दीवार तग़ाफुल की ये ढाओ तो सही
इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही
आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें
इस ओर जरा हाथ बढ़ाओ तो सही
हैरान परेशान खड़े हो इस…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 2, 2013 at 9:30am — 35 Comments
!!! मां शारदे !!! //हरिगीतिका छन्द//
तुम दिव्य देवी बृहम तनुजा हृदय करूणा धारिणी।
संगीत वीणा ताल सरगम धर्म बृहमा चारिणी।।
कर कमल धारण हंस वाहन ज्ञान पुस्तक वाचिनी।
अति मधुर कोमल दया समता प्रेम रसता रागिनी।।1
कल्याणकारी सत्यधारी श्वेत वसनं शोभनं।
संसार सारं कंज रूपं वेद ज्ञानं बोधनं।।
मन प्रीत प्यारी रीति न्यारी प्रकृति सारी धारती।
सब देव-दानव जीव-मानव शरण आते तारती।।2
उध्दार करती द्वेष हरती पाप-संकट काटती।
तुम तेज रूपं…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 1, 2013 at 10:29pm — 16 Comments
बह्र : २१२२ ११२२ ११२२ २२
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धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं
सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं
कौम उनकी ही जहाँ में है सभी से बेहतर
जिन्हें होता है गुमाँ आग लगा देते हैं
एक दूजे से उलझते हैं शजर जब वन में
हो भले खुद का मकाँ आग लगा देते हैं
नाम नेता है मगर काम है माचिस वाला
खोलते जब भी जुबाँ आग लगा देते हैं
हुस्न वालों की न पूछो ये समंदर में भी
तैरते हैं तो वहाँ आग…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 1, 2013 at 10:16pm — 12 Comments
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |
आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |
रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||
*ईश्वर ना करे -
आदरणीय पाठक गण-कृपया नौज के उपयोग पर कुछ कहें-
मौलिक/अप्रकाशित-
Added by रविकर on September 1, 2013 at 9:00pm — 3 Comments
बिखेरे रंग
प्यार के संग-संग
मै और तुम
बिखेरे हँसी
दोस्तो के संग-संग
मै और तुम
बिखेरे गंध
फूलो के संग-संग
मै और तुम
बिखेरे सुर
कुहू के संग-संग
मै और तुम
बिखेरे शब्द
कलम के संग-संग
मै और तुम
मौलिक अप्रकाशित रचना
नयना(आरती कानिटकर
०१/०९/२०१३
Added by नयना(आरती)कानिटकर on September 1, 2013 at 2:17pm — 7 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 1:30pm — 24 Comments
नये साहब बहुत ही कड़क और अत्यंत नियमपसंद स्वाभाव के थे । कई दिन रेखा देवी की हाजिरी कट गई | फटकार लगी सो अलग ।
उस दिन साहब के चैम्बर से तेज आवाज़ें आ रही थीं । रेखा देवी चीखे जा रही थीं, "ये साहब मेरी इज़्ज़त पर हाथ डाल रहा है.."
सब देख रहे थे, ब्लाउज फटा हुआ था । साहब भी भौचक थे । उनकी साहबगिरी और बोलती दोनो बंद थी |
साहब संयत हुए और बोले, "जाओ रेखा देवी.. जब आना हो कार्यालय आना और जब जाना हो जाना, आज से मैं तुम्हें कुछ नही कहनेवाला । वेतन भी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2013 at 10:00am — 50 Comments
गर्जत बरसत सावन आया
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी
मेघों का दल आया है, सावन का संदेशा लाया है।
जल भरकर ये काले जलधर, जल बरसाने आया है॥
मेघों का दल आया है ......
चांदी जैसी बिजली चमकी, उमड़-घुमड़ आये बादल।
लगता है आकाश छोड़कर, धरती पर छाए बादल॥
गर्मी हम से रूठ गई, बरसात ने नाता निभाया है ।
मेघों का दल आया है ......
भँवरे फूल बगियां खुश हैं, माटी की सोंधी महक उठी।
पंछी सुर में…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 1, 2013 at 10:00am — 12 Comments
प्रश्न होते हैं ,उत्तर भी होते हैं रास्ते ,
पूर्व-पश्चिम और दक्षिण
सभी दिशाओं मे होते हैं रस्ते
कभी घोड़ों की टापों से कुचले जाते हैं
तो कभी फूलों से सजाये जाते हैं रास्ते
क्या जमीं कया समुंदर आशमां मे भी होते हैं रास्ते
तो क्या मंजिले नसीब नहीं होती सभी को,
पर होते हैं सभी के अपने –अपने रास्ते
कभी मंजिल तक पहुचाते हैं तो कभी खुद मंजिल बन जाते हैं रास्ते
उनकी कहां मंजिलें होती हैं
जो खुद बनाते हैं…
ContinueAdded by hemant sharma on August 31, 2013 at 11:08pm — 8 Comments
एक सच्चा गलत आदमी
सच का पैरोकार होता है
नारे लगाता है
हवा में मुट्ठियाँ भांजता है
भरोसा लपकता है
फिर उन्हे चबाता है
प्रगतिशील कहलाता है
एक सच्चा गलत आदमी
कभी पूरा झूठ नही बोलता
गलतियाँ नही दोहराता
कभी धन कभी ताकत
कभी भावनाओं के जोर पर
भोलेपन से खेलता है।
जब आत्मा धित्कारती है
बद्दुआएँ कोचती हैं
सुबह मन्दिर मे मत्था टेक आता है
चढावा चढाता है
फिर बैठ जाता है अनेक प्रेयसियों मे से
किसी एक…
Added by Gul Sarika Thakur on August 31, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
२ १ २ २ १ १ २ २ २ २
जिंदगी कैसी कज़ा चाहती है
मर के जीने की दुआ चाहती है
.
