हाँफता काँपता सा
हाथी भागा जा रहा था
चीखता हुआ
‘वो निकाल लेना चाहते हैं
मेरे दाँत
सजाएँगे उन्हें
अपने दीवानखाने में
मूर्तियाँ बनाकर
जैसे पेड़ों को छीलकर
बना डालीं फाइलें
और प्रेमपत्र।‘
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on September 3, 2013 at 6:00pm — 28 Comments
हे देवपुरुष !
हे ब्रह्मस्वरूप !
कहती हूँ तुम्हें - श्रीकृष्ण !
पर
माधव, मैं -
वंशी धुन सम्मोहित
प्रेम…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 3, 2013 at 4:00pm — 33 Comments
रात भर सोया नहीं
बस सोचता रहा
कब काली रात जायेगी
रवि अपनी किरणें फैलाएगा
बहुत लम्बी रात थी
जो नहीं था उसे खोजता रहा
अंतहीन धुंध के खौफ से
डरता कांपता
बार-बार खुद से यही पूछता
क्या सफल हो पाऊंगा?
सुबह हुई
पर कोई नयापन नहीं
अचानक
चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा
एक भी पत्ते नहीं थे
शायद !मुझसे कह रहा था
धैर्य रखो बसंत आने तक।
*******************************
राम…
Added by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 2:38pm — 27 Comments
आपका बेटा कहाँ है , हम उसे गिरफ्तार करने आये है .. अचानक पुलिस को देख कर माँ बाप घबरा गए,... मगर हमारे बेटे ने क्या किया है ???? ११ में पढ़ता है बहुत सीधा है .. जी आपके सीधे बेटे ने इक लड़की का रेप किया है .. कुछ ज्यदा ही सीधा है ... इतना कह कर पुलिस उसे अपने साथ ले गयी .. माँ बाप मानने को तैयार ही नहीं थे जरुर वो लड़की ही बदचलन होगी ... उसने ही फँसाया होगा मेरे भोले भाले बेटे को .. चलो जी अभी बेटे को वापस ले के आयेगे .. पुलिस स्टेशन पर उस लड़की के माँ बाप रो रहे थे | तभी लड़की की…
ContinueAdded by Roshni Dhir on September 3, 2013 at 2:00pm — 15 Comments
अलार्म की आवाज सुन कर अदिति की आँख खुल गयी | उसने मोबाइल उठा कर अलार्म बंद कर दिया और समय देखा सुबह के ५ बज गए थे जल्दी से उठ कर काम में लग गई सफाई, नहाना, पूजा बेटे को स्कूल और पति को ऑफिस भेज कर एक लम्बी साँस ली | कमरे में नजर घुमा के देखा तो पूरा कमरा अस्त व्यस्त हो गया था, फिर से उसने आंचल को कमर में खोंसा और काम में जुट गई | काम समेटते समेटते दोपहर हो गयी और बेटे के स्कूल से आने का समय भी | वो दौड़ कर रसोई में जा गैस पर दाल गर्म होने के लिए रख देती है इतने में बेटा आ जाता है, आते ही…
ContinueAdded by Meena Pathak on September 3, 2013 at 11:00am — 36 Comments
किंचित तो गुरुता नहीं, अन्तरमन में शेष।
लेकिन बैठे छद्म कर, धारण गुरु का वेश॥
धारण गुरु का वेश, विषयरत कामी–लोभी।
लेकर प्रभु का नाम, लूट लेते प्रभु को भी॥
करुणाकर भी सोच, सोच कर होंगे चिंतित।
रच कर मानुष-वर्ण, भूल कर बैठा किंचित!!
_______मौलिक / अप्रकाशित________
- संजय मिश्रा 'हबीब'
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on September 3, 2013 at 9:30am — 15 Comments
Added by Sumit Naithani on September 3, 2013 at 9:00am — 24 Comments
दोहा
मातृभूमि है मेरी, स्वर्ग से भी भली ।
माथा झुका नमन करू, प्रस्सुन ले अंजुली ।।
चैपाई
लहर लहर तिरंगा लहराता । रवि जहां पहले शिश झुकाता
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव सकल जग गाता
उत्तर हिमालय मुकुट साजे । उन्नत शिखर रक्षक बन छाजे
गंगा यमुना जहां से निकली । केदार नंदा तट है बद्री
दक्षिण में सिंधु चरण पखारे । दहाड़ता जस हो रखवारे
सेतुबंध कर शंभू जापे । तट राम रामेश्वर थापे
पूरब कोणार्क जग थाती …
Added by रमेश कुमार चौहान on September 2, 2013 at 11:00pm — 9 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on September 2, 2013 at 11:00pm — 24 Comments
उन्हें चस्का बहुत था बेरुखी हमसे भी करने का
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2013 at 9:55pm — 16 Comments
जैसे टूटता तटबंध
और डूबने लगते बसेरे
बन आती जान पर
बह जाता, जतन से धरा सब कुछ
कुछ ऐसा ही होता है
जब गिरती आस्था की दीवार
जब टूटती विश्वास की डोर
ज़ख़्मी हो जाता दिल
छितरा जाते जिस्म के पुर्जे
ख़त्म हो जाती उम्मीदें
हमारी आस्था के स्तम्भ
ओ बेदर्द निष्ठुर छलिया !
