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आखिर पुलिस ने उस दुर्दांत आतंकवादी को मार गिराया, उसे मार गिराने वाले पुलिस अफ़सर की बहादुरी की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही थी तथा उसके लिए बड़े बड़े सम्मान देने की घोषणाएं भी हो रहीं थी. मीडिया का एक बड़ा दल भी आज उसका साक्षात्कार लेने आ रहा था. इसी सिलसिले में वह बहादुर अफ़सर तैयारियों का जायजा लेने पहुँचा.

"सब तैयारियां हो गईं?" उसने एक अधीनस्थ से पूछा
"जी सर !"
"क्या किसी ने लाश की शिनाख्त की:"
"नहीं सर, चेहरा इतनी बुरी तरह से क्षत विक्षत हो चुका था कि पहचान असंभव थी"
"क्या कोई उसकी लाश लेने पहुँचा था ?"
"जी नहीं सर"
"ओके !, क्या किसी को इस सिलसिले में कुछ कहना या पूछना है?"
तभी एक कांस्टेबल ने धीरे से उस अधिकारी के कानो में कहा:
"उसकी रिक्शा का क्या करें सर?".     

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 8:08pm
आखिरी पंक्ति में खुलता सस्पेंस सीधा दिमाग पर असर करता है और कितना कुछ सोचने पे मज़बूर करता है। बेहतरीन लघुकथा। नमन आदरणीय योगराज सर।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 7:38pm

आदरणीय प्रभाकर सर जी,  वाह सर जी!  क्या खूब?  शानदार, योजनाबध्य तरीके से पुलिस की तत्परता और उत्कृष्ट देश सेवा का इससे अच्छा और क्या मिसाल हो सकता है?  आपकी लेखनी को कोटि-कोटि नमन्! तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 5:10pm

आपके उत्साह वर्धन के लिए ह्रदय से आभार भाई अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव" जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 3, 2012 at 12:27pm

उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार दुष्यंत भाई.

Comment by दुष्यंत सेवक on May 3, 2012 at 11:58am

एक अत्यंत ज्वलंत विषय पर एक मर्मस्पर्शी रचना लिखी है आदरणीय प्रधान संपादक सर, यह भी एक पक्ष है आतंक के विरुद्ध लड़ाई का..झूठे श्रेय की होड़ में कई बार ऐसे वाकये भी सामने आते हैं... बहरहाल रचना के लिए बधाई स्वीकारें सर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 1, 2012 at 2:22pm

भाई शुभ्रांशु जी - सही विश्लेषण किया है.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 1, 2012 at 2:21pm

आभारी हूँ भाई शैलेन्द्र कुमार मृदु जी...

Comment by Shubhranshu Pandey on May 1, 2012 at 1:13pm

मार गिराया गया एक और आतंकी....... आतंक पैदा कर रहा था.....  अपने रिक्शे से सडकों पर, बेबसी में ..परिवार पर, भाडे के लिये मुसाफ़िर पर,,,,,,,,,,,, अब स्थिती गंभीर किन्तु नियंत्रण में है........

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 12:17pm

यथार्थता और संवेदना से ओतप्रोत इस लघु कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय प्रभाकर सर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 29, 2012 at 7:32pm

सादर आभार लड़ीवाला जी

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