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प्रधान संपादक
आतंकवाद (लघुकथा)

आखिर पुलिस ने उस दुर्दांत आतंकवादी को मार गिराया, उसे मार गिराने वाले पुलिस अफ़सर की बहादुरी की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही थी तथा उसके लिए बड़े बड़े सम्मान देने की घोषणाएं भी हो रहीं थी. मीडिया का एक बड़ा दल भी आज उसका साक्षात्कार लेने आ रहा था. इसी सिलसिले में वह बहादुर अफ़सर तैयारियों का जायजा लेने पहुँचा.



"सब तैयारियां हो गईं?" उसने एक अधीनस्थ से पूछा

"जी सर !"

"क्या किसी ने लाश की शिनाख्त की:"

"नहीं सर, चेहरा इतनी बुरी तरह से…

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Added by योगराज प्रभाकर on April 26, 2012 at 12:13pm — 39 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आज की नारी

मैं हूँ स्वछन्द ,नीर की बदरी, जहां चाहे बरस जाऊँगी …

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Added by rajesh kumari on April 26, 2012 at 9:00am — 13 Comments

क्यों

गंग नहाये जात हैं,दूर करै तन पाप।

जौ उनका पापी कहौं,क्योंकर हो संताप॥



माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।

बेटी जनकर दुखी क्यों,हो जाते सरकार॥



आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव।

क्यों रखते कुछ एक से,निज मन में दुर्भाव॥



अनुशासन जन में रहे,बना देश कानून।

क्यों होता है तब यहां,रोज कत्ल कानून॥



अंधे से नहि पूछते,बुरे भले की बात।

अंधा तो कानून भी,शरण चले क्यों जात॥



ललचाइ अंखियां लखै,तिरिया बेटी आन।

जौ कोई इनकै… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 7:00am — 20 Comments

पेश है हाइकु....

पेश है हाइकु....

१.लाल हथेली
   शगुन के बहाने
   मेहंदी खिली.
२.मिली बधाई
   सपना सच हुआ
   बेटी पराई.
३.सु-संस्कार
   दफना दिये मूल्य
   बंगला-कार
४.करेला है
   नीम के झाड़ पर
   खूब खेला है.
५.धोबी बेचारा
    घर का न घाट का
    गधा सहारा.
६.ये घटनाएँ
   …
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Added by AVINASH S BAGDE on April 25, 2012 at 1:12pm — 13 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा :- गिद्ध

लघु कथा :- गिद्ध…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 11:46am — 42 Comments

कौन हूँ मैं... ??

कौन हूँ मैं... 

_______



आज फिर से वो ही ख्याल आया हैं,

आत्मा से उभर के एक सवाल आया हैं,

कि मैं कौन हूँ...??

कौन हूँ मैं... ?



हैं रंगमंच जो दुनिया ये,

क्यूँ अपने किरदार को भूल रहा,

जीना था औरो की खातिर,

क्यूँ अपने दुखों में झूल रहा,

क्यूँ मुझमें हैं अनबुझी प्यास,

क्यूँ खुशियों को मैं ढूँढ रहा,

अनभिज्ञ हूँ…

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Added by praveen on April 24, 2012 at 9:00pm — 10 Comments

निष्काम कर्म

        ज्वालाशर छंद

१६ ,१५ पर यति अंत में दो गुरू (२२)

**********************************************

 

संकीर्णताओं से बचाती, निष्काम कर्म भावना ही.

हो जायें प्रवृत्त मनुज सभी, अधार हो सदभावना ही.

कर्तव्य का बस बोध होवे,इच्छा न कुछ पाने की हो,

संकल्पना कहती सदा ये,आशा सुधर जाने की हो.

 कोई मार्ग खोजें मुक्ति का,आशय जीवन का यही है.

