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मैं तो हस्ताक्षर करता था ? (लघुकथा)

सर! एक काम था आप से,अगर इजाजत हो तो कहूं-अर्जुन बाबू ने लेखपाल से कहा।

हां कहिए-वह उन्हें ऊपर से नीचे तक देखते हुये बोला।

सर! नसीबदार से कहिए कि वह इन कागजातों से अपने दस्तखत हटा ले-अर्जुन ने अपना चश्मा ठीक करते हुये कहा।

लेखपाल गरज पड़ा-बड़े बेवकूफ हो तुम?क्या बकवास करते हो?कहीं साइन भी परिवर्तनेबुल है,और वो भी डेड आदमी के?

अरे साहब! काहे को एंग्री होते हो(अपने आदमी की तरफ मुड़कर)तिलक ब्रीफकेस इधर ला न।हां सर! ये 50-50 के 10 बंडल हैं-अर्जुन बाबू ने ब्रीफकेस लेखपाल की ओर बढ़ाते… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 8:42pm — 1 Comment

माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया

हमको देखे बिना उसने हाँ कह दिया

मेरे खाना-ए-दिल को मकाँ कह दिया



चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए

माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया



आग तडपी तपिश तिल-मिलाने लगी

सर्द से कोहरे को धुआँ कह दिया



छोड़ के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 30, 2012 at 1:57pm — 8 Comments

प्रकृति मेरी प्रेयसी

सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!

धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!



संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!

संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!



जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!

परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!



तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!

पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!



सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!

सो…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments

उंगलियाँ हम पे यूँ न उठाया करो

उंगलियाँ हम पे यूँ न उठाया करो





हर बार लिया मजा तुमने, हम भी चखे,

इंतज़ार हमें भी कभी तो कराया करो |



दौलते दिल है ये, इन्हें यूँ न बहाओ,


अंखियों से मोती यूँ न छलकाया करो |



हमने जब भी किया शिकवा,सुना तुमने,


शिकायतों का दौर,खुद भी लगाया करो |



फ़िक्र रहती है तुम्हारी,इस दिल को सदा,

नज़रों से दूर यूँ तुम न जाया करो…

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Added by SACHIN on August 30, 2012 at 9:30am — 2 Comments

जीवन एक किताब है (दोहा छंद)

जीवन एक किताब है,तीन प्रमुख अध्याय।

बचपन यौवन वृद्धपन,कहैं सुकवि समुझाय॥



बचपन जीवन भूमिका,यौवन ललित निबंध।

वृद्धापन सारांश है,उत्तम काव्य प्रबंध॥



भाषा रूपी ज्ञान हो,रस चरित्र व्यवहार।

कर्म रीति से युक्त हो,अलंकार गुण भार॥



अनुशासन का व्याकरण,पद लालित्य अनूप।

छंद बद्ध हर पल रहे,कथ्य शास्त्र अनुरूप॥



जीवन पुस्तक में नहीं,यदि बातें उपरोक्त।

श्याम वर्ण पुस्तक लगे,जीवन जैसे शोक॥



अल्ट्रामार्डन हो गये,काव्य और सब… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 10:04pm — 5 Comments

तीन सामयिक कह-मुकरियां



निर्दोषों का वह हत्यारा

जन जन ने उसको धिक्कारा

किया कोर्ट ने ठीक हिसाब

क्या सखि अजमल ? नहिं रे कसाब





वो सबका इन्साफ़ करेगा

नहिं हत्याएं माफ़ करेगा

ख़ून का बदला लेगा ख़ून

क्या सखि मुन्सिफ़ ? नहिं कानून 





हुआ आज हर्षित मेरा मन

करूँ ख़ूब उनका अभिनन्दन

काम कर दिया…

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Added by Albela Khatri on August 29, 2012 at 4:30pm — 4 Comments

मीर का अंदाज अब गुजरा ज़माना हो गया

आप से नज़रें मिली दिल आशिकाना हो गया

यार से दिलबर हुए मौसम सुहाना हो गया



लोग अफसाने बना बातें हसीं करने लगे 

आपके घर जो मेरा आना-जाना हो गया



छू रहीं साँसे गरम ठंडी ठंडी आह भर

आँख का झुकना बड़ा ही कातिलाना हो गया…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 29, 2012 at 3:00pm — No Comments

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता

 

 काश कोई होता जिसपे मेरा अधिकार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

जिसके बिन मेरा जीवन पतझड़ सा ही सूना है!

