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कच्चे रास्ते में, रास्ता होने की,

असली खुश्बू होती है।

वह चलता है और चलाता है

उसमें खुद को बदलने की हिम्मत है

वह कभी अहम नहीं करता।

वह बरसात की खुशबू को,

सुंदरता को,अच्छी तरह से परख़ता,

पहचानता है।

क्योंकि वह बरसात को सीने से लगा लेता है

वह आस-पास के पेड-पौधों से नहीं शर्माता।

उसे पता है कि शर्म उसकी खुशियों को रोकती है

उसे यह भी पता है

कि यह काम लोगों का है उसका नहीं।

वह अपने तन को धूल बनाकर

हवा के साथ हंसता हुआ उडा देता है

वह गीता के आत्म ज्ञान को कहता नहीं, भोगता है।

वह पक्का होना नहीं चाहता

वह आदमी से प्यार तो करता है

लेकिन उसे हमेशा यही डर सताता है

कंही वह उसे पक्का न कर दे।।

...........................सूबे सिंह सुजान...........

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Comment by सूबे सिंह सुजान on March 27, 2013 at 8:13pm

vijay nikore, जी आपको भी बधाई,,, और आपका बहुत धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 27, 2013 at 8:12pm

pawan amba ..........जी बहुत शुक्रिया

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 27, 2013 at 8:10pm

कौन जिन्दा रहा है यहां देर तक

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 27, 2013 at 8:10pm

मनोज भाई, आप सब का प्रेम मेरे लिये बहुत लाभदायी है।।।

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 6, 2013 at 10:52pm

आप सबके प्रेम के लिये  धन्यवादय़य़य़।।।।।।।।।।।।।।।

Comment by बृजेश नीरज on March 6, 2013 at 9:38am

पुरूस्कार के लिए बधाई!

Comment by Manoj Nautiyal on March 6, 2013 at 7:46am

बहुत खूब भाई |

Comment by vijay nikore on March 6, 2013 at 12:06am

आदरणीय सूबे सिहं जी’

 

एक बहुत ही दिलकश कविता के लिए बधाई।

 

विजय निकोर

Comment by pawan amba on February 27, 2013 at 4:28pm

वह अपने तन को धूल बनाकर

हवा के साथ हंसता हुआ उडा देता है

वह गीता के आत्म ज्ञान को कहता नहीं, भोगता है।...bahut sundar waahhh...Sujan Sahab

Comment by सूबे सिंह सुजान on February 27, 2013 at 12:21am

आप सबका बेहद शुक्रिया

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