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तेज धूप में छांव की आस है

रेत के बीच बढ़ रही प्यास है

 

हाथ में तीर और तलवार है

वो जो मेरे दिल के पास है

 

कथन के अर्थ को समझ लेना

अपनों की अपनों से खटास है

 

बाल धूप में सफेद होने लगे

तेरी उम्र में फिर क्या खास है

 

वो कल जिंदा था आज लाश है
विरोध उनको आता नहीं रास है

                       - बृजेश नीरज

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Comment by बृजेश नीरज on February 26, 2013 at 5:58pm

वीनस जी आपका आभार। मेरे साथ एक समस्या है मैं गा नहीं पाता इसलिए मेरी रचनाओं में लय की कमी रहती ही है।

Comment by वीनस केसरी on February 26, 2013 at 12:25am

बहुत खूब
हार्दिक बधाई
मुझे लयात्मकता में कुछ कमी दिख रही है ...

शुभकामनाएं

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 6:21pm

महोदया,
मैं हिन्दी व्याकरण में काफी कमजोर रहा हूं। लिखना सीख ही रहा हूं। अर्ध विराम, विराम जहां बहुत आवश्यक होता है प्रयोग करने का प्रयास करता हूं अन्यथा नहीं ही करता। यह अभी तक मेरे लेखन का ढंग रहा है। आपकी आपत्ति के बाद इसमें सुधार करने का प्रयास करूंगा लेकिन समस्या यह है कि एक कमजोर विद्यार्थी कितना और किन किन क्षेत्रों में सुधार कर सकेगा यह विचारणीय है।
सादर!

Comment by Vindu Babu on February 25, 2013 at 6:16pm
महोदय सादर अभिनन्दन!
क्षमा करें श्रीमान,मुझे लगता है काव्य अर्ध-विराम,विराम आदि चिन्हों से काव्य में और सुस्पष्टता आती है।
'बाल धूप मे सफेद होने लगे
तेरी उम्र में फिर क्या खास है'
सबसे प्रभावी पंक्ति।
बधाई आपको.
Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 5:33pm

Aarti Sharma ji आपका आभार!

Comment by Aarti Sharma on February 25, 2013 at 5:31pm

अपनों की अपनों से खटास है

बहुत खूब सर..बधाई

Comment by बृजेश नीरज on February 24, 2013 at 7:48pm

आदरणीय गणेश जी
कृपया संशोधन पर नजर डालें। बात कुछ बनती दिख रही है अथवा नहीं।
सादर!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 24, 2013 at 7:08pm
विरोध की हिम्मत हो तो कर।
वो साहब का बहुत ही खास है॥
Comment by बृजेश नीरज on February 24, 2013 at 7:01pm

विन्ध्येश्वरी जी
आपका बहुत आभार! अभी तो यह तनाव है कि बागी जी के आपत्ति के बाद इस 'लाश' का क्या करूं।

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 24, 2013 at 6:49pm
बहुत ही उम्दा भाव है आदरणीय ब्रिजेश जी!बधाई

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