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गज़ल

गज़ल

221 2121 1221 212

अख़लाक पर मुहब्बत  भरोसा रहा नहीं

हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं

दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ

जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं

लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती

गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं

गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी

क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं

औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है

मत खेल तू ज़मीर से…

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Added by Chetan Prakash on June 30, 2022 at 10:00am — 1 Comment


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खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा // सौरभ

२१२ १२१२ १२१२ १२१२ 

  

चाहता रहा उसे मगर न बोल पा रहा

उम्र बीतती रही मलाल सालता रहा

 

जिंदगी की दोपहर अगर-मगर में रह गयी

साँझ की ढलान पर किसे पुकारता रहा ?

 

बाद मुद्दतों दिखा, हवा तलक सिहर गयी  

मन गया कहाँ-कहाँ, मैं बस वहीं खड़ा रहा

 

आयी और छू गयी कि ये गयी, कि वो गयी

मैं इधर हवा-छुआ खुमार में पड़ा रहा

 

रौशनी से लिख रखा है खुश्बुओं में डूब कर

खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा !

 

बादलो, इधर न…

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Added by Saurabh Pandey on June 27, 2022 at 11:00pm — 18 Comments

ले चल अपने संग हमराही

ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में

जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में 

चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ 

क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात 

जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती…

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Added by AMAN SINHA on June 27, 2022 at 12:25pm — 2 Comments

केवल बहाना खोज के जलती हैं बस्तियाँ - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

सीमित से दायरे  में  न पल भर उड़ान हो

उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।

*

दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के

राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।

*

केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए

इस को  नहीं  जरूरी  बड़ा  खानदान हो।३।

*

मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें

इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।

*

जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे

जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।

*

हिस्से में…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments

पाँच दोहे मेघों पर. . . . .

पाँच दोहे मेघों पर . . . . .

अम्बर में विचरण करे, मेघों का विस्तार  ।

सावन की देने लगी, दस्तक अब बौछार ।।

मेघों का मेला करे, अम्बर का शृंगार ।

आज दिवाकर लग रहा, थोड़ा सा लाचार ।।

थोड़ी सी है धूप तो, थोड़ी सी बरसात ।

अम्बर में  आदित्य को, बादल देते मात ।।

बादल नभ को चूमते, पहन श्वेत परिधान ।

हंसों की ये टोलियाँ, आसमान की शान ।।

नील वसन पर कर दिया, मेघों ने शृंगार ।

धरती पर चलने लगी, शीतल मस्त बयार…

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Added by Sushil Sarna on June 24, 2022 at 2:30pm — 6 Comments

कब चाहा मैंने

कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो 

कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो 

कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो 

कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो 

कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो 

कब…

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Added by AMAN SINHA on June 24, 2022 at 10:59am — No Comments

हंसगति छन्द. . . . .

हंसगति छन्द. . . .(11,9)

जले  शमा  के   साथ, रात   परवाने ।
करें   इश्क  की  बात, शमा   दीवाने ।
दिल को दिल दिन-रात, सुनाता बातें ।
आती रह -रह याद, तन को  बरसातें ।
                  * * * *
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फ,कहे अफसाने ।
तन्हा - तन्हा   आज,  लगे   मैख़ाने  ।
पैमानों   से   रिन्द ,  करें   मनमानी  ।
अब  लगती  है  जीस्त , यहाँ बेमानी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

सुशील सरना / 23-6-22

Added by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:14pm — No Comments

दोहा पंचक. . .

दोहा पंचक. . . . .

अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।

श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।।

श्वास-श्वास में  आस का, रहता हरदम वास ।

इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।।

इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।

जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।।

जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।

अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत  उदास ।।

अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।

अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत…

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Added by Sushil Sarna on June 22, 2022 at 6:12pm — 8 Comments

इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

खंडित करे न देश को तलवार मजहबी

आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।

*

मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना

करते रहे हैं लोग  जो  व्यापार मजहबी।।

*

जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा

इन्सानियत से  दूर  हो  सन्सार मजहबी।।

*

माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो

इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।

*

समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है

बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।

*

करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments

ग़ज़ल- दर्द हरने लगते हैं

1212  1122  1212    22 /112

1

हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं

नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं

2

जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल

ख़याल आते ही उनका सँवरने…

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Added by Rachna Bhatia on June 21, 2022 at 8:21pm — 7 Comments

यायावर

मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा 

ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा 

ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं

कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं 

ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा…

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Added by AMAN SINHA on June 21, 2022 at 11:20am — No Comments

जलाया घर अमावस ने -- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

*

नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं

दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।

*

तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय

मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।

*

हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है

सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।

*

तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से

बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।

*

जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही

कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments

ग़ज़ल (... तमाशा बना दिया)

