ग़ज़ल ( अहदे वफ़ा चाहिए )
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फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल
न कुछ तुम से इसके सिवा चाहिए ।
हमें सिर्फ़ अहदे वफ़ा चाहिए ।
जो दौलत है ले जाओ तुम भाइयों
मुझे सिर्फ़ माँ की दुआ चाहिए ।
करे ऐब गोई जो हर शख़्स की
उसे दोस्तों आइना चाहिए ।
जो क़ायम करे एकता मुल्क में
हमें सिर्फ़ वह रहनुमा चाहिए ।
कहीं दिल लगाना भी है लाज़मी
अगर दर्दे ग़म का मज़ा चाहिए ।
ज़रूरी है ख़िदमत भी मख़लूक़ की
अगर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 28, 2016 at 9:26pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222 तरही ग़ज़ल
अगर बेटे की भाई से अदावत और हो जाती
मेरे अपने ही घर में इक बगावत और हो जाती
जहाँ खामोशी से मेरी जसामत और हो जाती
वहीं कुछ कहने से मेरे मुसाफत और हो जाती
हिमानी के शिखर पर डाल गलबहियाँ पलक मींचे
युगल प्रेमी यही सोचे क़यामत और हो जाती
सुलगती साँसे जलता तन पिला दो मय ये आँखों की
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 28, 2016 at 5:07pm — 8 Comments
पुरानी किताबें ........
पुरानी किताबें
कुछ भी तो नहीं
सिवाय पुरानी कब्रों के
जिनमें दफ़्न हैं
चंद सूखे गुलाब
कुछ सिसकते हुए
मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़
कुछ पुराने पीले
टुकड़े टुकड़े से
अधूरे प्रेम के
प्रेम पत्र
पुरानी किताबें
जिनमें सो गयी
जीने की आस लिए
कई आकांक्षाएं
घुटी हुई सांसें
मोटी सी ज़िल्द की
अलमारी में
कैदियों से जीते
मौन कई अफ़साने
जंज़ीरों में…
Added by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 3:00pm — 12 Comments
Added by Arpana Sharma on September 28, 2016 at 12:30pm — 6 Comments
गैर ही तू सही तेरा असर तो बाक़ी है
लज्ज़तेयाद का वीराना घर तो बाक़ी है
माना मंजिल नहीं इश्बाह की हासिल मुझको
पैरों के वास्ते इक रहगुज़र तो बाक़ी है
तेरे सीने की आग बुझ गई तो क्या कीजे
मेरे सीने में धड़कता जिगर तो बाक़ी है
सोज़िशें रोज़ की जीने नहीं देतीं मुझको
क्या करें साँसों का लंबा सफ़र तो बाक़ी है
तेरी साँसें भी हैं मलबूस मेरी साँसों से
मेरे भी सीने में तेरा ज़हर तो बाक़ी…
Added by राज़ नवादवी on September 28, 2016 at 12:26pm — No Comments
रोज़मर्रा की ज़रुरत बद से बदतर हो गई
दाल-रोटी ही हमारा अब मुक़द्दर हो गई
फ़िक्र में आलूदगी ही हर घड़ी का काम है
रात को दो गज ज़मीं ही मेरा बिस्तर हो गई
सूखी कलियों की तरह हर ख़्वाब ही कुम्हला गया
धूप यूँ हालातेनौ की नोकेनश्तर हो गई
जिस्म भी अब थक गया है सांस भी अब बोझ है
मेरे कदमों की गराँबारी ही ठोकर हो गई
यास की तारीकियों से यूँ हुई रौशन हयात
ज़ुल्मतेवीराँ से मेरी जाँ मुनव्वर हो…
Added by राज़ नवादवी on September 28, 2016 at 12:00pm — No Comments
Added by S.S Dipu on September 28, 2016 at 10:05am — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 28, 2016 at 8:34am — 13 Comments
Added by दिनेश कुमार on September 28, 2016 at 7:17am — 2 Comments
तुम्हारी तरह
आज तुम्हारी बहू भी सुबह अँधेरे उठ जायेगी
ठीक तुम्हारी तरह
साफ़ सुथरे चौके को फिर से बुहारेगी
नहा धो कर साफ़ अनछूई एक्वस्त्रा हो
तुलसी को अनछेड़ जल चढ़ायेगी
ठीक तुम्हारी तरह
आज फूल द्रूब लाने को भी बेटी को नहीं कहेगी
ठाकुर जी के बर्तन भी स्वय मलेगी
ज्योती को रगड़ -रगड़ जोत सा चमकायेगी
महकते घी से लबलाबायेगी
घर के बने शुद्ध घी शक्कर में लिपटा
चिड़िया चींटी गैया को हाथ से…
Added by amita tiwari on September 27, 2016 at 9:00pm — 1 Comment
रुख्सत/विदाई/ Departure
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साथ रहते हैं मेरे गम मैं जहां जाता हूँ
