२२ २२ २२ २२
नफरत की बुआई जारी है
दहशत की कटाई जारी है
.
ऊपर वाला है खौफज़दा
शैताँ की खुदाई जारी है
.
गुड बंटना बंद हुआ जबसे
रिश्तों में खटाई जारी है
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मेजों पर अम्न की बातें हैं
सरहद पे लड़ाई जारी है
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दिल भी मैला रूह भी मैली
सड़कों की सफाई जारी है
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नादां को दानां का तमगा
ऐसी दानाई जारी है
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गुमशुद हैं दाना पंछी का
जालों की बुनाई जारी है
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बारिश…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on November 10, 2015 at 11:00am — 8 Comments
16 रुक्नी ग़ज़ल
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नफ़रत का बाज़ार सजा है; हममें जितनी, कीमत उतनी।
इच्छाओं का दाम लगा है, खुदमें जितनी, कीमत उतनी।।
इस पुस्तक के पन्नों पर तुम, नैतिकता क्यों कर लिखते हो।
मानवता की छद्म व्याख्या, इसमें जितनी, कीमत उतनी।।
व्यवहार और समाचार में, सिर्फ एक सम्बन्ध यही है।
नमक मिर्च की हुई मिलावट, इनमें जितनी, कीमत उतनी।।
कलयुग वाले महाराज के, दरबारी मानक बदले हैं।
चाटुकारिता भरी हुई है, जिसमें…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 9:30am — 13 Comments
221 2121 1221 212
शब्दों की ओट में छिपे मक्कार हैं बहुत
बाक़ी, अना को बेच के लाचार हैं बहुत
किसने कहा कि बज़्म में रहना है आपको
जायें ! रहें जहाँ पे तलबगार हैं बहुत
अपनी भी महफिलों की कमी मानता हूँ मैं
है फर्ज़ में कमी, दिये अधिकार हैं बहुत
समझें नहीं, कि अस्लहे सारे ख़तम हुये
अस्लाह ख़ाने में मेरे हथियार हैं बहुत
नफरत जता के हमसे, जो दुश्मन से जा मिले
वे भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 8:00am — 46 Comments
2122 2122 2122 212
कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन
इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन
उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है
मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन
बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ
मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन
एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल
फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन
प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है
वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे…
Added by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 2:00pm — 18 Comments
अरकान- 212 212 212 212
दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|
तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ|
ख़ुद न सोने की चिंता वो करती मगर,
लोरियां गा के हमको सुलाती है माँ|
रूठ जाते हैं हम जो कहीं माँ से तो,
नाज-नखरे हमारे उठाती है माँ|
लाख काँटे हों जीवन में उसके मगर,
फूल बच्चों पे अपनी लुटाती है माँ|
माँ क्या होती है पूछो यतीमों से तुम,
रात-दिन उनके सपनों में आती है…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 26, 2015 at 10:30pm — 7 Comments
[आधार छंद : 'विधाता']
1222 1222 1222 1222
कभी अपने मुसीबत में, ज़रा भी काम आये हैं,
जिन्हें समझा नहीं था दोस्त वे नज़दीक लाये हैं।
जिसे माना, जिसे पूजा, उसे घर से भगा कर के,
बुढ़ापे में, जताकर स्वार्थ, ममता को भुलाये हैं।
तुम्हारे पास दिल रख तो दिया गिरवी भरोसे पर,
पता मुझको चला तुमने, हज़ारों दिल दुखाये हैं।
कभी वे फोन पर बातें करेंगी, स्वर बदलकर के,
कभी वे नेट पर चेटिंग, झिलाकर के बुलाये हैं।
न जाने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:30am — 10 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 10:46pm — 5 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on October 18, 2015 at 5:00pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:15pm — 5 Comments
2122 2122 212
लौट कर जब शाम को मैं घर गया ,
निस्फ़ दफ़्तर साथ में लेकर गया ।
आंख में देखी थकानों की नदी,
डूब कर उत्साह घर का मर गया ।
खेंच लो तुम भी तनाबें नींद की ,
चाँद खिड़की से हमें कह कर गया ।
बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,
ध्यान भी उस बात पर अक्सर गया ।
जब गया तो वो सिंकदर या सखी ,
शान शौकत सब यहीं पर धर गया ।
क्या बताएं वक़्त की मज़बूरियां…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 6:06pm — 10 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:36am — 16 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2015 at 5:22pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
छलकते आँसुओं को हम तभी क्यूं भूल जाते हैं..
