For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन(ग़ज़ल 'राज')

बहर-ए-रमल मुसम्मिन मक्सूर व मह्जूफ़
2122 2122 2122 2121

किसके चेह्रे पर लिखा है कौन दुश्मन यार कौन 
क्या पता है आड में गुल की  छुपा है ख़ार कौन

हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन 
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन

मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार 
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन

मर गया  है मुफ़्लिसी में भूख से देखो अनाथ 
सब ही  खाते थे  तरस लेकिन उठाता भार कौन

पेट भरने के लिए जो कुछ मिला उसका नसीब 
फर्क उसको क्या पड़ेगा जानकर सरकार कौन

राह का रोड़ा बना वो झूठी रस्मों का पहाड़ 
चाहते सब तोड़ना लेकिन करेगा वार कौन

रेप मर्डर प्यार धोखा बस यही खबरें तमाम 
बिन मसालों के यहाँ पर बेचता अखबार कौन 
-----मौलिक   एवं अप्रकाशित 

Views: 915

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2017 at 6:23pm

प्रिय कल्पना भट्ट जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और आपकी सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 5:39pm

हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन 
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन

मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार 
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन बहुत खूब दी | हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2017 at 7:43pm

आ० लक्ष्मण धामी भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2017 at 7:41pm

आद० सुरेन्द्र कुशक्षत्रप  भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया| आपने सही कहा है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2017 at 7:40pm

आद० उस्मानी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया| आपने सही कहा है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2017 at 7:39pm

आद० राज नवाद्वी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2017 at 7:38pm

आद० समर भाई जी,आपकी दूरबीन से बहुत सी ऐसी महीन बातें पकड़ी जाती हैं जिनका हमें भान भी नहीं होता खार व् गुल वाले मिसरे में आपकी बात सोचो तो एक दम दुरस्त है इस गलती को मैं समझ ही नहीं पाई |इसको ठीक कर लूँगी  

फ़र्क़ उसको क्या पड़ेगा है यहाँ सरकार कौन'----बेहतर विकल्प  समझाया 

आद० भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .मिसरे तो मैं सुधार ही लूँगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2017 at 7:33pm

आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपका दिल से शुक्रिया |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 10, 2017 at 4:29pm
आ. राजेश दी , अभिवादन । सुंदर गजल हुई है , हार्दिक बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 9, 2017 at 4:38am
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूँ। शेष आद0 समर साहब कह चुके हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service