For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमसे हारा ( एक पाती उसके नाम)

याद है तुम्‍हें वे ढाक के पेड़
जहां ऐसे ही सावन में
हम-तुम भींगे थे.....
और....कितना रोया था मैं
कि पहली छुअन की सिहरन
को पचा नहीं पाया ...

उस विशाल मैंदान की मांग.....
जब मेरे साइकिल पर
तुम बैठी थी और

उसकी हैंडल मुड़ गई थी
क्‍योंकि मेरा ध्‍यान तो.....

अक्‍सर वहां जाता हूं
तुम्‍हें ढूंढने
और लौटकर फिर सारी रात
आंसुओं को गटकता रहता
मेरा एक अपराध.....

किस तरह तड़पी होगी
तुम्‍हारी वो बेबश रात
जब मेरे इनकार को
सुनकर थम नहीं पाया
तुम्‍हारे हृदय का लहू
और हाहाकार करता
निकल पड़ा जख्‍म का
बहाना करके...........

अब भी वे कटी कलाइयां
घेर लेती हैं मुझे
ये कहते हुए कि
मेरे कंगन देख लो...........
बस एक इनकार
यह मेरा अपराध
हो सके तो कभी
माफ कर देना
 
तुम्‍हें ना कहना
तुम्‍हारे ही वैभव ने
मुझे सिखाया
तुम्‍हारी खूबसूरती
मेरा खिलौना नहीं थी
कि तुम्‍हारे जाने के बाद........
ना बरसात हुई.........
ना मेघ आए.......

मेरी वो बेधड़क हंसी
जिससे तुम विवश थीं
वो चटक गई.........
तुम्‍हारी मुहर का रंग.....
निकलता ही नहीं
 
रूप की तारीफ़
कर देता हूं
किंतु् पीने की कोशिश करते ही......
लगता है अम्‍ल.......
हलक में दौड़ गया

तुम्‍हारी गुलाबी बातें
मेरे अंधेरे में
बेलौस आती बातें.........
'हमेशा तुम्‍हारा' तो
नहीं लिख सकता
लेकिन 'तुमसे हारा'
लिख ही सकता हूं
केवल,
तुमसे हारा .........................................

Views: 268

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 12:21pm

राजेश जी नमस्कार

बहुत ही सुंदर शब्दों का मिश्रण ....सुंदर रचना के लिए बधाई

फूल सिंह

Comment by Yogi Saraswat on August 27, 2012 at 10:49am

तुम्‍हें ना कहना
तुम्‍हारे ही वैभव ने
मुझे सिखाया
तुम्‍हारी खूबसूरती
मेरा खिलौना नहीं थी
कि तुम्‍हारे जाने के बाद........
ना बरसात हुई......... ना मेघ आए.......

झा साब , बहुत ही बढ़िया शब्द ! आपने पुराने दिनों की याद दिला दी ! बहुत बढ़िया , खूबसूरत शब्दों में लिखी रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service