For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४२ (ज़िंदगी खुद अपनी पैमाइश में छोटी होती गई

वक़्त फिर बदल गया. कुछ नया तो नहीं, कुछ पुराना भी न रहा. ज़िंदगी खुद अपनी पैमाइश में छोटी होती गई. यादों के काफिले सच की राह को छोटा कर गए. मंजिल की धुन में मौजूदगी का ख़याल न रहा. मौजूदा में डूबे तो मंजिल को भूल गए. जो मिला उसमें मुहब्बत न देख पाए और जो न मिला, उसे मुहब्बत की लुटी दुनिया समझके रोते रहे. सच और परछाइयों की कशमकश में दोनों ही नुक्सानज़दा हुए क्योंकि सच परछाइयों का अक्स है और परछाइयां सच की रूमानियत- और ज़िंदगी दोनों के तवाज़ुन…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 10:18am — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४३ (दिल ने जब भी खुद को कुरेदा है)

दिल ने जब भी खुद को कुरेदा है, मेरे खून के इलावा नाखून से तेरा खून भी चिपका है. अजब है ये इत्तेफाक.... कि मुसर्रत (खुशी) का न सही तुझसे दर्द का तो रिश्ता है. शायद इसलिए ही कि दर्दज़दा हुए जब भी तो मुझे अपना दर्द गरां (भारी) लगा क्योंकि इसमें तेरे दर्द की भी न चाही गई आमेज़िश (मिश्रण) थी.

 

नाखून से चस्पां (चिपका) खून का इक ज़र्रा ये खबर दे गया कि तुम अभी कहाँ हो, किधर हो, किस हाल हो, तुम्हारे चेहरे का रंग ज़र्द है या सुर्ख, तुम्हारी नसों में दौड़ता खून अभी थका है या पुरजोश,…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 10:14am — 2 Comments

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,

मैं भूल गया दुनिया दारी,

पहले दिल का बलिदान दिया,

हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,

तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,

मैं अपनी मंजिल भटक गया,

इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,

हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,

यादों की छूरी पैनी है,

नैना सागर भर लेते हैं,

हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on August 6, 2013 at 9:30am — 7 Comments

लिख दिया तो लिख दिया

हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया

कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया

 

कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में

बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया   

 

जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो  

हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं

दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं

फिर…

Continue

Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 6, 2013 at 6:30am — 18 Comments

सरिता

हे शान्त स्निग्ध जल की धारा

 

तुम कलकल कलरव की हो गान

हो लिपटे बेलों की वितान

तुम वसुन्धरा की शोभा हो

हे आन मान सरिता महान

तुझमे दिखता जीवन सारा

हे शान्त स्निग्ध जल की धारा

 

तुझमे निज-छवि लखते उडगन

यह विम्ब देख हर्षाता मन

सुषमा ऐसी नयनों मे बसा

रहता बस मे किसका तन मन

दिखता तुझमे चन्दा प्यारा

हे शान्त स्निग्ध जल की धारा

 

हे मिट्टी की सोंधी सुगन्ध

बाँधे सबको जो पाश…

Continue

Added by आशीष यादव on August 5, 2013 at 11:30pm — 15 Comments

ईंट

तुम एक दिन तपकर तो देखो

अपने महलों से निकलकर तो देखो

आओ हम वहां चलते हैं

जहां ईंट बनती है

वो मिट्टी जो रात भर गलती है

बार –बार कटती है ,

तब सांचे में ढलती है

फिर भट्टी में तपती है

तब कहीं वो ईंट बनती है

जो आपके महलों की नींव बनती है

                                    

मौलिक व अप्रकाशित

Added by hemant sharma on August 5, 2013 at 11:00pm — 15 Comments

सो करते रहे हम

इसी रास्ते से गुजरते रहे हम

दुआ जानते थे सो करते रहे हम

 

अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे   

यही सोच कर बस संवरते  रहे हम

 

उठाते  बिठाते जगाते रहे है

मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम

 

कोई है जो अन्दर, यही देखता है

कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम

 

समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है

‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते  रहे हम

 

मौलिक और अप्रकाशित 

Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 5, 2013 at 9:44pm — 8 Comments

गज़ल - नजरों को नजारे मिल गये // वेदिका

वज्न / २१२२ २१२२ २१२ 

चाह थी जिनकी, हमारे मिल गये 

गुम कहीं थे ख्वाब, सारे मिल गये.

 

एक धागा बेल के धड़ से मिला 

बेसहारों को सहारे मिल गये 

.

हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये

.

डूबती नैया के तुम पतवार हो 

साथ तेरे हर किनारे मिल गये 

.

देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी 

यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये 

.

सच अगरचे, देख के अनदेख हो 

झूठ जीतेगा, इशारे…

Continue

Added by वेदिका on August 5, 2013 at 8:59pm — 49 Comments

ग़ज़ल - एक और प्रयास !

