For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,137)

पंक्तियाँ...

पंक्तियाँ

 

v एक दिन देखना देश हमारा इतना हाईटेक हो जाएगा,

दूल्हा भी घूंघट दुल्हन का रिमोट से ही उठाएगा!

 

v आयेंगे तो जा न पायेंगे ये हमारी ज़िम्मेदारी है,

और जायेंगे भी कैसे जनाब ये अस्पताल ही सरकारी है!

 

v पुरुषो से हैं कहीं आगे आजकल की महिलाएं,

 धडल्ले से हैं पीती दारू वो भी बिना बरफ मिलाये!

 

v पत्नियां घूमें सेल में ढूंढें महंगी साड़ी,

पति बेचारा जेब टटोले कभी…

Continue

Added by Ranveer Pratap Singh on August 25, 2012 at 9:53pm — 2 Comments

फिर कोई धोखा खा बैठे.....

फिर कोई धोखा खा बैठे

फिर द्वार तुम्हारे आ बैठे

सीधी साधी बातों में

हम अपना मन उलझा बैठे

गुड्डे गुडिया के दौर में हम तो

प्रीत का रोग लगा बैठे

जो बात कभी न समझी तुमने

हम खुद को वो समझा बैठे

जो आया ठोकर लगा गया

पत्थर दिल ऐसा पा बैठे

कच्ची सी वो उमर थी लेकिन

हम पक्की कसमें खा बैठे

दो लफ्जों की बात थी सारी

वो क्या-क्या लिखवा बैठे

जो गीत अधूरे छोड़ गए तुम

हम आज वही फिर गा बैठे

फिर कोई धोखा खा…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 25, 2012 at 9:43pm — 2 Comments

मुझे यकीं है, समझ न सकोगे तुम

मुझे यकीं है

समझ न सकोगे तुम

 

दुनिया की रस्में

उल्फत की कसमें

क्यूंकि तुम हो ही नहीं

खुद के वश में



तुम हर रोज चलते हो

नित नए सांचे में ढलते हो…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 3:02pm — 3 Comments

तुमसे हारा ( एक पाती उसके नाम)

याद है तुम्‍हें वे ढाक के पेड़

जहां ऐसे ही सावन में

हम-तुम भींगे थे.....

और....कितना रोया था मैं

कि पहली छुअन की सिहरन

को पचा नहीं पाया ...



उस विशाल मैंदान की मांग.....

जब मेरे साइकिल पर

तुम बैठी थी और

उसकी हैंडल मुड़ गई थी

क्‍योंकि मेरा ध्‍यान तो.....



अक्‍सर वहां जाता हूं

तुम्‍हें ढूंढने

और लौटकर फिर सारी रात…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 2:40pm — 2 Comments

नवमन

नव मन की नव कल्पना,
नव अन्नत में उड़ने की है।
समस्त जगत के अंदर,
नव चेतना भरने की है॥

चाहता है यह नव मन,
मेरा संसार नवल हो जाये।
प्रेम क्षमा दया करुणा,
हर जन उर अंतर भर जाये॥

सब बन जायें अपने भाई,
ऊंच नीच भेद मिट जाये।
देश जाति धर्म भाषा के,
बंधन सारे टुट जायें॥

सब पर सब विश्वास करें,
अविश्वास की न हो रेखा।
इस मेरे नव मन ने भाई,
बस यही है सपना देखा॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 1:02pm — 7 Comments

ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों की नेमतें

ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों  की नेमतें
 
बोलते चेहरों को सुनता ही रहा ,
वो अदद एक ख्वाब बुनता ही रहा |
 …
Continue

Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:41am — 10 Comments

पापा गुड़िया क्यों नहीं सोती?

एक गुड़िया जो बहुत ही सस्ती है।लोग उसे खरीदते हैं चंद रुपयों में।बच्चों की खातिर या सजाने के लिए।वे गुड़ियां जो तराशबीनों के हाथ पड़ती हैं,उन्हें वे विविध रूपों में तराशते हैं और फिर उसे चौकीदार की नौकरी दे देते हैं,बिना प्रमाण पत्र के।वह गुड़िया किसी मेज या स्टूल या आलमारी पर रात-दिन खड़ी रहती है,पहरा देती है बिना वेतन के।

वहीं वे गुड़ियां जो नादान बच्चों के हाथ जाती हैं,उन्हें वे पटकते हैं,धूल पोतते हैं,शादी रचाते हैं,जूड़ा बांधते हैं और फिर अपन पास रखकर सोते हैं।उसे थपकी दे देकर सुलाते… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 11:40am — No Comments

ग़ज़ल - तेरी याद माँ चाशनी है

 
ग़ज़ल - तेरी याद माँ चाशनी है
 
हवा में नमी कुछ बढ़ी है ,
मगर अब भी नीयत वही है |
 
रहा है भंवर का ये…
Continue

Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:30am — 17 Comments

हाइकु बक्सा : विविध

(१) झुकी नजरें

खामोशी इजहार

पहला प्यार

(२) सब अपना

हरेक का सपना

कलियुग है

(३) भारी टोकरा

रोकड़ा ही रोकड़ा

उपरी आय

(४) संतों का बैरी

लुटेरों का चहेता

हमारा नेता

(५) अँगूठा छाप

पढ़े-लिखों का बाप

जनतंत्र है

(६) संकीर्ण सोच

इंसानी खुराफात

ये जात-पात

(७) तिल का ताड़

मजहब की आड़

आतंकवाद

(८) बेमेल दल

लाचार सरकार

गठबंधन

(९) सब ने ठगा…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 25, 2012 at 10:48am — 4 Comments

