अभिनेता नेता बने, रखे हास्य का मान ।
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 25, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
साथियों बड़े हर्ष के साथ सूचित करना है कि ओ बी ओ सदस्य डॉ सूर्या बाली "सूरज" को विगत दिनों होटल ताज नई दिल्ली में भारत के उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी द्वारा पुरुस्कृत किया गया | यह पुरस्कार डॉ बाली की एक डाक्टर के तौर पर की गयी सामाजिक सेवाओं के लिए है जिसे आप…
ContinueAdded by Admin on February 25, 2013 at 4:30pm — 27 Comments
दिलनशीं और पुरमहक, किरदार होना चाहिए |
प्यार है दिल में अगर, तो प्यार होना चहिये ||
अहद कर लो, ना बुराई हम करेंगे, उम्र भर |
चाहो गिर्द अपने अगर, गुलज़ार होना चाहिए ||
छोड़ के खुदगार्जियाँ, खल्क-ए-खुदा की सोचिये |
मुफलिस-ओ-लाचार का, गमख्वार होना चाहिए ||
राह की दुश्वारियाँ, सब दूर करने के लिए |
हमसफ़र, हमराह, रब्ब सा, यार होना चाहिए ||
जानते हो मायने, गर लफ्ज़े-उल्फत के ‘शशि’ |
तब मोहम्मद मुस्तफ़ा से, प्यार…
Added by Shashi Mehra on February 25, 2013 at 2:00pm — 7 Comments
जिसके हक़ में, मैं सदा, दिल से दुआ करता रहा |
वो हमेशा, मुझपे जाने, क्यूँ शुबहा करता रहा ||
दोस्त था कहने को मेरा, दोस्ती न कर सका |
दोस्ती के नाम पर ही वो, दगा करता रहा ||
हमकदम था चल रहा, पर हमनफस न बन सका |
मैं भला करता रहा, और वो बुरा करता रहा…
ContinueAdded by Shashi Mehra on February 25, 2013 at 2:00pm — 8 Comments
जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर
टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||
Added by rajesh kumari on February 25, 2013 at 12:07pm — 22 Comments
नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,
जिसने मुझको आधार दिया,
पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !
हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,…
Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 25, 2013 at 10:00am — 8 Comments
कच्चे रास्ते में, रास्ता होने की,
असली खुश्बू होती है।
वह चलता है और चलाता है
उसमें खुद को बदलने की हिम्मत है
वह कभी अहम नहीं करता।
वह बरसात की खुशबू को,
सुंदरता को,अच्छी तरह से परख़ता,
पहचानता है।
क्योंकि वह बरसात को सीने से लगा लेता है
वह आस-पास के पेड-पौधों से नहीं शर्माता।
उसे पता है कि शर्म उसकी खुशियों को रोकती है
उसे यह भी पता है
कि यह काम लोगों का है उसका नहीं।
वह अपने तन को धूल…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 9:30am — 20 Comments
मौलिक
अप्रकाशित
मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ ।
खटमल स्लीपर सेल बना, रेकी रेका ऐंठ ।
रेकी…
Added by रविकर on February 25, 2013 at 9:14am — 10 Comments
सुना था ........
सुना था..दिल से करो याद जिसे,उसको हिचकियाँ आती है
यही सोच रोज हाल पूछने ,उसके घर चला जाता हूँ मै.....
सुना था..टूटे दिल से लिखी ग़ज़लों में बहुत जान होती है…
Added by pawan amba on February 25, 2013 at 5:51am — 11 Comments
हम एक दुसरे के प्रति अपना प्यार जताने को कोई न कोई तौहफा देते हैं ! कुछ ऐसा जो लेने वाले को अच्छा और दुनिया में सबसे न्यारा और कीमती लगे ! भौतिक रूप में दिया गया तौहफा ख़राब हो सकता है टूट सकता है लेकिन अगर तौहफा दिल से दिया जाये, मन से दिया जाये , भावनाओं से दिया जाये तो वो हमेशा दिलो दिमाग में रहता है ! उसकी कीमत अनमोल होती है ! अतः अपने में सबसे प्यारे व्यक्ति को तौहफा भी सबसे प्यारा देना चाहिए ! मैं ये मेरी भावनाएं शब्दों में पिरोकर अपने जीवन साथी को तौह्फे में दे रही हूँ…
ContinueAdded by Parveen Malik on February 24, 2013 at 7:30pm — 14 Comments
एक मित्र ने पूछा, "तुम कब पैदा हुए थे ?"
