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गीत: समाधित रहो .... संजीव 'सलिल'

गीत:

समाधित रहो ....

संजीव 'सलिल'

+

चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,

कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।

दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-

कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।



जो जताते हैं हक वे न सच जानते,

जानते भी अगर तो नहीं मानते। 

'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-

रार सच से सदा वे रहे ठानते।।



दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,

मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।

राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-

बाँटता रौशनी, दीप होता…

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Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 10:06am — 8 Comments

हाइकु .....

1 - 8 !
*******
अगरबत्ती 
महकता जीवन 
जब जलती .
-------
धुआं ही धुआं 
तेरी यादों का तन 
जब भी छुआ ..
--------
लगे जताने 
छलकते पैमाने 
लोग सयाने ..
-------
जाम  छलके 
हलक तर हुआ 
हुए हलके 
-------
जानवर है 
क्या बिगाड़ पाओगे !
नामवर है ..
------
कागज़ी…
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Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2012 at 8:26pm — 10 Comments

धूप

नीला नभ
फिर निखर गया
लौट चले
बादल के यूप

कच्‍चे गुड़ की
गंध समेटे
नाच रही
मायावी धूप

खिलखिल करती
कास की पंगत
कासर घंटे
अगरू धूप

फुदक रही
फिर से गौरैया
माटी सोना
चांदी धूप

Added by राजेश 'मृदु' on November 1, 2012 at 5:00pm — No Comments

लघुकथा :- रंगभेद

उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !

“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 1, 2012 at 3:30pm — 10 Comments

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह '- बस इतना कहने आया था !!!

कैप्शन जोड़ें

इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है .शहीद…

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Added by shikha kaushik on November 1, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

पत्थरों के शहर में

 

मेरे घर  में आँगन नहीं है,

देहरी और  दहलीज नहीं है ,

दरवाजे से सांखल गायब ,

दस्तक  देती तहजीब  नहीं है ,

मेरा घर पत्थरों  के शहर में बसता है

|                                     

मेरे घर की पास की गलियां  ,

जब तब रोतीं हैं बिन घूँघट के,

किसी के आने की उम्मीद लगाये,

रात को भी ये  जागती रहती हैं ,

मेरा घर पत्थरों  के शहर में बसता है

 

वर्तमान को पोषित करती भर्मित…

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Added by Er.vir parkash panchal on November 1, 2012 at 11:30am — 4 Comments

नज़र...

 

नज़र से उसकी नज़र मिल गयी

नज़र को जैसे मिला नज़राना
नज़र को उसकी नज़र भर देखा 
नज़र नज़र में बना दीवाना …
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Added by Ranveer Pratap Singh on October 31, 2012 at 11:00pm — 2 Comments

अनायास

अनायास

तरंगित कल्‍मषों

बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर

किसी निविड़ एकांत में

जब समस्‍त दिशाएं खो चुकी हों

अपनी पगध्‍वनि

सारे पदक्षेप

और तिरोहित हो चुके हों

निष्‍ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,

अपनी सारी भभक सारी तपिश

और साथ लेकर अपने

सारे चटकीले रंग 

आना तुम भी

बस एक बार…

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Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments

शून्य

रक्त से सनी

भूमि

सुर्ख नहीं

हरी भरी

फलती फूलती

कलकल निनाद से

बहती श्वेत धारा

धो डालती है

सारे पाप

गंगा…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 31, 2012 at 4:00pm — 4 Comments

करवा चौथ -एक सत्य कथा (हास्य व्यंग) लघु कथा

करवा चौथ -एक सत्य कथा (हास्य व्यंग) लघु कथा 

पेशे से इंजिनियर शौकिया होम्योपथी डाक्टर वर्मा जी हम लोग प्रतिदिन रेल से साथ - साथ कार्यालय आते जाते थे.वे  बहुत हंसमुख और जवान दिल इंसान थे. शरीर ऐसा कि फूँक मार  दो तो दूसरे शहर  में जा गिरें. पान के हम दोनों शौकीन थे सो वे भी पान लगवाकर लाते थे और बड़ी प्रसन्नता के साथ हमें भी खिलाते. 
एक दिन वे बोले भाई शर्मा जी आज ये पान आप रख लो. मैं कार्यालय जाकर तुरंत बस से वापस लौट आऊंगा . मैने पूछा भाई क्या बात है जो…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 31, 2012 at 3:56pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दीवानी मीरा

बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l

दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll

थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l

मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll

प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l

प्रभु संग मधुर मिलन, हुई…

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Added by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 3:07pm — 16 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४१ (बाकी रह गया इक शख्स जो राज़ नवादवी है)

दिन ऐसे गुज़र जाते है जैसे हाथ से ताश के पत्ते. देखते देखते महोसालोदहाई सर्फ़ हो गए, कहाँ गए सब? ज़िंदगी में जो बीत गया, किधर चला चला गया? जो लोग अब नहीं हैं तकारुब में और जिनके मख्फी साये ही ज़हन में आते जाते हैं, वो कहाँ हैं अभी? ख्वाहिशों से भी मुलायम सपने जो कभी पूरे नहीं हुए, उदासियों सी भी तन्हा कोई राहगुज़र जो कभी मंजिल तक न पहुँच पाई, दिल की सोजिशों से भी रंजीदा इक नज़र जो झुक गई मायूसियों के बोझ तले- क्या हुआ उनका?