अब दरीचे पे ही रहता हूँ कहाँ जाता हूँ
हाय रे ये ज़िल्लतें जीने नहीं देतीं मुझे
मैं ज़मीं को छोड़कर अब आसमाँ जाता हूँ
अलविदा ऐ दोस्तोअहबाब हैं जिनके करम
ऐ मेरे प्यारे वतन हिन्दोस्ताँ जाता हूँ
दुःख न करना मेरा कोई पैकरेअल्ताफ़ में
मैं फ़लक के पार सू-ए-गुलसिताँ जाता हूँ
कुछ अधूरे ख़्वाब हैं…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 27, 2016 at 5:30pm — No Comments
किस ज़माने की बात करते हो
रिश्तें निभाने की बात करते हो
अहसान ज़माने का है यार मुझ पर
क्यों राय भुलाने की बात करते हो
जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे
दिल में समाने की बात करते हो
तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये
जज़्बात दबाने की बात करते हो
गर तेरा संग हो गया होता "मदन "
जिंदगानी लुटाने की बात करते हो
मौलिक और अप्रकाशित
मदन मोहन सक्सेना
Added by Madan Mohan saxena on September 27, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 27, 2016 at 12:34am — 4 Comments
Added by S.S Dipu on September 26, 2016 at 11:46pm — 1 Comment
काफिया : कर चल दिए रदीफ़: आ
बहर : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२
थी जान जब तक वो लडे फिर जाँ लुटा कर चल दिये
इस देश की खातिर वे खुद को भी मिटा कर चल दिये|
लड़ते गए सब वीरता से टैंकरों के सामने
झुकने दिया ना देश को खुद शिर कटा कर चले दिए |
परिवार को कर देश पर कुर्बान खुद लड़ने गए
वो वीर थे जो देश की इज्जत बचा कर चल दिये |
एकेक ने मारा कई को फिर शहीदों से मिले
अंतिम घडी तक फर्ज अपना सब निभा कर चल दिए…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 26, 2016 at 10:34pm — No Comments
1222 1222 1222 1222
न जाने धूल कब से झोंकता था मेरी आँखों में!
जो इक दुश्मन छुपा बैठा था मेरे ख़ैरख़्वाहों में!
भटकते फिरते थे गुमनाम होकर जो उजालों में!
हुनर उन जुगनुओं का काम आया है अंधेरों में!
फ़क़त इक वह्म था,धोखा था बस मेरी निगाहों का,
अलग जो दिख रहा था एक चेहरा सारे चेहरों में!
हक़ीक़त के बगूलों से हुए हैं ग़मज़दा सारे,
हुआ माहौल दहशत का,तसव्वुर के घरौंदों में!
ख़ता इतनी सी थी हमने गुनाह-ए-इश्क़…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 26, 2016 at 5:19pm — 9 Comments
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
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जमी जो बर्फ रिश्तों पे पिघल जाये तो अच्छा है
बिगड़ती बात बातों से सँभल जाये तो अच्छा है
हमारी याद जब आये शहद यादों में घुल जाये
छिपी जो दिल में कडवाहट निकल जाये तो अच्छा है
तमन्ना चाँद पाने की बुरी होती नही लेकिन
जमीं से देखकर ही दिल बहल जाये तो अच्छा है
मुकद्दर में मुहब्बत के लिखी हैं ठोकरें ही जब
गमों से पेशतर ये दिल सँभल जाये तो अच्छा…
Added by Sachin Dev on September 26, 2016 at 3:00pm — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 26, 2016 at 1:00pm — 19 Comments
करबटें बदलता हूँ रात भर मैं गलता हूँ
जख्म दिए औरों ने पर मैं खुद ही सिलता हूँ
मुँह मोड़ लिया हो अपनों ने तोड़ दिया हो सपनों ने
हर बार मगर हँसकर सबसे अक्सर मैं मिलता हूँ
जिन गलियों में बस शूल मिले यादों की बस कुछ धूल मिले
कभी रहे काशी काबा में हर रोज मैं पैदल चलता हूँ
वक्त के इस दौर में निकला मैं जिस भी ओर में
सदा बचा मैं शोलों से पर पानी से मैं जलता हूँ
सुबह भी देखी थी निराली पल भर में जो हुई थी…
ContinueAdded by anupam choubey on September 26, 2016 at 1:00pm — 5 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 26, 2016 at 9:21am — 18 Comments
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