221 - 2121 - 1221 - 212

मौज आयी..घर को फूंक तमाशा बना दिया

हा.... झोंपड़ा फ़क़ीर ने ख़ुद ही जला दिया 

कर के इशारा बज़्म से जिसको उठा दिया

दरवेश ने उसी का मुक़द्दर बना दिया

अपनों के होते ग़ैर भला क्यूँ उठाए ग़म 

नादान दोस्तों ने ही रुसवा करा दिया

नफ़रत की फ़स्ल देख के ख़ुश हो रहे थे सब

बोया था जिसने ज़ह्र उसी को चखा दिया 

मुझको था ए'तिमाद कि आ जाएगी बहार

रंग-ए-ख़िज़ाँ ने मेरे यक़ीं को…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2022 at 11:59am — 12 Comments

पितृ दिवस पर कुछ क्षणिकाएँ. . .

पितृ दिवस पर कुछ क्षणिकाएँ ....

काँधे को
काँधे ने
काँधे दिया
इक अरसे के बाद
सृष्टि रो पड़ी
.........................
छूट गया
उँगलियों से
उनका आसमान
इक नाद बनकर रह गया
इक नाम
पापा
............................
पापा
पुत्र का आसमान
पुत्र
पिता का अरमान
एक छवि एक छाया
एक जान
एक पहचान

सुशील सरना / 19-6-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on June 19, 2022 at 8:28pm — 4 Comments

पिता - दोहे

दोहे -पिता

*****

पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस

वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।

*

जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव

सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।

*

जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह

अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।

*

डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात

सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।

*

नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह

हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।

*

पत्थर से व्यवहार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments

गीत : कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है

कोशिश  है जीवन  पाने की

सबकी चाह  प्रथम आने की

कई  करोड़ों  लड़ते   लेकिन

कोई - कोई  विजयी  निकले

शेष  कहाँ जा खो जाते हैं, इसका  कुछ अनुमान नहीं है

कोई  चाहे कुछ भी  कह ले, जीवन पथ  आसान नहीं है

शाम  सुबह  या  जेठ  दुपहरी, भूख  मिटाते  जीवन  बीते

कल जैसा ही कल होगा क्या, इस असमंजस में हम जीते

रेत  सरीखे  अपने  सपने,  कब   ढह  जाए  नहीं  भरोसा

जीने  की  उम्मीद  लिए  सब, बूँद  जहर  का  चेतन  पीते

दो  रोटी  पाने  की …

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Added by नाथ सोनांचली on June 17, 2022 at 9:59pm — 2 Comments

आह्वान

जागो मेरे वीर सपूतो, मैंने है आह्वान किया 

आज किसी कपटी नज़रों ने मेरा है अपमान किया 

किसी पापी के नापाक कदम, मेरी छाती पर ना पड़ने पाए 

आज सभी तुम प्रण ये कर लो, जो आया, कुछ, ना लौट के जाने पाये 

दिखला दो तुम दुश्मन को, तुम भारत के वीर सिपाही…

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Added by AMAN SINHA on June 17, 2022 at 11:15am — No Comments

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो

अब रक्त डूबी  इस  में  न कोई कहानी हो।।

*

होता अगर  हो  प्यार  का  आबाद हर नगर

हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।

*

भटको न आस पास  के  रंगीं नजारे देख

पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।

*

हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर

कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।

*

किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे

मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो

*

दिल है जवाँ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments

मुक्तक ( आधार छंद - हंसगति )

मुक्तक

आधार छंद हंसगति  (11,9 )

प्रीतम   तेरी  प्रीत , बड़ी   हरजाई ।

   विगत पलों की याद, बनी दुखदाई ।

      निष्ठुर  तेरा  प्यार , बहुत  तड़पाता -

           तन्हाई में  आज, आँख  भर  आई ।

                        * * *

दिल से दिल की बात, करे दिलवाला ।

    मस्ती  में  बस  प्यार , करे  मतवाला ।

        उसके ही बस गीत , सुनाता  मन  को -

             पी कर हो  वो  मस्त , नैन  की  हाला ।

सुशील सरना / 15-6-22

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on June 15, 2022 at 11:44am — 4 Comments

मदिरा सवैया आधारित दो छन्द

1

माँ गुरु थी पहली अपनी जिसका तप पावन ज्ञान लिखूँ

छाँव मिली जिस आँचल में उसको सब वेद पुरान लिखूँ

गर्भ  पला जिसके  तन में  उसको अपना भगवान लिखूँ

मात  सनेह  समान  यहाँ कुछ  और नहीं  उपमान लिखूँ

2

साजन  जो परदेश  गए  करके   मकरन्द  विहीन कली

अश्रु गिरें दिन रात यहाँ  बरसे  जस  सावन  की  बदली

बात रही दिल में जितनी दिल ने दिल से दिल में कह ली

हाल  हुआ  दिल का अपने जस नीर बिना तड़पे मछली

नाथ…

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Added by नाथ सोनांचली on June 15, 2022 at 7:54am — 4 Comments

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