For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक़्त ऐसी किताब माँगेगा (ग़ज़ल 'राज')

२१२२ १२१२  २२

जिन्दगी से जबाब माँगेगा

लम्हा लम्हा हिसाब माँगेगा

 

जिसमे लिक्खा हुआ गणित तेरा

वक़्त ऐसी किताब माँगेगा

 

देख तेरा खुला हुआ वो सबू

खाली प्याला शराब माँगेगा

 

रंग बदले भले कई मौसम

फूल अपना शबाब माँगेगा

 

कैद जिसके लिए किया जुगनू

कल वही माहताब माँगेगा

 

पाक नीयत से देखना उसको 

चाँद वरना निकाब माँगेगा

 

कैद तेरी किताब में अबतक

अपनी खुशबू गुलाब माँगेगा

----मौलिक  एवं अप्रकाशित 

Views: 1014

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 16, 2017 at 7:30pm
आ. राजेश दी,सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है , हार्दिक बधाई ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 16, 2017 at 6:06pm
आदरणीय राजेश जी हमेशा की तरह बढ़िया इस ग़ज़ल पर ढेर सारी बधाई सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 15, 2017 at 10:09pm
बहुतखूब ग़ज़ल हुई आदरणीया..अपनी खुशबु गुलाब मांगेगा..बेहतरीन
Comment by vandana on October 15, 2017 at 3:21pm

कैद जिसके लिए किया जुगनू

कल वही माहताब माँगेगा

वाह आदरणीया राजेश दी बहुत खूब 

Comment by Mohammed Arif on October 15, 2017 at 12:17pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा । मज़ा आ गया । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Ajay Tiwari on October 15, 2017 at 9:17am

आदरणीया राजेश कुमारी जी,
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.
सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 8:48pm

आ राजेश कुमारी जी  बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई 

Comment by दिनेश कुमार on October 13, 2017 at 7:23pm
आपने दोपहर में चियर्स कहा था... अधिक लिख गया होऊँ तो उसी चियर्स का असर मान कर क्षमा कर दीजियेगा // वाह निलेश सर। क्या कहने।

अच्छी ग़ज़ल के लिए दिली दाद आ. राजेश जी।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2017 at 7:05pm

आ. राजेश दीदी 
हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
मतले में एक सुझाव है ...देखिएगा 
.

जिन्दगी से हिसाब  माँगेगा

लम्हा लम्हा जवाब  माँगेगा
.
देख तेरा खुला हुआ वो सबू... कौनसा सबू??
देख कर आप के नशीले  नयन 
ख़ाली.....
.
रंग बदले भले कई मौसम.... या 
रंग मौसम भले 
कई बदले  ... विचार कीजियेगा 
.
चाँद वरना निकाब माँगेगा
निक़ाब.. की जगह हिजाब अधिक ठीक लगता शायद 
.
आपने दोपहर में चियर्स कहा था... अधिक लिख गया होऊँ तो उसी चियर्स का असर मान कर क्षमा कर दीजियेगा 
सादर 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 13, 2017 at 6:27pm
आदरणीया बहन राजेश कुमारी जी।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service