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चंद कुंडलिया छंद!

नेता


नेता सा वह आदमी, होता था जो आम /
जा संसद में बैठता, होता है बदनाम //
होता है बदनाम, काम के लेता पैसे /
दिया अमूल्य वोट, दें फिर कैसे पैसे //
गया महल में बैठ, रहा झुग्गी में सोता /
बन गया ये खास, आम रहा नहीं नेता //


बोले हरदम झूठ जों, नेता वही कहाय/
ओछे करके काम जों, मोटा माल बनाय//
मोटा माल बनाय,निराले सपन दिखाता/
भूखा सोय गरीब, ये मोबाईल लाता//
बोले यही अशोक, बचो धोखे से भोले/
नेता वही कहाय, हरदम झूठ जों बोले//

वीर

सीमा पे चौकस सदा, रहता वीर जवान/
आजाए दुश्मन कभी, करता काम तमाम//
करता काम तमाम, छुडा देता है छक्के/
देख वीर का जोश, रहे सब हक्के बक्के//
सदा सुर्य सा तेज, कभी होता नहि धीमा/
जब हों ऐसे वीर, सुरक्षित रहती सीमा//

आतंक

फैला हर इक देश में, यह जहरीला डंक/
करता निर्मम वार ये, कहलाता आतंक//
कहलाता आतंक, वार ये सब पे करता/
मरते कितने लोग, बुढा बच्चा है मरता//
उजड़े कई सुहाग,हुआ दामन भी मैला/
पड़ते नफ़रत बीज, जब आतंक है फैला//

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Comment

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Comment by Yogi Saraswat on August 28, 2012 at 4:40pm

श्री रक्ताले जी , शुरू से लेकर आखिर तक सुन्दर ! क्या बखान किया है नेता का , वाह ! मेरा सलाम क़ुबूल करें

Comment by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 3:52pm

अशोक  जी नमस्कार

वह वह सर कमाल कर दिया आपने उत्तम प्रस्तुति .........रचना के लिए बधाई

फूल सिंह

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 28, 2012 at 11:45am
आदरणीय रक्ताले सर, सुन्दर कुण्डलिया प्रस्तुत करने के लिये बधाई। नेता तो नेता हैं, बेचारे झूठ नहीं बोलें तो उन्हें घर पर बैठना पड़ेगा। जनता को टोपी जो पहनानी है।

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