भींगते तकियों से आँसू पी रही हैं दूरियाँ
मस्त हो नजदीकियों में जी रही हैं दूरियाँ
अनदिखी कितनी लकीरें खींच आँगन में खड़ीं
अनसुनेपन को बना बिस्तर दलानों में पड़ीं
बैठ फटती तल्खियों को सी रही हैं दूरियाँ
तोड़ देतीं फूल गर खिलता कभी एहसास का
कर रहीं रिश्तों के घर को महल जैसे ताश का
इन गुनाहों की सदा दोषी रही हैं दूरियाँ
प्यार में जब घुन लगा तो खोखलापन आ गया
भूतबँगले सा वहाँ भी खालीपन ही छा गया
ऐसे ही माहौल में…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 28, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
धरती के उस छोर पर
धानी चूनर ओढ़ कर
वसुधा मिलती हैं अनन्त से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!
बन्धन सारे तोड़ कर
लहरों की चादर ओढ़ कर
दरिया मिलता है किनारे से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ!!
पर्वतों से निकल कर
लम्बी दूरी चल कर
नदियाँ मिलती है सागर से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ!!
बसंती भोर में
खिले उपवन में
भँवरे फूलों से मिलते हैं जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!
स्वाति नक्षत्र के
वर्षा की…
Added by Meena Pathak on November 28, 2013 at 6:11pm — 32 Comments
गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
मेरी चिरैया कितना उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:30am — 47 Comments
मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?
सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में , कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी
काले कुंतल श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 12, 2013 at 8:00am — 25 Comments
न बिजलियाँ जगा सकीं,
न बदलियाँ रुला सकीं।
अड़ी रहीं उदासियाँ,
न लोरियाँ सुला सकीं।
न यवनिका ज़रा हिली,
न ज़ुल्फ की घटा खिली।
उठे न पैर लाज के,
न रूप की छटा मिली।
जतन किए हज़ार पर,
न चाँद भूमि पे रुका।
अटल रहे सभी शिखर,
न आस्मान ही झुका।
चँवर कभी डुला सके,
न ढाल ही उठा सके।
चढ़ा के देखते रहे,
न तीर ही चला सके।
वहीं कपाट बंद थे,
जहाँ सदा यकीन था।
जिसे कहा था हमसफ़र,
वही तमाशबीन…
Added by Ravi Prakash on October 23, 2013 at 12:00pm — 37 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:00am — 38 Comments
बोलो किसको राम कहूँ मै
*********************
सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 12, 2013 at 9:30pm — 38 Comments
नगरी-नगरी
फूटी गगरी
लेकर पानी
पीना है।
मेरी छानी
गारा-मिट्टी
तेरा आँगन
भीना है।
रेशम-रेशम
तेरा आँचल
मेरा कुर्ता
झीना है।
शैल-शिखर सा
मस्तक तेरा
मेरा बोझिल
सीना है।
दुनिया,तूने
बीच भँवर में
आस-आसरा
छीना है।
अन्धकार में
आँखें फाड़े
जुगनू-जुगनू
बीना है।
खुली हथेली
ख़ाली बर्तन
फिर भी हमको
जीना है।
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
Added by Ravi Prakash on October 7, 2013 at 4:30pm — 24 Comments
फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 9:00am — 37 Comments
Added by Ravi Prakash on October 2, 2013 at 6:00pm — 26 Comments
मूढ़ तू क्या कर सकेगा, अनुभवी जग को पराजित!
है सदा जिसको अगोचर, प्राण की संवेदना भी,
क्यों करे तू उस जगत से प्रेम-पूरित याचना ही,
तू करेगा यत्न सारे भावना का पक्ष लेकर,
किन्तु तेरे भाग्य में होगी सदा आलोचना…
ContinueAdded by अजय कुमार सिंह on September 25, 2013 at 2:00am — 15 Comments
अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!
मैं पड़ी थी,
एक युग से चिर निशा की कालिमा में कैद कल तक,
रश्मि से अनजान, रवि की लालिमा से भी अपरिचित,
दृष्टि में संकोच का संचार, भय से प्राण सिमटे,
दृग झुके से, अश्रु प्लावित, अधर भी अधिकार वंचित,…
Added by अजय कुमार सिंह on September 22, 2013 at 12:33am — 8 Comments
नव गीत
*******
आ चल फिर बच्चे हो जायें
खेलें कूदे मौज मनायें
बिन कारण ही,
रोयें गायें , हँसे हँसायें,
आ चल फिर बच्चे हो जायें !
मेरी कमीज़ है गन्दी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 4, 2013 at 6:00pm — 30 Comments
गर्जत बरसत सावन आया
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी
मेघों का दल आया है, सावन का संदेशा लाया है।
जल भरकर ये काले जलधर, जल बरसाने आया है॥
मेघों का दल आया है ......
चांदी जैसी बिजली चमकी, उमड़-घुमड़ आये बादल।
लगता है आकाश छोड़कर, धरती पर छाए बादल॥
गर्मी हम से रूठ गई, बरसात ने नाता निभाया है ।
मेघों का दल आया है ......
भँवरे फूल बगियां खुश हैं, माटी की सोंधी महक उठी।
पंछी सुर में…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 1, 2013 at 10:00am — 12 Comments
दिल से उतरा है रूह का तराना समझिये ।
उसकी बन्दगी में मिला ये नज़राना समझिये ।
दिल से दिल के तारों को जोड़कर ज़रा ,
मेरा ये अंदाजे बयाँ सूफियाना समझिये ।
........................................................................
बिन ताल कभी नाचा करिये, बिन सुर भी कभी गाया करिये |
अपने मुख पर एक गहन हंसी बेवज़ह कभी लाया करिये ।
फूलों ने कौन वज़ह मांगी गुलशन महकने से पहले ।
पक्षियों ने रब से क्या चाहा डालों पे चहकने से पहले…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 20, 2013 at 9:30pm — 5 Comments
अंतर मन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 10:30pm — 18 Comments
गीत
*********
मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ
मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ
तुम नृप के भी हो नृपराज
पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी
मै हूँ अमा की काली रात …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments
तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं
जब भी सोया अकेली रातों में
डूबता रहा तुम्हारी बातों में
कभी थे हाथ, तेरे हाथों में
हाँ! तुम ही तुम महकती थीं
तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं
जब होती थीं तुम तन्हाई में
विरह की सम्वेदित अंगड़ाई में
भावों की असीम गहराई में
साध चुप्पी, तुम बिलखती थीं
तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं
मुझे याद है वे सारे पल
वह परसों, आज और कल
जब टूटा था…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 8, 2013 at 5:00pm — 26 Comments
रचना ओ बी ओ नियमानुसार न होने और लेखक के अनुरोध पर हटा दी गई है |
एडमिन
2013071407
Added by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 11:30am — 12 Comments
चुरा लेता है दिल सबका ,
बड़ा चित चोर है मोहन ।
कि हर जर्रे में बसता है ,
नही किस ओर है मोहन ।
निगाहोँ में भरा हो जब ,
प्रभू के प्रेम का प्याला ।
दिखायी हर जगह देगा ,
तुम्हे वो बांसुरी वाला ।
हर सच्चे दीवाने को
यही महसूस होता है ,
है छाया हर जगह उसकी
बसा हर ठौर है मोहन ।
न दौलत का वो भूखा है ,
न रिश्वत से ही बिकता है ।
हमारी आँख का तारा ,
मोहब्बत से ही बिकता है ।
ज़माना कुछ…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on July 9, 2013 at 11:44am — 18 Comments
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