सद्कर्म से सम्भव बने यह,विचार दर्शन का सही…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 23, 2012 at 3:30pm — 14 Comments

आगॆ बढ़ कॆ बता,,,,

आगॆ बढ़ कॆ बता,,,,

------------------------------------

 हिम्मत है तॊ आगॆ बढ़ कॆ बता ॥

बिहार वाली ट्रॆन मॆं चढ़ कॆ बता ॥१॥



बिना टिकट गांव चला जायॆगा,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 23, 2012 at 1:30pm — 28 Comments

gazal...

पतंगों को यूँ  ढील मत देना.

कभी झूठी दलील मत देना.
हालात बना देंगे मजबूर तुझे.
नादान हांथों में कील मत देना.
 दुनिया है ये ताड़ बना सकती है 
इसकी हथेली पर तील मत देना
जिरह करनी है अपने-आप से गर.
खुद को जज्बातों का वकील मत देना.
तुम्हारे घर भी इज्जत का सामान है!
सरे -राह  इशारे  अश्लील मत देना.
अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on April 23, 2012 at 10:10am — 10 Comments

दोहा सलिला: अंगरेजी में खाँसते... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

अंगरेजी में खाँसते...

संजीव 'सलिल'

*

अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को  श्रेष्ठ.

हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..

*

टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.

बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..

*

जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.

भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..

*

नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?

हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..

*

जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.

जिस भाषा में…

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Added by sanjiv verma 'salil' on April 23, 2012 at 7:10am — 15 Comments

ज़िन्दगी खुद में ही तो एक जंग का एलान है.

ज़िन्दों और परिंदों का बस एक ही पहचान है.
ना ही थकना, ना ही रुकना बस और बस उड़ान है.
एक जगह जो रुक गया तो रुक गया उसका सफ़र.
इसलिए ही अब तो मंजिल रोज़ एक मुकाम है.
कौन कहता है जहां में ज़िंदा रहना है कठिन.
आदमी में है ही क्या एक जिस्म और एक जान है.
मौसमे बारिश गिरा देता है कितने आशियाँ .
हिम्मते मरदा है जो कि हर तरफ मकान है.
ज़िन्दगी में जंग ना तो क्या मज़ा मापतपुरी.
ज़िन्दगी खुद में ही तो एक जंग का एलान है.
          ----- सतीश मापतपुरी

Added by satish mapatpuri on April 23, 2012 at 3:58am — 10 Comments

इतनी रात गयॆ,,,,,,,,,,

इतनी रात गयॆ,,,

-------------------

इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं, एकांकी आना ठीक नहीं ॥

आयॆ हॊ तॊ ठहरॊ रात गुज़रनॆ दॊ, अब वापस जाना ठीक नहीं ॥



मिलना चाहा तुमसॆ पर,आस अधूरी रही…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 22, 2012 at 6:30pm — 12 Comments

"बनारस"

कुछ दिनों पहले घाट पर अपने मित्र मनोज मयंक जी के साथ बैठा था| रात हो चली थी और घाटों के किनारे लगी हाई मॉइस्ट बत्तियाँ गंगाजल में सुन्दर प्रतिबिम्ब बना रही थीं और मेरे मन में कुछ उपजने लगा जो आपके साथ साझा कर रहा हूँ| इस ग़ज़ल को वास्तव में ग़ज़ल का रूप देने में 'वीनस केसरी' जी का अप्रतिम योगदान है और इसलिए उनका उल्लेख करना आवश्यक है| ग़ज़ल में जहाँ-जहाँ 'इटैलिक्स' में शब्द हैं वे वीनस जी द्वारा इस्लाह किये गए हैं| ग़ज़ल की बह्र है…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 22, 2012 at 4:00pm — 28 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
प्रथ्वी दिवस हाइकु

पृथ्वी दिवस हाइकु 

(१ )
धन्य धरित्री 
बचाओ अभियान 
करो संकल्प  
(२ )
सुकृति धरा 
मात्र सम वन्दिता 
जल संचय
(३ )
पूज्य धरिणी
सुमणित प्रकृति 
वन्य रक्षण 
(४ )
सुढर भूमि 
ब्रह्माण्ड गौरव 
शीश नमन
(५ )
भू संरक्षण 
प्रदूषण मिटाओ 
धरा बचाओ 
(६…
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Added by rajesh kumari on April 22, 2012 at 2:30pm — 10 Comments

बच्चों की फरियाद



बंजर धरती दूषित हवा - जल, जंगल कटते जायेंगे.

 ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.

हरी - भरी धरती को आपने, बिन सोचे वीरान किया.

मतलब की खातिर ही आपने, वन - जंगल सुनसान किया.

नहीं बचेगा इन्सां भी, गर जीव - जंतु मिट जायेंगे.

ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.

ऐसे पर्यावरण में कैसे, कोई राष्ट्र विकास करेगा.

अब भी गर बेखबर रहे तो, माफ नहीं इतिहास करेगा.

रहते समय नहीं चेते तो, कर मलते रह जायेंगे.

ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम…

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Added by satish mapatpuri on April 22, 2012 at 2:45am — 7 Comments

कुछ हाइकु ....

१. बौराया आम

चहका उपवन

आया बसंत



२. गरजे घन

नाच उठा किसान

बुझेगी प्यास



३.दहेज़ भारी

कुरीतियों की मारी

वधु बेचारी



४.अंकुर बनी

अभी नहीं खिली थी

भ्रूण ही तो थी



५.शोर है कैसा

कुर्सी पे तो है बैठा

अपना नेता



६ धर्म की आड़

बाबाओ का व्योपार

दुखी संसार



७. ठाट बाट में

कानून की आड़ में

कैदी दामाद



८. टूटे सपने

डिग्रियां बनी भार 
 बेरोजगार



९.व्याकुल…
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Added by MAHIMA SHREE on April 21, 2012 at 5:30pm — 18 Comments

सज़ा

शब्दों की जुगाली
करत रहा मनवा ये मवाली
लुच्चे से ख़यालात
लफंगे से अहसास
बदमाश जज़्बात
सोच रहा हूँ
सुना दूं इन्हें
उम्रकैद की सज़ा
डायरी के पन्नों में

Added by दुष्यंत सेवक on April 21, 2012 at 5:27pm — 9 Comments

भूल नहीं पाया अभी तक

बात कुछ ज्यादा पुरानी नहीं है . आंदोलित कर्मचारी संगठनों द्वारा अपनी मांगों को शासन तक ज्ञापन के माध्यम से पहुँचाने हेतु निर्णय लिया गया कि सर्व प्रथम सभी कर्मचारी अपने - अपने कार्यालय में एकत्रित होंगे. फिर कार्यक्रम स्थल पर अपने -अपने बैनर के साथ जलूस के रूप में पहुचेंगे जहाँ पर मानव श्रखला बनाकर प्रदर्शन किया जायेगा. सवेरे से ही विभिन्न कार्यालयों के कर्मचारी अपने-अपने कार्यालय से एक जलूस के रूप में अपनी मांगों के समर्थन में नारे लगाते हुए पहुँचने लगे और मानव…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 21, 2012 at 2:30pm — 2 Comments

जिससे इंसां का भी दर्जा नहीं पाया हमने......

जिनसे इंसां का भी दर्जा नहीं पाया हमने,

मुद्दतों ऐसे ही इंसानों को पूजा हमने.

.

प्यार की पौध के मिटने से तो मर जायेंगे,

खून के अश्क से बागान को सींचा हमने.

.

हाँ उजाला नहीं होना मेरी इन राहों में,

शम्स ए पुरनूर से पाया ये अँधेरा हमने.

.

हमने मुंसिफ के भी हाथों में जो खंजर देखे,

कांपता दिल था मुक़दमा नहीं डाला हमने.

.

वहशी लोगों में किसी कांच से नाज़ुक हम थे,

हुज्जतों से बड़ी दामन ये बचाया…

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Added by इमरान खान on April 21, 2012 at 1:30pm — 8 Comments

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