For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : रिश्तों में खटाई जारी है

२२ २२ २२ २२

नफरत की बुआई जारी है
दहशत की कटाई जारी है

.

ऊपर वाला है खौफज़दा
शैताँ की खुदाई जारी है

.

गुड बंटना बंद हुआ जबसे
रिश्तों में खटाई जारी है

.

मेजों पर अम्न की बातें हैं
सरहद पे लड़ाई जारी है

.

दिल भी मैला रूह भी मैली
सड़कों की सफाई जारी है

.

नादां को दानां का तमगा
ऐसी दानाई जारी है

.

गुमशुद हैं दाना पंछी का
जालों की बुनाई जारी है

.

बारिश है गैर यकीनी, पर
खेतों में जुताई जारी है

.

दफना डाला हर जिंदा कुआँ
खंडहर में खुदाई जारी है

.

दिल करता है धक धक धक धक
उनकी अँगड़ाई जारी है

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 10:30pm

हर शब्द को गंभीर तरीके से एक माला में पाया  है सर आपने | हर शे' र लाजवाब है | सादर नमन | 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 12, 2015 at 10:39am
ग़ज़ल हो तो ऐसी। बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय योगराज जी। शे’र दर शे’र दिली दाद कुबूल फ़रमाइये।
Comment by vijay nikore on November 11, 2015 at 12:50pm

 बहुत ही अच्छी गज़ल कही है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 10, 2015 at 10:28pm
जनाब योगराज प्रभाकर जी,आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुवा हूँ ,अच्छा कहते हैं आप ,आपकी ग़ज़ल पसंद आई,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by kanta roy on November 10, 2015 at 2:37pm
नफ़रत , दहशत , खौफजदा , शैंता , रिश्तों में खटाई की बातें पढकर मन डूब सा गया है । मन सोचने के लिए विवश है कि क्या सच में दुनिया बहुत कठोर व कठिन है सच्चे लोगों के लिए ! वाकई में जो दिखाई देता है वो होता नहीं है ।
हमेंशा की तरह यह कृति भी अनुपम हुई है आपकी । नमन श्री ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 2:24pm

आदरणीय योगराज सर, बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल पढने मिली है. बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. इस ग़ज़ल को पढ़कर समझ आ रहा है कि ग़ज़ल के शब्द नहीं बल्कि उनके प्रतीक बोलते है और फिर आपका हर अशआर जिस आयाम.../जिन आयामों पर खुलता है वह देखकर चकित हूँ. इस लाजवाब ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

 

नफरत की बुआई जारी है 
दहशत की कटाई जारी है............ वाह वाह शानदार मतला हुआ है. हमेशा से नफरत के बीज बोने वाले आतंक और विप्लव की फसल काटते है जिसे भोली जनता समझ ही नहीं पाती है.

.

ऊपर वाला है खौफज़दा 
शैताँ की खुदाई जारी है........... वाह वाह ... शब्दों के चयन में प्रतीकों का बढ़िया प्रयोग हुआ है. ये शेर पाठक वैचारिक पृष्ठभूमि पर आधारित हो गया है. जिसका सोचने का दायरा जितना बड़ा होगा शेर उतना ही खुलता जाएगा. अद्भुत प्रयोग.

.

गुड बंटना बंद हुआ जबसे 
रिश्तों में खटाई जारी है............ गुड़ की मिठास का ध्वन्यार्थ रिश्तों की खटाई पर क्या खूब फिट बैठा है. वाकई आपकी संबंधों में जब से भौतिकवाद हावी हुआ है और खुशियों को बांटना भूल रहे है तो संबंधों में खटाई आनी ही है.

.

मेजों पर अम्न की बातें हैं 
सरहद पे लड़ाई जारी है................. कमाल कमाल .... दो पंक्तियों में बड़ी बात कह दी आपने. कमाल का शेर.... लाजवाब..... बड़ा शेर हुआ है. मानवतावादी दृष्टिकोण से लबरेज वसुधैव कुटुम्बकम के लिए प्रेरित करता और वैश्विक राजनीति की स्थिति की वास्तविकता को उजागर करता शेर. हासिल-ए-ग़ज़ल

.

दिल भी मैला रूह भी मैली 
सड़कों की सफाई जारी है................. शानदार शेर....... उला का विचार कई बार पढ़ चुका हूँ लेकिन सानी में आपके फन का कमाल देख रहा हूँ. उला का ऐसा जबरदस्त प्रयोग देखकर दिल खुश हो गया. छोटी बह्र की ग़ज़ल में ऐसे ही जादू पैदा होता है. अद्भुत. ऐसा बढ़िया व्यंग्य कि बस दिल से वाह वाह निकल रही है.

.

नादां को दानां का तमगा 
ऐसी दानाई जारी है.................... हा हा हा ...... ये आपने खूब कहा.... बात ऐसे दानां लोगों तक पहुंचनी चाहिए.

.

गुमशुद हैं दाना पंछी का 
जालों की बुनाई जारी है................. इस शेर पर स्पष्ट नहीं हूँ. संभवतः प्रतीकों को सही दिशा में खोल नहीं पा रहा हूँ. मागदर्शन निवेदित है.

.

बारिश है गैर यकीनी, पर
खेतों में जुताई जारी है...................... सही कहा आपने .... यही हालात है. भारतीय किसान की यही विडंबना है. ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ इसलिए इस दर्द को महसूस भी कर रहा हूँ और इस स्थिति पर नम भी हुआ जा रहा हूँ.

.

दफना डाला हर जिंदा कुआँ
खंडहर में खुदाई जारी है.................... ये है प्रतीकों का सटीक प्रयोग .... बिलकुल यही हुआ जा रहा है आजकल

.

दिल करता है धक धक धक धक
उनकी अँगड़ाई जारी है.................. अय हय..... मासूम सा शेर..... अद्भुत चित्र खींचा है आपने. इस शेर पर दिल से दाद. ये अनुभवी कलम से निकला शेर है. वाकई शृंगार पर लिखना इतना सहज नहीं है. कमाल....

 

एक पाठक की हैसियत से इस बेमिसाल ग़ज़ल पर दिल से दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. ग़ज़ल के अभ्यासी की हैसियत से इस प्रस्तुति हेतु आभार और नमन

 

 

Comment by Rahila on November 10, 2015 at 1:48pm
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय योगराज जी!बहुत बधाई आपको । इस विधा की कोई जानकारी तो नहीं हमें, लेकिन ग़ज़ल का बहुत अर्थपूर्ण होना दिल को भा गया । सिर्फ ऊपर की तीसरी लाइन में ऊपर वाले की शान में खौफज़दा शब्द थोड़ा अखर गया । गुस्ताखी मॉफ ।सादर नमन ।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 10, 2015 at 11:25am

हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी!मुझे गज़ल की ज्यादा समझ नहीं फ़िर भी आपकी गज़ल का एक एक लफ़्ज़ मुझे अंदर तक छू गया!आज के हालात का इतना बेहतरीन नज़ारा पेश किया है कि मज़ा आ गया!पुनः बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service