सौरभ जी ,मित्र आपकी अदा पर हम कब से फ़िदा हैं ........ सराहना के लिए आभार . जवाहर जी , आपने सराहा ... मैं धन्य हुआ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 14, 2012 at 9:06pm

मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है . 

खूबसूरत अंदाज प्यारी प्रस्तुति ..मेरी कलम ने तुम्हे महबूबा बनाया .....


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Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2012 at 4:16am

भाई सतीशजी, इसे कहते हैं गीत को चटख रंग देना !

भँवरिया का लउकौलऽ साहेब, निकहा ओही में हमहूँ मय बाथा-बीपत बूड़ जइतीं.. .  :-))))))))))))))

Comment by राज लाली बटाला on April 14, 2012 at 2:47am

मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है . !! ख़ूबसूरती का बखान कैसे किया जाता है !! आज आपसे सिखा !! बहुत खूब !! सतीश  ji !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2012 at 11:58am

मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .   nishchit taur par aapki kalam ne mehbooba banaya hai.badhai.

Comment by satish mapatpuri on April 12, 2012 at 11:32pm

राजेश कुमारी जी तथा भ्रमर जी, आप दोनों का आभार

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 11:00pm

मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है . 

खूबसूरत अंदाज प्यारी प्रस्तुति ..मेरी कलम ने तुम्हे महबूबा बनाया ..जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 



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Comment by rajesh kumari on April 12, 2012 at 9:30pm


वाह सतीश जी श्रृंगार रस में कलम डुबाकर लिखी जान पड़ती है यह रचना सौंदर्य का कितना सुन्दर वर्णन किया है बहुत बधाई आपको |

Comment by satish mapatpuri on April 12, 2012 at 8:59pm

आभार सरिता जी

Comment by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 7:10pm

satish ji namaskar, 

khubsurat kavita.....badhai svikar karein...

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