( २१२२ २१२२ २१२ )



क्या हुआ कोशिश अगर ज़ाया गई

दोस्ती हमको निभानी आ गई |



बाँधकर रखता भला कैसे उसे

आज पिंजर तोड़कर चिड़िया गई |



चूड़ियों की खनखनाहट थी सुबह

शाम को लौटी तो घर तन्हा गई |



लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ

आज माटी गाँव की पथरा गई |



कैस तुमको फ़ख्र हो माशूक पर

पत्थरों के बीच फिर लैला गई |



आज फिर आँखों में सूखा है 'सलिल'

जिंदगी फिर से तुम्हें झुठला गई |



-- आशीष नैथानी 'सलिल'…

Continue

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 5, 2013 at 8:00pm — 16 Comments

!!! हाथ नर मलता गया है !!!

!!! हाथ नर मलता गया है !!!

बह्र-----2122  2122

भोर जो महका गया है।

सांझ को उकसा गया है।।

रास्ते का ढीठ पत्थर,

पैर से टकरा गया है।

चोट लगती दर्द होता,

आह पहचाना गया है।

ऐ खुदा अब तो बता दे!

राह क्यों रोका गया है?

जान कर अति दर्द उसका,

आंख जल ढरका गया है।

हाय ये तकदीर खेला,

खेल कर घबरा गया है।

कल यहां यमराज देखो,

काल को धमका गया…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 5, 2013 at 8:00pm — 16 Comments

अन्वेषण - (रवि प्रकाश)

मंज़िल-मंज़िल ढूँढ़ा जिसको,रस्ते-रस्ते खोजा है;

मस्जिद-मस्जिद रोज़ पुकारा,मंदिर-मंदिर पूजा है।

कभी तलाशा महफ़िल-महफ़िल,परबत-परबत छाना है;

गलियों-गलियों खूब टटोला,नगरी-नगरी माना है।

गर्म सुनहले आतप में भी,खिलती नर्म बहारों में,

बहुतेरे हम भटक चुके हैं,सिकता भरे कछारों में।

सागर-सागर,नदिया-नदिया,कितने गोते खाए हैं;

अंतरिक्ष की सीमाओं का,अतिक्रमण कर आए हैं।

कुछ मझधारों ने भरमाया,कुछ लहरों ने धोया भी;

क्या-क्या पा जाने की धुन में,जाने क्या कुछ खोया… Continue

Added by Ravi Prakash on August 5, 2013 at 7:27pm — 13 Comments

एक गज़ल =

एक गज़ल =

============

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

१२२२     १२२२    १२२२   १२२२

===============================

वही नग्मॆं वही रातॆं, वही ख़त और आँसू भी ॥

सतातॆ हैं हमॆं मिलकॆ, मुहब्बत और आँसू भी ॥१॥



कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,

सदा रुख़ मॊड़ लॆतॆ हैं,तिज़ारत और आँसू भी ॥२॥



हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,

नहीं जीनॆ  हमॆं दॆतॆ, शिकायत और आँसू भी ॥३॥



हमॆं इल्ज़ाम दॆता है, ज़माना बॆ-वफ़ा कह कॆ,

नहीं अब…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on August 5, 2013 at 7:00pm — 26 Comments

साहित्य धर्मिता

साहित्य अपने आप मे एक बहुत बड़ा विषय है इस पर जितनी भी चर्चा की जाए कम ही होगी । साहित्य का शाब्दिक अर्थ स+ हित अर्थात हित के साथ या लोक हित मे जो भी लिखा जाय या रचा जाए वह साहित्य होता है। और धर्मिता का शाब्दिक अर्थ है ध + रम यहाँ ध अक्षर संस्कृत के धृ धातु का विक्षिन्न रूप है जिसका अर्थ है धारण करना और रम भी संस्कृत के रम् धातु  से उद्भासित है जिसका अर्थ है रम जाना या तल्लीन हो जाना । इसी को धर्मिता कहते हैं । लोक हित को धारण कर उसी मे रम जाना ये हुई साहित्य धर्मिता। अब प्रश्न यहाँ यह उठता…

Continue

Added by annapurna bajpai on August 5, 2013 at 6:55pm — 4 Comments

गीत

देहरी पर मन के

किसने रख दिए दो पाँव,

बस गया दो पल में जैसे

एक सुन्दर गाँव!

 

गुप्तचर आँखों ने ढूंढें

रूप के कुछ ठौर,

मन अपेक्षी हर कदम

कहता रहा, कुछ और.

कब मिले जाने इसे अब

कोई अंतिम ठांव!

 

चितवनों के गाँव में

बिखरे अगिन संकेत,

किन्तु जल की आड़ में

छलती गयी है रेत.

रूपसी खेलेगी मुझसे 

और कितने दांव!