=====ग़ज़ल =======

=====ग़ज़ल =======



एक तूफाँ यहाँ से गुजरा है

आइना जो मकाँ से गुजरा है



आरजू भीगने की फिर जागी

अब्र इक आसमाँ से गुजरा है



इश्क करके दिले नाशाद हुए

दर्द दिल और जाँ से गुजरा है



चश्म क्यूँ…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 9:25am — 2 Comments

अचानक नहीं मिलती सफलता

जिंदगी में सफलता पाने के लिए जरूरी है, सबसे पहले उसको ढूंढा जाए. जो आपके और आपकी सफलता के बीच में बाधक बना हुआ है. संभव है कि वह आपके पास नहीं तो बहुत दूर भी नहीं होता है. हम जिनको अपना कहते है कि उनको हमारी सफलता पर गर्व होता है. इसलिए वह चार से ज्यादा नहीं हो सकते. क्योंकि किसी भी परिस्थिति में हम अपने दाएं-बाएं और आगे-पीछे वालों के ही नजदीक होते है. हम हमेशा उन चारों के सुरक्षा घेरे में स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है. इन चारों की वजह से ही हम अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब होते है.…

Continue

Added by Harish Bhatt on August 25, 2012 at 2:30am — 1 Comment

ग़ज़ल--जिंदगी एक रेल होती है.......

जिंदगी एक रेल होती है
ये न समझो कि खेल होती है।

जिंदगी का सफर बहुत लम्बा,
रूक गये तो ये फेल होती है।

वो जहाँ चाहे मोड दे हमको,
हाथ उसके नकेल होती है।

आजकल जिंदगी की भागमभाग,
पानी कम ज्यादा तेल होती है।

आज कानून ही बदल गया है,
बोल दो सच तो जेल होती है।

अब तो राशन की लाइने या सडक,
हर जगह धक्का पेल होती है।।।।

सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 11:00pm — 10 Comments

सलाम राजगुरु !

जंगे-आज़ादी के जांबाज़ सूरमा अमर बलिदानी  राजगुरु के जन्म दिवस  पर आज तिरंगे को सलाम करते हुए तीन कह-मुकरियां  विनम्र  श्रद्धांजलि  के रूप में सादर समर्पित कर रहा हूँ



सब कुछ अपना हार गये वो

प्राण भी अपने वार गये वो

बिना किये कुछ भी उम्मीद

ऐ सखि साधु ? नहीं शहीद !…





Continue

Added by Albela Khatri on August 24, 2012 at 9:59pm — 4 Comments

जूठन [लघु कथा ]

एक सुसज्जित  भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद  उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां  अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से…

Continue

Added by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 8:33pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुम्हलाते मस्तिष्क (कुछ हाइकू )

 

१.
धूमिल ओज .
मासूम बचपन .
बस्तों का बोझ .
२.
कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
३.
जीवन बूँद .
उन्मुक्त बचपन .
घिरती धुंध .
४.
रटंत शिक्षा .
कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .
५.
ढूँढे किरण .
बाल्यांकुर खिलते .
नेह सिंचन…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments

सुमन

ऐ सुमन ऐसे न घूरो,मेरा दिल जला जाता है,

मैं वो भूला राही हूं,जो भूला चला जाता है।

मैं तो बहता पानी हूं,है जिसका नहीं भरोसा,

कल वां था आज यहां कल,कहीं और चला जाता है....................॥



कांटों से है राह भरा,जिस पर चलना मजबूरी,

तेरा मेरे साथ चलना,ऐसा भी क्या जरूरी।

हो फूल नाजुक तुम हवा,के साथ हिल मिलकर रहो,

गर्दिशों में आफतों में,तू फिर क्यों चला जाता है...................॥



तू जा किसी का हार बन,शोभा बढ़ा दिलदार की,

या तू किसी मंदिर में… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 24, 2012 at 5:57pm — 4 Comments

भाषा बिना -----

जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?

मैं जब सोचती हूँ तुम्हें

और खोती हूँ ,

तुम्हारे ख्यालों में ,

सपने सजाती हूँ नयनों में ,

और मुझे बहुत दूर जहाँ

के पार ले जाते है मेरे सपने

वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास

मैं नहीं खोलती अपना मुंह

फिर भी मैं बतयाती हूँ

फूलों से,तितलियों से, बहारों से

और तुमसे .

मेरे अहसास में होते हो तुम ,

बिन बोलें करती…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — 8 Comments

शायद ये कुछ बताएं तुम्हें-------

यह जो तुम्हारे आस पास

नदियाँ है ना.

इनको कभी देखना मेरी

नज़र से .

यह तुम्हें बिना थके

बिना…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — No Comments

कह मुकरियाँ

(आदरणीय  अम्बरीश जी रहा नहीं गया   कह मुकरियाँ  मैंने भी लिखी सादर देखे :..)

 
 
वारंट निकालों चाहे जितने 
हाथ पुलिस के वे  न आते 
गुण्डों का भी पोषण करते 
क्या सखी नेता ? नहीं…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 24, 2012 at 1:30pm — 9 Comments

तीन मुक्तक ......

मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये

लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए

देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी

धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए



चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए 

घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए 

पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में 

जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए



ईमान अब संदेह का पर्याय हो…

Continue

Added by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:00am — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service