For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२ १ २ २ १ १  २  २   २  २
जिंदगी   कैसी  कज़ा चाहती है
मर के जीने की दुआ चाहती है

.
बीत गया जो तुझे साथ मुबारक
मेरी दुनिया तो नया चाहती है

.
वो अगर चाहे हमें क्षमा कर दे,
अब मगर वो भी सज़ा चाहती है

.
छीन ली उस ने हमारी दुनिया,
छीन अब न सके खुदा चाहती है

.
वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में
जिन से लौ उन का पता चाहती है

.
जो थी मंजल हमें दिखाने निकली ,
राह   में  भटकी  पता  चाहती है

मौलिक -व्- अप्रकाशित

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मोहन बेगोवाल on September 10, 2013 at 10:52pm

आदरनीय डाक्टर ललित जी,

मै आप जी की तरफ से बताई बहर अनुसार गजल कहने का प्रयास किया हे कृपा मेरा  मार्गदर्शन कीजिएगा ,धन्यवाद

२    १  २   २    १   २  २     १  २    २  १ २

जिंदगी  आज कैसी कजा  चाहती 

मर के जीने की वो क्यों दुआ चाहती

बीत जायेगा जो आयेगा  दिन कहाँ  

मेरी दुनिया मगर कुछ नया चाहती

वो अगर  चाहती तो क्षमा कर देती

अब मगर वो भी  मेरी सजा चाहती

छीन ली ऐसे ही मुझ से दुनिया मेरी

छीन अब ले  मुझे ये खुदा  चाहती

वो छुपा  लेती  हे  ये  अँधेरा अभी

जिन से लौ तो कभी का पता चाहती

जो थी मंजल हमें खुद दिखाने निकली  

राह  वो भटकी खुद का पता चाहती

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 9, 2013 at 10:56pm

जिंदगी आज कैसी कज़ा चाहती
मर के जीने की वो क्यों दुआ चाहती
मोहन बेगोवाल जी , इसे
२१ २ २१२ २१ २ २ १ २
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सलीम पर लिखें . मज़ा आ जायेगा . सादर

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 3:51am

मोहन साहब बहुत कठिन बहर चुन ली है और कई जगह निभाने में चूक हो गई है ... तक्तीअ करके देख लिया करें ..
तक्तीअ से सब कुछ स्पष्ट हो जाता है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2013 at 12:28am

वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में
जिन से लौ उन का पता चाहती है......वाह! बहुत खूब, बेहतरीन शेर

सुंदर गजल पर बधाई स्वीकारे आदरणीय मोहन जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 5:32pm

आदरणीय मोहन सर जी ग़ज़ल एक बार आप पुनः जांच लें आपने किस बहर पर लिखी है २ १ २ २ १ १  २  २   २  २ में एक जगह १ रह गया है. प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 1, 2013 at 5:27pm

जिंदगी   कैसी  कज़ा चाहती है--  अच्छी लगी , बधाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 1, 2013 at 10:05am

मर के जीना ही तो ख्वाइश है ..बेहतरीन ..सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 7:40am

अच्छी गज़ल कही , मोहन भाई !! बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on September 1, 2013 at 6:31am

उम्दा ग़ज़ल .बहुत बधाई !

Comment by vandana on September 1, 2013 at 6:26am

वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में
जिन से लौ उन का पता चाहती है

वाह सर बहुत बढ़िया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
59 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service