For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

ग़ज़ल--जिंदगी एक रेल होती है.......

जिंदगी एक रेल होती है
ये न समझो कि खेल होती है।

जिंदगी का सफर बहुत लम्बा,
रूक गये तो ये फेल होती है।

वो जहाँ चाहे मोड दे हमको,
हाथ उसके नकेल होती है।

आजकल जिंदगी की भागमभाग,
पानी कम ज्यादा तेल होती है।

आज कानून ही बदल गया है,
बोल दो सच तो जेल होती है।

अब तो राशन की लाइने या सडक,
हर जगह धक्का पेल होती है।।।।

सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 11:00pm — 10 Comments

सलाम राजगुरु !

जंगे-आज़ादी के जांबाज़ सूरमा अमर बलिदानी  राजगुरु के जन्म दिवस  पर आज तिरंगे को सलाम करते हुए तीन कह-मुकरियां  विनम्र  श्रद्धांजलि  के रूप में सादर समर्पित कर रहा हूँ



सब कुछ अपना हार गये वो

प्राण भी अपने वार गये वो

बिना किये कुछ भी उम्मीद

ऐ सखि साधु ? नहीं शहीद !…





Continue

Added by Albela Khatri on August 24, 2012 at 9:59pm — 4 Comments

जूठन [लघु कथा ]

एक सुसज्जित  भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद  उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां  अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से…

Continue

Added by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 8:33pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुम्हलाते मस्तिष्क (कुछ हाइकू )

 

१.
धूमिल ओज .
मासूम बचपन .
बस्तों का बोझ .
२.
कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
३.
जीवन बूँद .
उन्मुक्त बचपन .
घिरती धुंध .
४.
रटंत शिक्षा .
कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .
५.
ढूँढे किरण .
बाल्यांकुर खिलते .
नेह सिंचन…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments

सुमन

ऐ सुमन ऐसे न घूरो,मेरा दिल जला जाता है,

मैं वो भूला राही हूं,जो भूला चला जाता है।

मैं तो बहता पानी हूं,है जिसका नहीं भरोसा,

कल वां था आज यहां कल,कहीं और चला जाता है....................॥



कांटों से है राह भरा,जिस पर चलना मजबूरी,

तेरा मेरे साथ चलना,ऐसा भी क्या जरूरी।

हो फूल नाजुक तुम हवा,के साथ हिल मिलकर रहो,

गर्दिशों में आफतों में,तू फिर क्यों चला जाता है...................॥



तू जा किसी का हार बन,शोभा बढ़ा दिलदार की,

या तू किसी मंदिर में… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 24, 2012 at 5:57pm — 4 Comments

भाषा बिना -----

जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?

मैं जब सोचती हूँ तुम्हें

और खोती हूँ ,

तुम्हारे ख्यालों में ,

सपने सजाती हूँ नयनों में ,

और मुझे बहुत दूर जहाँ

के पार ले जाते है मेरे सपने

वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास

मैं नहीं खोलती अपना मुंह

फिर भी मैं बतयाती हूँ

फूलों से,तितलियों से, बहारों से

और तुमसे .

मेरे अहसास में होते हो तुम ,

बिन बोलें करती…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — 8 Comments

शायद ये कुछ बताएं तुम्हें-------

यह जो तुम्हारे आस पास

नदियाँ है ना.

इनको कभी देखना मेरी

नज़र से .

यह तुम्हें बिना थके

बिना…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — No Comments

कह मुकरियाँ

(आदरणीय  अम्बरीश जी रहा नहीं गया   कह मुकरियाँ  मैंने भी लिखी सादर देखे :..)

 
 
वारंट निकालों चाहे जितने 
हाथ पुलिस के वे  न आते 
गुण्डों का भी पोषण करते 
क्या सखी नेता ? नहीं…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 24, 2012 at 1:30pm — 9 Comments

तीन मुक्तक ......

मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये

लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए

देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी

धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए



चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए 

घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए 

पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में 

जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए



ईमान अब संदेह का पर्याय हो…

Continue

Added by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:00am — 11 Comments

बस करो अब भागना ---------

 क्यों कर जाते है परिस्थितियों से पलायन हम ,

ये परिस्थितियां ही तो सिखाती है हमें जीना

पलायन में कहाँ होती है ,

स्थितियों को बदलने की इच्छा,

फिर क्यों नहीं हम परिस्थितियों का सामना करते रूककर ,

आखिर कहाँ जा सकते है भागकर .

