For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ ही दिन पहले हुई पिता की मृत्यु से वह अभी उबर भी न पाया था कि अचानक शोक संतप्त माँ को दिल का भयंकर दौरा पड़ गयाI डॉक्टरों ने साफ़-साफ़ बता दिया था कि उसकी माँ अब ज़्यादा देर की मेहमान नहींI

कुछ ही समय पहले उसके पिता की गोलियों से छलनी लाश एक सुनसान क्षेत्र में पाई गई थीI पुलिस का कहना था कि यह आतंकवादियों का काम है, जबकि स्थानीय कट्टरपंथी इसे सेना द्वारा की गई फर्जी मुठभेड़ कह कर लगातार विष वमन कर रहे थेI शवयात्रा के दौरान पूरे रास्ते में देश और सेना विरोधी नारे लगते रहे थेI अपने पिता का शव देखकर बार-बार उसकी मुठ्ठियाँ तनीं थीं और आँखों से अंगारे बरसने को हो रहे थेI

कट्टरपंथियों ने उसके दिल में नफरत का ज़हर इस तरह दिया था कि अब वह पहले जैसा शांत स्वभाव नहीं रह गया थाI माँ से कभी कभार बात करना, अनजान लोगों से मुलाकातें करना और रात-रात भर से बाहर रहना उसकी दिनचर्या में शामिल हो चुका थाI विधवा माँ अपने इकलौते जवान बेटे का यह रूप देखकर किसी अनजाने भय से अन्दर तक काँप उठती थीI वह जब भी नौजवान लड़कों के सीमा पार जाकर आतंकवादी बनने या उनके मारे जाने की बातें सुनती तो उसका दिल धक से बैठ जाता, शायद इसी कारण उसे ह्रदयघात हुआ थाI 

वह अस्पताल के बिस्तर पर आखरी साँसे गिन रही माँ ने पास बैठा सुबक रहा थाI
"माँ...I" उसका गला बेहद भरा हुआ था I 
"मैं जा रही हूँ बेटा... दिल में बहुत से अरमान थेI ...  बस...बस... तुम अपना ख्याल रखना I" माँ की आँखों से अश्रुधारा बह निकलीI
"ऐसा मत कहो माँ, रुम्हें कुछ नही होगा.... पर मुझ से यूँ नाराज़ मत होI तू जो कहेगी मैं वही करूँगाI"
"तो मेरी एक बात मानेगा बेटा?" 
"हाँ माँ, तू हुक्म तो करI" माँ के आँसू पोंछते हुए उसने उत्तर दिया I 
"तो मेरे सर पर हाथ रख कर कसम खाI" बेटे का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखते हुए माँ ने कहाI
"बोल माँ बोल, मैं तेरी कसम खाकर कहता हूँ कि जान दे कर भी अपना कौल निभाऊँगाI" 
उखड़ती हुई साँसों के कारण बहुत कठिनाई से, डूबते हुए स्वर में माँ बोली: 
"बेटाI वादा कर कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर तू अपनी इस ज़मीन को छोड़कर सरहद के उस पार कभी नहीं जाएगाI"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:34pm

// "बेटा I वादा कर कि चाहे कुछ भी हो जाये, पर तू अपनी इस ज़मीन को छोड़कर सरहद के उस पार कभी नहीं जाएगा I"//

इस एक पंक्ति में ही आपने बहुत-कुछ कह दिया।

अच्छी लघुकथा के लिए बधाई, आदरणीय योगराज जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2015 at 1:26am

आदरणीय योगराजभाईजी, आपकी प्रस्तुति समस्या विशेष से सम्बन्धित कई सवालों के ज़वाब देने का प्रयास कर रही है. ऐसे वातावरणमें हुई मौत के सापेक्ष अनायास उभरते तर्क-कुतर्क को भी अच्छी तरह से बाँधने का प्रयास हुआ है. ऐसे वातावरण सर्जन के क्रम में जैसा संयम और संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए, उसका सार्थक निर्वहन हुआ है.