कभी सोचा तुमने
कि अब स्वप्न देखने से भी
डरने लगा इंसान
और स्वप्न ही तो हैं
इंसान के…
ContinueAdded by anwar suhail on September 2, 2013 at 9:00pm — 14 Comments
एक
तुम
मुझे ऐसे मिले
जैसे कि मंदिर में किसी
देवता के आगे
फैली
अंजलि में
फूल
देव मस्तक का
आ कर के गिरे /
या किसी प्यासे पपीहे को
मिले
एक बूँद पानी ।
प्यार सी
नजरो को छू कर
तुम खिले ऐसे
कि जैसे
ऋतु बसंत में
किसी कम्पित डाली पर
सोई कली
मंद , शीतल पवन का
स्पर्श पा कर के खिले /
या खिले कवि ह्रदय कोई
देख कर वर्षा सुहानी…
Added by ARVIND BHATNAGAR on September 2, 2013 at 9:00pm — 15 Comments
बीमारी के अर्थ दो , नहि केवल ये रोग
इक तो केवल रोग है, दूसर केवल योग
दूसर केवल योग, बहूत है कठिन समझना
प्रेम रोग इक भाव , इसे है सरल समझना
कह सागर सुमनाय,कहो अब कुशल तिहारी
रोग योग दो अर्थ , प्रेम कहा या बिमारी
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 2, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 2, 2013 at 6:46pm — 15 Comments
रोज़ा, नमाज़, हज औ तिलावत न कर सका
अपने वजूद की मैं हिफाज़त न कर सका
दैरो हरम में आ के तो सजदा किया ज़रूर
लेकिन कभी मैं दिल से इबादत न कर सका
बिकता रहा ज़मीर भी कौड़ी के भाव में
मैं चाहकर भी इसकी हिफ़ाज़त न कर सका
तेरे क़दम भी रुक गए उल्फत की राह में
मै भी अकेला घर से बग़ावत न कर सका
तेरे बदन में देखकर पाकीज़गी की आग
कोई भी शख्स छूने की ज़ुर्रत न कर सका
मैख़ाने में गुज़ार दी 'साहिल' ने…
ContinueAdded by Sushil Thakur on September 2, 2013 at 6:30pm — 18 Comments
पांच दोहे
खुद के अन्दर झाँक के, पढ़ ले तू आलेख
अपने ऐसे हाल का, खुद खींचा आरेख
बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास
भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास
पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 6:00pm — 42 Comments
बहुत उपचार के बाद भी चित्रा की गोद सूनी थी |पूरा परिवार चिंतित रहता था |चित्रा यज्ञं हवन के लिए पति राजेश पर दवाब देती तो नोक-झोक हो जाती थी |राजेश को पूजा पाठ पर विश्वास नहीं था | काफी मेहनत के बाद चित्रा की माँ अपने भगवान् तुल्य गुरूजी मायाराम बाबू से मिली |गुरूजी चित्रा के कुंडली में संतान के घर में अनिष्टकारी ग्रह देख एक ग्रह शांति का ख़ास अनुष्ठान कराने के लिए उनके घर आने को राजी हो गए |चित्रा भी उत्साहित हो गुरूजी की आवभगत की सारी तैयारियाँ कर ली थी | गुरूजी और चित्रा को पूजा…
ContinueAdded by shubhra sharma on September 2, 2013 at 12:17pm — 22 Comments
(आज से करीब ३१ साल पहले)
शनिवार, २७/०३/१९८२, नवादा, बिहार: एक मोड़
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आज हम सभी साथियों की खुशी किसी सीमा में बांधे नहीं बाँध रही है. आज हम सभी सुबह से ही उस घड़ी की प्रतीक्षा में हैं जब हम मैट्रिक की संस्कृत के द्वीतीय पत्र की परीक्षा दे परीक्षा-भवन से आख़िरी बार निकालेंगे.
हमारे मैट्रिक इम्तेहान का सेंटर नवादा मुख्यालय से २९ किमी दूर रजौली कसबे के एक सरकारी स्कूल में रखा गया था. मैं और मुझसे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 2, 2013 at 11:07am — 7 Comments
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जैसे ढलती |
रोज करे फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
मौलिक/अप्रकाशित
Added by रविकर on September 2, 2013 at 10:00am — 6 Comments
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