जहाँ जायेंगें वहां  की स्थितियां ,

फिर खड़ी होंगी बन कर परिस्थितियां

इनका कोई अंत नही ,

तो बस करो अब भागना

और करो दृढ़ निश्चय

परिस्थितियों से संघर्ष का…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 11:00am — 7 Comments

नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही

नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही

रही जो याद वो शहद सी मीठी बात सही



ग़मों में मुस्कुरा रहा हूँ गहरे जख्म छुपा

दिले-नाशाद क्यूँ फिरूँ जो रहना शाद सही



उजाले चीखने लगे जो तुझको देख अगर

अँधेरी गर्दिशों भरी ही काली रात सही



तुझे तो था…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 24, 2012 at 10:14am — 6 Comments

आओ सम्वाद करें

आओ सम्वाद करें

चमन में मुरझाते हुए फूलों पर

जंगल में ख़त्म होते बबूलों पर

माली से हुई  अक्षम्य भूलों पर

सावन में सूने दिखते  झूलों पर …

Continue

Added by Albela Khatri on August 23, 2012 at 11:30pm — 4 Comments

आईने से निगाहें हटा लीजिये

आईने से निगाहें हटा लीजिये
या निगाहों में हम को पनाह दीजिये

आपको दिल ने समझा है अपना नबी
थोडा अपने भी दिल को मना लीजिये

आप ही आप हैं हर निगाह हर तरफ
आये ना गर यकीं आजमा लीजिये

चश्म बेचैन है रौशनी के लिए
ऐ निहां अब तो परदा उठा दीजिये

हम ही हम हैं दीवाने हमीं बेफहम
आप भी होश थोडा गवां दीजिये

बोलो कब रहे तिश्नगी में नज़र
इश्क का जाम अब तो लुटा दीजिये

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 23, 2012 at 8:30pm — 9 Comments

नव-मीडिया : दशा, दिशा एवं दृष्टि

(0)
टीका डी एन ए सरिस, गाड-पार्टिकिल चार |
कई सदी से डालता, गहन असर संचार |
गहन असर संचार, सरस मानव का जीवन |
दिन प्रति दिन का सार,…
Continue

Added by रविकर on August 23, 2012 at 7:30pm — No Comments

एक प्रेम कविता

जब भी गुमसुम तन्‍हा तट पर

बरबस तुम आ जाओगे

वहीं लहर के श्रृंग तोड़ते

मुझको तुम पा जाओगे

 

बिछुड़े पल के दीप तले

जब अश्रु अर्घ्‍य चढ़ाओगे

वहीं शिखा की छाया छूते

मुझको तुम पा जाओगे

 

छोड़-छोड़ सौन्‍दर्य प्रसाधन

जब कुंतल तुम बिखराओगे

वहीं किसी दर्पण में हंसते

मुझको तुम पा जाओगे

 

ना कहना ना मुझको छलिया

फिर किसको प्रीत सिखाओगे

पायल,कंगन,बिंदी,अंजन में

मुझको तुम पा…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on August 23, 2012 at 4:08pm — 9 Comments

भ्रूण हत्या- समाज का एक कड़वा सच

स्वपन दुनियाँ से जागो आज

भ्रूण हत्या का करो ना पाप

आत्मा की उसकी सुनो गुहार

देखि नहीं जो, अब तक संसार

करती फरियाद वो चीख पुकार

क्यूँ करता मेरी, हत्या समाज

 

कोई तो दो मेरा दोष बता

कन्या होने की दो ना सजा

माँ बेबस लाचार, तू क्यूँ है बता

हृदय अपना शूल ना बना

मुझ पर थोडा तरस तो खा

निर्मम हत्या से मुझे बचा

 

अपने सानिध्य में मुझको ले

वंचित न कर अधिकार मेरे

दे मुझको संस्कार…

Continue

Added by PHOOL SINGH on August 23, 2012 at 3:00pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
प्रलय ,ओ बी ओ में मेरी पचासवीं प्रविष्टि,

छंद:'कुकुभ'  लिखने का पहला प्रयास  (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)

प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी…

Continue

Added by rajesh kumari on August 23, 2012 at 1:00pm — 22 Comments

दो कवितायेँ

1. सब मिल जुल कर जियो



भाई देखो यह देश और दुनियां तो सबकी हैं .

किसी एक के बाप का हक नही है इस पर .

फिर क्यों झगड़ा करते हैं हम बेवजह ?

जब तक जियो सब मिल जुल कर जियो यार .

तेरा, मेरा, इसका,उसका छोडो यह तकरार .

सब मिल कर रहो आपस में करो प्यार .

क्या रखा हैं हेगडी में एक दिन मर जाओगे यार .



2. सरोकार



तुम्हारे हमारे सरोकार क्या हैं

तुम क्या समझते हो परोपकार क्या है ?

किसी को देना अठन्नी-रुपया

यह परोपकार…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 12:30pm — 5 Comments

सरोकार -----

तुम्हारे हमारे सरोकार क्या हैं

   तुम क्या समझते हो

   परोपकार क्या है ?

किसी को देना अठन्नी-रुपया

यह परोपकार नहीं  है भैया ,

  उसे इस काबिल बनाने में करो मदद

   कि वो खुद कमाले …

Continue

Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 12:19pm — 6 Comments

तीन कह-मुकरियां -----[नवल का नव प्रयोग ]


१.
वह जब आती मन को भाती,
सबके जीवन को हर्षाती ,
कभी कभी देती है तरसा,
क्यों सखा सजनी, ना 'बरसा'.

२.
वो जब आती मैं सो जाता ,
गहरे सपनों में खो जाता ,
उस संग हो जाता 'रिंद'
क्यों सखा सजनी, ना नींद
 ३.
सुरूर उसका जब छाता है .
रोम रोम सा खिल जाता है.
उसके आगे सब खराब .
क्यों सखा सजनी,ना शराब.

Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 11:00am — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service