"शायद तब जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे, नहीं शायद गुलजारी लाल नन्दा या इंदिरा में से कोई प्रधानमंत्री था," मैंने उत्तर दिया।
"तुम्हें इतना भी याद नहीं।"
"बच्चा था न- दुनियादारी, राजनीति, से दूर।"
"अब क्या हो?"…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 24, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
कंह गोरी पनघट कहाँ,कंह पीपल की छांव।
पगडंडी दिखती नहीं,बदल रहा है गांव॥
बदल रहा है गाँव,खत्म है भाईचारा।
कुछ परिवर्तन ठीक,किन्तु कुछ नहीं गवारा॥
ग्लोबल होते गाँव,गाँव की मार्डन छोरी।
कहें विनय नादान,कहाँ पनघट कंह गोरी॥
पगडंडी ये गाँव की,सड़क बनी बेजोड़।
जो जाती है शहर को,जन्म-भूमि को छोड़॥
जन्म-भूमि को छोड़,कमाने रोजी जाते।
करते दिनभर काम,रात फुटपाथ बिताते॥
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गाँव की वो…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 24, 2013 at 12:30pm — 18 Comments
कुरबतों में खुश न थे, फुर्क़तों का ग़म भी नहीं,
पहले जैसे वो अब नहीं, पहले जैसे हम भी नहीं ।
बात जो लब पर है रुकी, जान शायद लेकर रहे,
भूलने का दिल भी नहीं, कह दे इतना दम भी नहीं ।
फिर उदासी बढ़ने लगी, शाम से पहले क्या करें,
इक यहाँ तुम भी नहीं, दूसरे मौसम भी…
Added by Harjeet Singh Khalsa on February 24, 2013 at 3:30am — 6 Comments
======ग़ज़ल=======
मौसमे गुल से अदावत सीखी
कैसे ढाना है क़यामत सीखी
हर कोई चोर नज़र में जिनकी
उनकी नज़रों से नजारत सीखी
हम गरीबों के लिए दिल दौलत
बेच के जिसको तिजारत सीखी
उसको हाथी से क्या डराते हो
जिसने चींटी से बगावत सीखी
वक़्त से तुम तो हुए संजीदा
हमने बस “दीप” शरारत सीखी
संदीप पटेल “दीप”
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 23, 2013 at 11:36pm — 13 Comments
माटी कहे कुम्हार से,
मुझको दे ऐसा आकार,
फिर न चक्का चढू कभी,
मिलूं संग निराकार ...
मुझे रंग दे नाम के रंग में,
पकुं मै तप की अगन में ,
सांचा ऐसा लादे मुझको ,
ढल जाऊं मै सत्कर्म में...
चिकना इतना करदे मुझे,
माया टिके न कोई इसपे,
घट ही में अविनाशी सधे,
हो जोत अंदर परकाशी रे ...
जग तारन कारण देह धरे,
सत्कर्म करे जग पाप हरे,
चित्त न डगमग मेरा डोले,
ध्यान तेरे…
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 23, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
मृतप्राय शिराओं में बहता हुआ
संक्रमण से सफ़ेद हो चुका खून
गर्म होकर गला देता है
तुम्हारी रीढ़ !
और तुम -
-अपनी आत्मा पर पड़े फफोलो से अन्जान
-रेंगते हुए मर्यादा की धरती पर
प्रेम कहते हो –
एक चक्रवत प्रवाहित अशुद्धि को !
तुम्हारी गर्म सांसों का अंधड़
हिला देता है जड़ तक ,
एक छायादार वृक्ष को !
और फिर कविता लिखकर
शाख से गिरते हुए सूखे पत्तों पर ,
तुम परिभाषित करते…
ContinueAdded by Arun Sri on February 23, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
बुझा चिराग तूफान बताया होगा
अँधेरा मन ही मन मुस्कराया होगा
पतंग यूँ तो चाहे ऊँची उडारी
जिस के हाथ मर्जी से उडाया होगा
जला चिराग करें जो खुंजा रोशन,
उसको अँधेरी रात ने डराया होगा
जुर्म चाहे पेट से जन्मा नहीं,मगर
भूख पेट की ने जुर्म कराया होगा
अभी ये बस्ती उस को जानती नहीं
लगता हैं इंसान बन दिखाया होगा
Added by मोहन बेगोवाल on February 23, 2013 at 7:30pm — 2 Comments
तेज धूप में छांव की आस है
रेत के बीच बढ़ रही प्यास है
हाथ में तीर और तलवार है
वो जो मेरे दिल के पास है
कथन के अर्थ को समझ लेना
अपनों की अपनों से खटास है…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 7:00pm — 22 Comments
मौलिक
अप्रकाशित
लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।
फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल…
ContinueAdded by रविकर on February 23, 2013 at 4:19pm — 7 Comments
दोस्तों देखे ग़ज़ल आप को कैसी लगी ....
आज के इस दौर में इन्सान चिन्तित है बड़ा,
दरद सहता बेहिसाबा सेज पे भीष्म पड़ा।
तोड़ पिंजरा परिन्दा उड़ भी नही सकता अभी,
क्या करे जाये कहां ये सोच चौराहे खड़ा।
बैर भाई अब यूं करे गौना विभीषन हो गया,
खून के रिश्तें बड़े मतलब बिना है क्या भला।
आग जलती देख कर यूं हाथ सारे सेकते,
हम बुझाये आग क्यों फिर घर जला उसका जला।
इश्क में मतलब जमा शामिल हुआ अन्दाज…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on February 23, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
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