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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ !

जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए .



कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ !

जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए .



दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहुत दरार ,

हम तो रहे वही ; वो जाने-माने हो गए .



देखते ही होती थी सब में दुआ सलाम ,

लियाकत गए सब भूल ;ये फसाने हो गए .



लिहाज के पर्दे फटे ; सब हो रहा नंगा…

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Added by shikha kaushik on October 27, 2012 at 10:30pm — 3 Comments

रावण दहन

रावण जैसा महापंडित, महाघ्यानी

और महाज्ञानी

ना धरा पर कभी आया था

ना कभी अब आयेगा

ऐसा शूरवीर व् यौद्धा था वो

जिससे सारा ब्रह्माण्ड घबराया था

सारे देवो को बंधन दे

त्रिलोक विजय के साथ साथ

मृत्यु पर भी विजय वो पाया था

अहं में जब हुआ चूर तब

भगवान् अवतरित हो

जन्म ले श्री राम रूप में

पावन वसुंधरा पर आया था

बस एक चूक जो

हो गयी लंकेश से

जो सीता का हरण

वो कर लाया था

ऐसा त्रिलोक विजेता था वो

पर आज ही के दिन

श्री… Continue

Added by PHOOL SINGH on October 26, 2012 at 3:12pm — 2 Comments

लघु कथा: चरण- स्पर्श

रमिता रंगनाथन, मिसेज़ शास्त्री की खातिर में यूँ जुटी थीं- मानों कोई भक्त, भगवान की सेवा में हो। क्यों न हो- एक तो बॉस की बीबी, दूसरे फॉरेन रिटर्न। अहोभाग्य- जो खुद उनसे मिलने, उनके घर तक आयीं! पहले वडा और कॉफ़ी का दौर चला फिर थोड़ी देर के बाद चाय पीना तय हुआ। इस बीच 'मैडम जी', सिंगापुर के स्तुतिगान में लगीं थीं- "यू नो- उधर क्या बिल्डिंग्स हैं! इत्ती बड़ी बड़ी...'एंड' तक देख लो तो सर घूम जाता है...और क्या ग्लैमर!! आई शुड से- 'इट्स ए हेवेन फॉर शॉपर्स'..." रमिता ने महाराजिन को, चाय रखकर जाने का…

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Added by Vinita Shukla on October 26, 2012 at 3:00pm — 6 Comments

इस बदलते मौसम में अपनी हिफाजत खुद करे (हास्य व्यंग)-लक्ष्मण लडीवाला

भाई राज दवा नवी की  डायरी के चालीसवे पन्ने ने बदलते मौसम से बेखबर से मुझे खबर कर दिया |
गर सीलिंग फेन की गडगडाहट बंद होती है, तो रियाज करते मच्छरों की आहंग (संगीत,आवाज) या 
गुनगुनाहट हलकी नींद को उड़ा देती है | डेंगू जैसा मच्छर  काट गया तो मै भी करोडो अनजाने लोगो
से सैकड़ो जाने पहचाने डेंगू मरीजों में शुमार हो…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 26, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ४० (वही घर के कोने अपना मुंह छुपाए, वही रास्ते में तुम्हारी यादों के नक्श.. शरमाए शरमाए)

घरों में सीलिंग फैन्स की घड़घड़ाहट बंद सी होने लगी है और दिन सुबुकपा और रातें संगीन. मौसम ने करवट की इक गर्दिश पूरी की हो जैसे- धूप की शिद्दत खत्म होने लगी है और सुकून और मुलायमियत के झीने से सरपोश के उस तरफ साकित ओ मुतमईन, आयंदा और तबस्सुमफिशाँ कुद्रत के नए रूप का एहसास होने लगा है. घर की हर शै जैसे तपिश भरी दोपहरियों से सज़ायाफ्ता ज़िंदगी की नींद से बेदार होने लगी है और जल रहे लोबान के धुंए की तरह दूदेसुकूत फजाओं में फ़ैल रहा है. ये आमदेसरमा (जाड़े के मौसम के आगमन) के बेहद इब्तेदाई रोज़…

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Added by राज़ नवादवी on October 26, 2012 at 12:30pm — 11 Comments

मत्तगयन्द सवैया छन्द

 

 



देह नही सुधि गेह नहीं सुधि ,, छूटि गयो ब्रज धाम जभी से 

चैन नही दिन रैन सखे अब ,, शूल लग्यो हिय जोर तभी से 

याद सतावत गोपहि ग्वालन ,, माखन खायहु नाहि कभी से 

क्रूर अक्रूरहि दूर कियो मोहि ,, तातहि बात कह्यो य सभी से
 
और लिखा ख़त एक रखा पिय  ,, नाम छुपाय रखा कमली से 
 …
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Added by Chidanand Shukla on October 26, 2012 at 10:30am — 3 Comments

पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा

 पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा 

चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण भर को कुछ लकीरें उभरी और फिर होंठों पर मुस्कान .गुरुदेव ने स्नेह से बुलेट के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''शांत हो जाओ मैं समझ गया हूँ .ईश्वर तुम्हे मुक्ति प्रदान करें !'' गुरुदेव के इतना कहते ही बुलेट शांत हो गया और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया .वहां उपस्थित प्रभात सहित उसके परिवारीजन यह देखकर चकित रह गए…

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Added by shikha kaushik on October 25, 2012 at 11:00pm — 8 Comments

अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .

 

 

खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,

मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .
 
तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .…
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Added by shalini kaushik on October 25, 2012 at 8:30pm — 3 Comments

जिम्मेदारी

महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई ! फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया, और सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी ! सोनू स्कूल चला गया ! महिमा ने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, फिर उसे जगाया, उसका नाश्ता बनाया ! अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुवा, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया ! उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह ! घर आकर खाना खाई और फिर…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on October 25, 2012 at 3:30pm — 24 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : सुहागन

लघुकथा : सुहागन …

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2012 at 10:30am — 40 Comments

ग़ज़ल

किस तरह हो यकीं आदमी का |

कोई होता नहीं है किसी का ||



आस्तीनों में खंजर छुपा कर |

दे रहे हो सबक़ दोस्ती का ||



पत्थरों के मकानों में रह कर |

दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||



मान लें बाग़बाँ कैसे उसको |

जिसने सौदा किया हर कली का ||



दर्द का बाँट लेना इबादत |

फ़लसफ़ा है यही ज़िन्दगी का ||



इसको आज़ादी माने तो कैसे |

आदमी है ग़ुलाम आदमी का ||



फैलें इंसानियत के उजाले |

सिलसिला ख़त्म हो…

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Added by लतीफ़ ख़ान on October 24, 2012 at 11:00pm — 8 Comments

तो देव लोक का स्वामी रावण ही होता

वह तपस्वी रावण जिसे मिला था-

ब्रह्मा से विद्वता और अमरता का वरदान
शिव भक्ति से पाया शक्ति का  वरदान |     
                                                                              …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 24, 2012 at 5:00pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
विजय दशमी (तीन दोहे दो रोले )

तीन दोहें....

बाहर रावण फूँक कर ,मानव तू इतराय |

नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||

सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश |

कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश ||

सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश |

दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश ||

दो रोलें...

दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा

संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा

अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा

लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद…

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Added by rajesh kumari on October 24, 2012 at 2:30pm — 18 Comments

राम या राम चन्द्र

दोस्तों ।



आज विजय दशमी है आज के दिन राम ने रावण को मारा था । यह एक मधुर कल्पना है की चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते है आइये देखते है ।

राम या राम चन्द्र

जब चाँद का धीरज छुट गया…

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Added by Mukesh Kumar Saxena on October 24, 2012 at 1:00pm — 4 Comments

रिटायरमेंट ( लघु कथा )

रिटायरमेंट ( लघु कथा )

शर्मा जी, लेखाधिकारी  अपनी उदार प्रवर्ति एवं मिलनसारिता के मामले में सदैव अग्रणी रहे  .खुशी हो या किसी पे दुःख मुसीबत, बस इन्हें पता भर लग जाए. जी जान से सेवा में जुट जाते . चाय पीना और पिलाना उनकी हाबी रही . सड़क हो या दफ्तर कोई परिचित मिल भर जाए. फिर क्या एक प्याला चाय हो जाये. मैं तो इनसे नजरे छुपा के निकल जाता कि अनावश्यक  व्ययभार न बढे. 
मेरा तबादला अन्य…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 12:07pm — 20 Comments

नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन

नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन 

पुरुष स्त्री साथ बैठ कर रहे थे भोजन 
कवि लेखकों की नारी रही सदैव रही प्रेरणा 
प्रत्येक क्षेत्र में नारी आगे कमी कोई दिखे न 
फिल्म , गीत, मंजन , साबुन या हो वस्त्र 
जग का हो कोई उत्पाद इन बिन बिके न 
नारी पुत्री, नारी बहना, नारी देवी, नारी माता
कोई धर्म हो कोई जाति हो है अनोखा नाता 
कई रूपों में देती सुख ये सम्मान की अधिकारी 
जन्मते जिस कोख से मानव…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 11:11am — 6 Comments

निमंत्रण

निमंत्रण 

निमंत्रण कैसा भी हो 
सुखद प्यारा लगता है 
मिलते हैं कई लोग 
जग  न्यारा लगता है 
नारी शशक्तिकरण विषय पर 
काव्य पाठ का न्योता  आया 
जाना था पति पत्नी…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 10:32am — 12 Comments

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !



धर्म पताका फहराने , पापी को सबक सिखाने ,

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

हर हर हर हर महादेव !

 …

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Added by shikha kaushik on October 23, 2012 at 9:30pm — 4 Comments

आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता

आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता

असली रावण मंच विराजित जय कारे गायेंगी जनता

दस शीशों से पहचाना था जिस रावण को पुरसोत्तम ने

कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?

कुम्भकरण भर पेट पड़े हैं इन्द्रप्रस्थ के दरबारों में

भांति भांति के इन्द्रजीत हैं गली गली में चौबारों में

चोरों की चौपाल जहाँ हो वहां भला क्या होगी समता

कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?

दूषित मन की अभिलाषाएं अखबारों की ताजा ख़बरें

चौराहे पर स्वेत वस्त्र में लिपटे हैं…

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Added by Manoj Nautiyal on October 23, 2012 at 5:36pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गज़ल

सुल्तान जो अपना है वो उनका मुसाहिब है

आये हैं जिधर से वो कहते वहीँ मगरिब है

खामोश ही रहता है अब तक वो नहीं समझा

दुनिया नहीं चुप्पी की दो लफ्जों की तालिब है

हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?…

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Added by Rana Pratap Singh on October 23, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

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