 

ले नदी सब नीर अपना

चल पड़ी किस ओर,

चंचला…

Continue

Added by Saurabh Srivastava on August 5, 2013 at 5:44pm — 10 Comments

कुंडलियाँ छंद-लक्ष्मण लडीवाला

 मधुशाला खुलती गयी, विद्यालय के पास,  

आजादी जब से मिली, ऐसा हुआ विकास |

ऐसा हुआ विकास, मिले शराब के ठेके

आय करे सरकार, नेता रोटियाँ सेकें

शिक्षा पर हो ध्यान, उन्नत हो पाठशाला

शिक्षालय के पास, हो न कोई मधुशाला |

(२)

रंगत बदले मनुज अब, गिरगिट भी शर्माय   

गिरगिट पुनर्जन्म धरे, नेता बनकर आय |

नेता बनकर आय, क्षमता और बढ़ जावे

पेटू बनकर खाय, खाकर डकार न लावे     

ईश्वर करे सहाय, पाये न इनकी संगत,

सूझे न…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2013 at 3:00pm — 24 Comments

बीमार पीढ़ी

अच्छा !!!!

तो प्रेम था वो !!!

 

जबकि केंद्रित था लहू का आत्मिक तत्व

पलायन स्वीकार चुकी भ्रमित एड़ियों में !

किन्तु -

एक भी लकीर न उभरी मंदिर की सीढियों पर !

एड़ियों से रिस गईं रक्ताभ संवेदनाएं !

भिखमंगे के खाली हांथों की तरह शुन्य रहा मष्तिष्क !

 

हृदय में उपजी लिंगीय कठोरता के सापेक्ष

हास्यास्पद था-

तोड़ दी गई मूर्ति से साथ विलाप !

विसर्जित द्रव का वाष्पीकृत परिणाम थे आँसू…

Continue

Added by Arun Sri on August 5, 2013 at 11:30am — 15 Comments

चेहरा

बार बार भीड़ में

ढूँढता हूँ

अपना चेहरा

 

चेहरा

जिसे पहचानता नहीं

 

दरअसल

मेरे पास आइना नहीं

पास है सिर्फ

स्पर्श हवा का

और कुछ ध्वनियाँ

 

इन्हीं के सहारे

टटोलता

बढ़ता जा रहा हूँ

 

अचानक पाता हूँ 

खड़ा खुद को

भीड़ में

अनजानी, चीखती भीड़ के

बीचों बीच

 

कोलाहल सा भर गया

भीतर तक

कोई ध्वनि सुनाई नहीं देती

शब्द टकराकर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 11:30am — 34 Comments

शिव महिमा [दोहे]

गँगा जल की कुण्डलियां, भर लाए शिव भक्त

कावड़ ले मनमोहिनी ,सब को करें आसक्त||



शिव नगर हरिद्वार की, महिमा अपरमपार

कावड़ मेले हैं लगे , सजे हुए बाजार||



नारे बोल बम बम के ,गूँज रहे चहुँ ओर

मस्त मलंग घूम रहे, मिल सब करते शोर||



आए पूरे देश से , बम बम करते आज

त्रिलोचन महादेव का , तिलक कर रहे आज||



लाखों भक्त शंकर का, करते हैं अभिषेक

शिवरात्री है आ गई, माथा तू भी टेक||



बम बम करते आ गए ,शिव के सेवादार …

Continue

Added by Sarita Bhatia on August 5, 2013 at 11:00am — 5 Comments

अन्तरंग यह बात...

आज सच तुझसे कहूँ

बिन तेरे कैसे रहूँ

इक दिन न इक रात

अन्तरंग यह बात...

सांसों में अब मिठास है

कड़वाहट अब न पास है

जब से तू है साथ

अन्तरंग यह  बात...

जुल्फ तेरी  घनघोर घटा

लहराएँ तो सर्द हवा

प्यार तेरा बरसात

अन्तरंग यह बात...

नयन तेरे मधुशाला हैं

बाहें तेरी, मेरी माला हैं

पाक मेरे जज्बात

अन्तरंग यह  बात...

मर जाऊं मिट जाऊं मैं

तुझ संग ही जी पाऊँ…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2013 at 11:00pm — 27 Comments

मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँ

पर्वत राज हिमालय जिसका मस्तक है

जिसके आगे बड़े बड़े नतमस्तक है

सिन्धु नदी की तट रेखा पर बसा हुआ

गंगा की पावन धारा से सिंचित है

जिसको तुम सोने की चिड़िया कहते थे

छोटे बड़े जहाँ आदर से रहते थे 

जहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिला

जहाँ कभी न श्याम श्वेत का भेद  हुआ

जिसको राम लला की धरती कहते है

गंगा यमुना सरयू जिस पर बहते है

जिस धरती पर श्री कृष्णा ने जन्म लिया

जहाँ प्रभु ने गीता जैसा ज्ञान दिया

जहाँ निरंतर वैदिक…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 4, 2013 at 8:00pm — 22 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service