किसी को याद करके हम कभी क्यूं मुस्कुराते हैं..
-
न हम अपनी वफ़ाओं को कभी भी छोड़ पाते हैं,
न अपनी बेवफाई से कभी वो बाज़ आते हैं..
-
फ़िदा इन ही अदाओं पर हुऐ थे हम कभी यारों,
ज़रा सी बात पे वो रूठ कर फिर मान जाते हैं..
-
नज़र की बात थी,पर वो कभी भी बूझ ना पाये,
ज़रा, हम हाल दिल का बोलने में हिचकिचाते हैं..
-
भटक के इस शहर में,उब…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2015 at 3:50pm — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2015 at 6:53pm — 17 Comments
हुई जो ख़बर नाम चलने लगा है ।
ये सारा जहां हमसे जलने लगा है ।।
यहां झूठ से सबको नफरत है फिर भी ।
है किसकी ये शह जो मचलने लगा है ।।
न तुम आग उगलो न मै ज़ह्र घोलूं ।
ये सोचें लहू क्यूँ उबलने लगा है ।।
बुरे वक्त में लोग करते है जुर्रत ।
हुई शाम सूरज भी ढलने लगा है ।।
तुम्हें देखते ही हमारी कबा से ।
उदासी का आलम पिघलने लगा है ।।
अज़ल से वही है ज़फ़ा का बहाना ।
कि मौसम के…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 15, 2015 at 5:11pm — 26 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on September 14, 2015 at 2:12pm — 12 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 2:30pm — 14 Comments
(221 1222 221 1222)
जाता नहीं अब कोई भी दर्द दवा लेकर..
ज़ख्मों को भरा दिल के,यादों का नशा लेकर..
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अब तक न मेरे फ़न को पहचान सके हैं जो,
फिर बाद में ढूंढेंगे वो मुझको दिया लेकर..
-
फीके सभी पकवानों के स्वाद हो जाते हैं,
खाता है नमक रोटी, जब भी वो मज़ा लेकर..
-
खोले खिड़की बैठा मैं देख रहा रस्ता,
शायद पहुँचे, कोई पैगाम हवा लेकर..
-
न ढूंढ सकेगा सारी उम्र खुदा को 'जय',
फिर बोल करेगा क्या, तू उसका पता…
Added by जयनित कुमार मेहता on September 6, 2015 at 11:53pm — 10 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2015 at 2:47pm — 5 Comments
1212 1122 1212 22/112
चलो! दुआ ये अभी बैठकर ख़ुदा से करें
कुछेक मुश्किलों के हल तो अब दुआ से करें.
वो अम्नो चैन यहाँ यूँ बह़ाल हों शायद
ख़िरद से काम लें गर बात क़ाइदा से करें.
अ़जीब नस्ल के इस दर्द पे कहा ये तबीब
अब ऐसे दर्द का दरमां भी किस दवा से करें.
ख़ुदा है सबपे, अगर सच यही है तो ऐ दिल!
चराग़ तू तो जला, बात क्या हवा से करें.
वो ख़ुशनिहाद है, ख़ुशदिल है, ख़ुशज़बाँ है तो
अब ऐसे शख्स का पैमाई किस उला से…
Added by shree suneel on September 5, 2015 at 1:00am — 6 Comments
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