लेकिन लघुकथा तनिक और कसावट मांगती लगी. मैं वस्तुतः इस प्रस्तुति में आप वाला ’टच’ ढूँढने में लगा हूँ. अपेक्षा अन्यथा भी नहीं है. इसी क्रम में टंकण त्रुटियों का होना वही ’हलवे में कंकड़’ की याद दिला देता है. 

एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दे को सहजता के साथ प्रस्तुत करने के साहसी प्रयास केलिए हार्दिक बधाई आदरणीय.

शुभ-शुभ

 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 9, 2015 at 9:17pm
देश प्रेम में बदलता मातृप्रेम ।बहुत ही उम्दा भाव लिए एक अद्भुत लघुकथा के लिए कोटिशः हार्दिक बधाई पूजनीय सर जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 9, 2015 at 7:26pm

तू अपनी इस ज़मीन को छोड़कर सरहद के उस पार कभी नहीं जाएगा I"-जय भारत माता  राष्ट्रीयता से ओत प्रोत इस् रचना को सलाम  अलबत्ता कुछ टंकण अशुद्धियाँ  लजीज दाल  में कंकर की तरह करकती  रही . अभिनन्दन अनुज.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2015 at 4:27pm

लघुकथा का सकारात्मक अंत भा गया. आदरणीय योगराज सर, इस शानदार लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर नमन 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 9, 2015 at 11:07am

यह एक कटु सत्य है कि जिसे अपनी माटी से प्यार न हो उसे किसी से भी सच्चा प्यार नहीं हो सकता .इसी बात को उजागर करती इस बेहतरीन लागूकथा के लिया कोटि कोटि बधाई ...आ० भाई गिरिराज जी .

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 9, 2015 at 9:52am
घर छोड़ के न जाओ , कहीं घर न मिलेगा ,
वतन छोड़ दोगे कहीं वतन नहीं मिलेगा।
बहुत सुन्दर कथा , बधाई , आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, सादर.
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 2:03am
बेहद कड़वे अनुभव से गुजरने के बाद भी लगभग मृत्यु-शैया पर देश प्रेम और सच्ची नागरिक होने का प्रमाण देते हुए माँ के "डूबते हुए स्वर" नवयुवक पुत्र के "उगते हुए देशप्रेम" व उभरते हुए देश भक्त का उद्घोष ही नहीं करते हैं, बल्कि नवयुवकों और उनकी माँओं के समक्ष एक प्रेरक मिसाल प्रस्तुत करते हैं, दिग्भ्रमित होने से बचाने के लिए। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और हार्दिक आभार आपका आदरणीय गुरुजी श्री योगराज प्रभाकर जी।
Comment by Nita Kasar on December 8, 2015 at 8:23pm
मौत के मुहाने पर खड़ी माँ बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित हो वादा लेती है बेटा उसके जाने के बाद भारत माता के प्रति वफ़ादार रहें जिससे वह चैन से मौत को गले लगा सके कथा पढ़कर एक माँ का गला रूँध आना स्वाभाविक है ।आज का माहौल कुछ एेसा हो चला है युवाओं का भटकने का अंदेशा बढ़ गया है सकारात्मक सोच सटीक राह दिखाती कथा के लिये दिली बधाईयां आद०योगराज प्रभाकर जी ।
Comment by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 7:41pm

"बेटा I वादा कर कि चाहे कुछ भी हो जाये, पर तू अपनी इस ज़मीन को छोड़कर सरहद के उस पार कभी नहीं जाएगा I"
आदरणीय योगराज सर इस पांच लाईन ने न केवल हृदय पर गहरा असर छोड़ा है बल्कि लघुकथा में युवकों में पनपती भटकन को भी चित्रित करने का प्रयास किया है। इसमें कहीं अपने देश के प्रति वफादारी का जज़्बा तो कहीं परिस्थितिजन्य नफरत का लावा जो किसी देश की युवा पीढ़ी मार्ग को बदल सकता है , को चित्रित करने का सफल प्रयास किया गया है। इस बेहद संवेदनशील मुद्दे को आपने बड़े ही सहज भाव से प्रस्तुत किया है। इस संदेशप्रद लघुकथा के प्रेषण पर आपको हार्दिक बधाई सर जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service