पास है मेरे सबकुछ पर वो नहीं तो फिर क्या है!

पतझड़ से सूने जीवन में बनकर बहार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

प्रेम कहानी, गीत-गज़ल…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 29, 2012 at 12:54pm — 6 Comments

बेवफा ही रहो

बेवफा ही रहो

बेवफा थे बेवफा हो बेवफा ही रहो

यह मुहब्बत नहीं बस की यूँ न इज़हार करो
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
यह वोह जज़्वा है जो आशिक़ को अमर करता है
वोह तो हँसते हुए सब कुछ ही फनां करता है
जो उम्र भर किया तुमनें हर बार करो
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
दीपक 'कुल्लुवी' को मुहब्बत यहाँ कोई कम न…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 29, 2012 at 12:39pm — 5 Comments

क्यों चुप रहता है सूरज ?

यूँ तो सूरज का गर्वित होना वाजिब है
अपनी शान पर ,
क्योंकि अपनी रश्मियाँ फैलाता है ,
वो ज़मीं पर .
करता है रोशनी .
पर यह ज़मीं भी तो सहती है ,
धूप, सर्दी और बरसात सब.
क्यों चुप रहता है सूरज तब .
क्या दिखती नही उसे इस
ज़मीं की सहनशीलता ???

Added by Naval Kishor Soni on August 29, 2012 at 12:10pm — No Comments

कविता को समर्पित -कुछ पंक्तियाँ

लोग पूछते है कविता

हमे क्या है, देती

मैं कहता हूँ कविता

हमे क्या नहीं देती

हृदय सबके सादगी देती

नीरस जीवन में ताजगी देती

जीने का मकसद जब, तुझे ना सूझे

जीवन की राह फिर हमे दिखाती

मुहब्बत का पैगाम सुनाती

वीरो की गाथा सुना

कीर्ति उनकी जग फैलाती

संकीर्णता की सरहदे लाँघ

हृदय को विचरण नभ कराती

अमन का सन्देश सुनाती

कल्पना की छलांग लगा

सपनों की दुनिया में, कवि घुमाती

कभी बनाती शीश महल

कभी रंक से राजा बनाती…

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Added by PHOOL SINGH on August 29, 2012 at 9:30am — 2 Comments

सारांश

छुटपन में
हर रोज़ बाबा का हाथ थामे निकल जाता था मैं,
सुबह की सैर को |
रास्ते की हर ठोकरों से बेख़ौफ़ लड़ता,
अकड़ता,
बढ़ता जाता था मैं |
क्यों कि जानता था,
कि कोई भी पत्थर कोई भी ठोकर मुझे गिरा न पाएगी |
क्यों कि दुनिया का सबसे मज़बूत सहारा थाम रखा है मैंने....
पर
कल सीढियां चढ़ते वक़्त
बाबा लड़खड़ा गये...और थाम लिया हाथ मेरा!
और मैं रह गया,
अतीत और वर्तमान के बीच का
सारांश ढूंढता हुआ.....
 
-पुष्यमित्र उपाध्याय
.

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 28, 2012 at 9:20pm — 2 Comments

दुनिया - मनहरण घनाक्षरी

भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |

भूल गए सब नाते, दूर से ही फरियाते,
काम देख बतियाते, कैसी आ गई घड़ी |

जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |

होश नहीं इश्क जगे, चाहे भले जाए ठगे,
गैर लगे सारे सगे, सोच कैसी है सड़ी ||

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 28, 2012 at 6:00pm — 4 Comments

वक्त कीमती है --------

कर्म ने ही सुखद भाग्य बनाया 

गीता में कृष्ण ने यही बताया |

 

मदद ली जाती  है, इसकी समझ धरो 

भूलोंसे सीख का मन में उन्माद भरो |

 

प्रभु के दिए मौके को न जाने दिया करो 

उंगलियाँ यूँ ही  न सब पर उठाया करो | 

 

बीते वक्त की याद ने मन दुखी कराया 

उठों तभी सवेरा है, मन को समझाया…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2012 at 5:34pm — 2 Comments

हाहाकर

हाहाकर
मानसून की पड़ रही मार
मचा हुआ है हाहाकर
चारों तरफ  है पानी ही पानी
उफनती नदियाँ  बाढ़  ही बाढ़
परिणाम स्वरूप महँगाई बढ़ गयी
गरीब की हंडिया ख़ाली रह गयी
घर टूट गए खेत उजड़ गए  
बेबस अखियाँ मन है उदास 
दीपक…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 28, 2012 at 4:54pm — No Comments

अब भी कहोगें तुम मुझे सती ????