 

तुम्हारे गाँव का वो खाली खाली घर जहाँ बसी है आईने के…

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Added by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 9:03am — 6 Comments

गोत्रज विवाह

गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |

गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||

गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |

दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||

नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |

गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||

गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |

मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||

परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |

उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||

मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |

सबसे…

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Added by रविकर on October 31, 2012 at 8:48am — 5 Comments

श्रद्धांजलि

31 अक्टुबर,1984 को भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की न्रशंस हत्या हुई |
भारत में नारी को सम्मान की नजरों से देखा जाता है | उन्हें काव्यात्मक श्रद्धांजलि -
 
दूरदर्शी, पक्के इरादें…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 9:30pm — No Comments

मै भी अभी जिन्दा हूँ !!

मै भी अभी जिन्दा हूँ !!

-----------------------

तीव्र झोंके ने पर्दा उड़ा दिया

सारे बाज -इकट्ठे दिखा दिया

चालबाज, कबूतरबाज , दगाबाज

अधनंगे कुछ कपडे पहनने में लगे

दाग-धब्बे -कालिख लीपापोती में जुटे

माइक ले बरगलाने  नेता जी आये

जोकर से दांत दिखा हँसे बतियाये

“ये मंच अब हमारा है” खेती…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 30, 2012 at 8:51pm — 13 Comments

दीदार के खातिर यूँ आवाम दिवानी है

कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे

आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं





हर काम निराला माँ लगता है कहानी है

दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है



दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2012 at 7:04pm — 4 Comments

दुख (हाईकु)

सूखती नदी

उजड़ते मकान

अपना गाँव

 

कैसा विकास

लोगों की भेड़ चाल

सुख न शांति

 

गाँवों में बसा  

नदियों वाला देश

पुरानी बात 

सूखती नदी

बढ़ता गंदा नाला

मेरा शहर 

बिका सम्मान

क्या खेत खलिहान

दुखी किसान 

लोग बेहाल

गिरवी जायदाद

कहाँ ठिकाना 

सड़े अनाज

जनता है लाचार

सोये सरकार 

Added by नादिर ख़ान on October 30, 2012 at 6:00pm — 3 Comments

प्रेम का अस्तिव

 

सबका अस्तिव और अहसास

हृदय में जगाता

श्रद्धा, आशा और विश्वास

मीठे स्वर का पान कर

स्वर्ग ले आता भू धरा पर

 

बिना शर्त के बिना नियम के

संचालित कर हर डगर को

सुब्द्ता से मुक्त कर

मार्ग देता सुगम बना

अंतर्मनो को जोड़ने का

प्रेम करता है प्रयास

                                                 

मित्र को शत्रु, शत्रु को मित्र

गैर को अपना, अपने को गैर 

फूल माला सी डोर बना

राग, द्वेष…

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Added by PHOOL SINGH on October 30, 2012 at 3:12pm — 2 Comments

सागर में गिर कर हर सरिता// गीत

सागर में गिर कर हर सरिता बस सागर ही हो जाती है 

लहरें बन व्याकुल हो हो फिर तटबंधों से टकराती है 



अस्तित्व स्वयं का तज बोलो 

किसने अब तक पाया है सुख …

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Added by seema agrawal on October 30, 2012 at 2:09pm — 18 Comments

वीकेंड (कहानी)

"क्या यार?.........हमलोग एक घंटे से इस कैफे में बैठे हैं और वीकेंड का एक बढ़िया प्लान नहीं बना पा रहे........व्हाट इज दिस?" रितिका ने झल्लाते हुए कहा| साथ बैठा उसका क्लासमेट मोहित उसे उखड़ता देख के उसकी हँसी उड़ाते बोला - "मैडम जी.....मैं तो कब से प्लानों की लाइन लगा रहा हूँ, आपको जँचे तब तो"| रितिका थोड़ा और गुस्से में आ के बोली - "मोहित, जस्ट कीप योर माउथ शटअप.......तुम्हारे आइडियाज हमेशा बोरिंग होते हैं....तुम अपनी तो रहने दो बस"| मोहित को बात बुरी लग गई - "क्यों? तुम्हारे उस विभोर के…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 30, 2012 at 12:01pm — 10 Comments

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