बीत गया जो तुझे साथ मुबारक
मेरी दुनिया तो नया चाहती है
.
वो अगर चाहे हमें क्षमा कर दे,
अब मगर वो भी सज़ा चाहती है
.
छीन ली उस ने हमारी दुनिया,
छीन अब न सके खुदा चाहती है
.
वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में
जिन से लौ उन का पता चाहती है
.
जो थी मंजल हमें दिखाने निकली ,
राह में भटकी पता चाहती है
मौलिक…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on August 31, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
इस नगर में
मेरे कुछ सपने
हुए साकार
और कुछ
बिखरे किरचियाँ बन
पर
इन सपनों की
फ़ेहरिस्त थी लम्बी
इन्हें पूरा करने
जी जान से थी जुटी
कभी
भावुकता में बही
तो कभी
व्यावहारिकता ओढ़ी
कहीं
करना पड़ा संघर्ष
इसके
विद्रोही मोड़ों पर
लेकिन
इस नगर की
एक बात है ख़ास
मुस्कुराहटों में इसने
दिया मेरा साथ
पर एक बात
है इसकी…
ContinueAdded by vijayashree on August 31, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे
यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे
लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,
इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,
यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे
कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,
फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,
यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 8:30pm — 37 Comments
टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |
नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||
.
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on August 31, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
एहसासों की लेखनी में श्रेष्ठ कवयित्री अमृता जी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मेरी एक अदना सी कोशिश, उनको बयां कर पाना आसां नहीं है,बस कोशिश की है....
नज्मों को सांसें
लम्हों को आहें
भरते देखा
अमृता के शब्दों में
दिन को सोते देखा
सूरज की गलियों में
बाज़ार
चाँद पर मेला लगते देखा
रिश्तों में हर मौसम का
आना - जाना देखा
अपने देश की…
ContinueAdded by Priyanka singh on August 31, 2013 at 5:00pm — 25 Comments
कितने ही मरुथल
छूट गये पीछे
पगली आशाओं को
मुट्ठी में भींचे
नदिया सी रेतीली
राहों में बहती
कलुष भी वहन करतीं
धाराएँ जीवन की
अवचेतन में, गुपचुप
सुख दुःख को बांचें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
दादी अम्मा का
भैय्या को दुलराना
चुपके से, दूध- भात
गोद में खिलाना
किन्तु 'परे हट' कहकर,
उसे दुरदुराना
रह- रहकर कोचें
वह शैशव की फासें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
जागी…
Added by Vinita Shukla on August 31, 2013 at 3:04pm — 16 Comments
शब्द नहीं आते है
देख दुर्दशा
सुन कर व्यथा
गूँजता करुण क्रंदन
न पिघला मानव मन
कुछ कहने को शब्द नहीं आते है ....
लुट रही अस्मिता
मिट रहा सुहाग
छिन रहे माँओ के लाल
रक्तरंजित हो रही धरा
व्यथा सुनाने को शब्द नहीं आते है .......
जन्मांध न होकर भी जो
बन चुके धृतराष्ट्र
हलक तक शुष्क हो चला
जिह्वा चिपक गई तालु से
पुकार लगाने को शब्द नहीं आते हैं…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:30pm — 16 Comments
बड़े साहब की गाड़ी जैसे ही चौराहे पर सिग्नल के लिए रुकी एक चौदह पंद्रह वर्षीय बालक हाथ मे कपड़े का टुकड़ा लिए उनकी गाड़ी की तरफ लपका और फटाफट शीशे चमकाने लगा । शायद ये लोग कुछ पैसों की खातिर अपनी जान को जोखिम मे डाले फिरते है । क्या करे पेट की आग और गरीबी की मार कुछ भी करवाती है । बड़े साहब ने नई मर्सिडीज़ खरीदी थी उस पर उस बच्चे के गंदे हाथ देख तिलमिला गए , उतरे और एक झन्नाटे दार थप्पड़ उसके कोमल गाल पर जड़ दिया , - “ यू रासकल्स ! गंदी नाली के कीड़े ! तेरी हिम्मत कैसे हुई गाड़ी को हाथ लगाने की ।”…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:00pm — 30 Comments
नारी सबला जानिए ,देकर अनुपम प्यार
नारी से नर उपजिया ,मानस पटल सुधार |
मानस पटल सुधार , जान नारी जस माता
जैसे करता करम ,फल वैसा तभी पाता |
नारी माँगे मान,जान ना उसको अबला
देकर अनुपम प्यार,जान लो नारी सबला ||
.................
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sarita Bhatia on August 31, 2013 at 9:57am — 15 Comments
रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय
जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय
आमादा तो है नस्लकुशी पर अमीरे शह्र
डरता भी है कि उसका पसीना उबल न जाय
अजदाद से मिला जो…
ContinueAdded by Sushil Thakur on August 31, 2013 at 9:39am — 16 Comments
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