झुंझुनू यात्रा के दौरान

घुमाया गया मुझे

तथाकथित "रानी सती" के मंदिर में.

मंदिर में प्रवेश करते ही दरवाजे पर लिखा था ....

"हम सती प्रथा का विरोध करते है"

पर अंदर जाकर जिस तरह श्रदालुओं का दिखा रेला ,

और बाहर भी लगा था भक्तों का मेला ,

मेरे मन में सवाल उठा कि-------

जब दुनिया से गया होगा इस महिला का पति,

तो क्या अपनी इच्छा से हुई होगी यह सती ?

वहां तो कोई जवाब नहीं मिला पर रात को सपने में आई वो महिला .

उसे देखकर पहले तो मैं डरा फिर मेरा…

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Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 4:30pm — 2 Comments

शिक्षा में क्रांति-----------

बातें करते है "वो" शिक्षा में क्रांति की

कहते है अब जरुरी हो गई है

शिक्षा में क्रांति ?

मैंने पूछा किस तरह की क्रांति चाहते है आप ?

जवाब था आमूलचूल परिवर्तन

पूरी शिक्षा व्यवस्था को बदलना होगा

मैने कहा आप भी शिक्षक है आप कुछ करियें ना ?

वो बोले मेरे अकेले के करने से क्या होगा ?

क्रांति के लिए जरुरत होती है जनता के सैलाब की .

विचार और जज्बे के फैलाव की ----------------------?

मैनें कहा बहुत कुछ हो सकता है.

आप अपनी कक्षा से कर सकते है…

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Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 3:00pm — No Comments

मांगे भी तो मौत ना मिलती

जिंदगी से जब सरोकार हुआ
संघर्ष की आँधियों ने
लोगो की तीखी बातों ने
ऐसा दिल पर वार किया
लहूलुहान हुआ हृदय अपना
ऐसा घायल दिल
अपना तो यार हुआ

कुरेद कुरेद के बातें छेड़े
लोग उस वक़्त की
जिस वक़्त जीना
अपना दुश्वार हुआ
मांगे भी तो मौत ना मिलती
दुःख दावानल का
जब वार हुआ
तब समझ में आया हमको
क्यों संसार अग्रसर
प्रलय की ओर हुआ

Added by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 12:00pm — 2 Comments

चंद कुंडलिया छंद!

नेता





नेता सा वह आदमी, होता था जो आम /

जा संसद में बैठता, होता है बदनाम //

होता है बदनाम, काम के लेता पैसे /

दिया अमूल्य वोट, दें फिर कैसे पैसे //

गया महल में बैठ, रहा झुग्गी में सोता /

बन गया ये खास, आम रहा नहीं नेता //





बोले हरदम झूठ जों, नेता वही कहाय/

ओछे करके काम जों, मोटा माल बनाय//

मोटा माल बनाय,निराले सपन दिखाता/

भूखा सोय गरीब, ये मोबाईल लाता//

बोले यही अशोक, बचो धोखे से भोले/

नेता वही कहाय, हरदम झूठ जों…

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 28, 2012 at 8:30am — 3 Comments

तुम आओगे ना ??

अहसासों के दरमियां 

मेरे ख़्वाबों को जगाने 

जब तुम आओगे ना 

कुछ शरामऊँगी मैं 

धडकनों को थामकर 

कुछ बहक सा जाऊँगी मैं 

मुझे बहकाने तुम आओगे ना ????



इठलाती सी धूप में 

रूख पर नक़ाब गिराने 

जब तुम आओगे ना 

तेज़ किरणें शरमा जायेंगी 
तुम्हारे अक्स के आ जाने से 

मेरी परछाई को ख़ुद में 

समाने तुम आओगे ना…
Continue

Added by deepti sharma on August 27, 2012 at 6:30pm — 15 Comments

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