For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"प्यार-संस्कार" - (गीतिका) [2]

2122 2122 2122 21
आधार छंद- रूपमाला (मापनी-मुक्त)

चार दिन की चाँदनी है, चार दिन का प्यार,
प्यार का बीमार कहता, भावना व्यापार।
[1]

आज हम त्योहार पर ही, बांटते हैं प्यार,
काश हम हर 'वार' को ही, बांटते हर बार।
[2]

काश उन्हें पूछते हम, बेचते जो प्यार,
झेलते तन बेचकर ही, रोज़ अत्याचार।
[3]

भागते फिरते जुटाने, रोज़ धन को लोग,
तब तरसते खूब रहते, छोड़ कर सब प्यार।
[4]

जाग कर के रात को हो, मौन वार्तालाप,
दूर बैठे अजनबी से, यौन सा आचार ।
[5]

झूठ बोला छल-कपट कर, हो गया बदनाम,
कामयाबी अनवरत है, पर नहीं सत्कार।
[6]

छोड़कर इन्सानियत को, स्वार्थ साधक घाघ,
भ्रष्ट कर निज धर्म करते, जिस्म का व्यापार।
[7]

सीखते फिरते रहे जो, पश्चिमी हर चीज,
भूलते उपहास करके, पूर्व के संस्कार ।
[8]

(मौलिक व अप्रकाशित)

_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 20, 2016 at 4:55pm
वास्तव में मुझे जानकारी नहीं थी कि गीतिका नाम से भी कोई छंद होता है , कृपया अनजाने में हुई किसी त्रुटि के लिए क्षमा कीजिएगा आदरणीय वरिष्ठजन।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 20, 2015 at 11:54am
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, जहां तक मेरी जानकारी कहती है कि मैंने यहाँ आधार छंद "रूप माला" पर आधारित कुल आठ युग्म लिखे हैं, जिनमें से प्रथम तीन तो मुखड़े के रूप में प्रस्तुत किए हैं, जबकि एक ही मुखड़ा गीतिका में देते हैं। शेष सभी युग्मों में गीतिका के विधान अनुसार 4 से 8 तक प्रत्येक युग्म की दुसरी पंक्ति में तुकांत का पालन हुआ है। अतः यह दो अतिरिक्त मुखड़ों के साथ एक गीतिका ही है। कृपया आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी की टिप्पणी पर भी ध्यान दीजिएगा।शायद आपको कोई भ्रम हुआ है। यदि मेरी कोई त्रुटि है दो अतिरिक्त मुखड़ों के अलावा, तो कृपया वरिष्ठ सुधीजन मार्गदर्शन करें इस नौसीखिये का। आप दोनों को मेरी रचना पर समय देने व टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद। सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 18, 2015 at 12:46pm

आ०  उस्मानी जी , आपने रूपमाला छंद में रचना की और शीर्षक में गीतिका लिखा जबकि   गीतिका एक अलग छंद है . दूसरी बात रूपमाला में चार  चरण होते है और दो दो पदों की तुकांतता बनती  है  आपके छंद पाँच से आठ में दो पदों की तुकान्तता   नहीं है . बेशक भाव अच्छे है , थोड़े से प्रयास से आप छंद सिद्ध कर लेंगे . सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2015 at 5:55pm

रूपमाला  छंद आधारित गजल का सुंदर  प्रयास हुआ  है  श्री शेख शहजाद भाई - इसमें एक ही रचना  में प्रथम तीन युग्म तो मुखड़े ही है | कुछ जगह मामुल्ली परिवर्तन से लय भंग सुधरी  जा सकती है -

चार दिन की चाँदनी है, चार दिन का प्यार,
प्यार का बीमार कहता, भावना व्यापार।
[1]

आज हम त्योहार पर ही, बांटते हैं प्यार,
काश हम हर 'वार' को ही, बांटते हर बार।
[2]

काश उन्हें पूछते हम, बेचते जो प्यार,  - काश हम पूछें उन्हें भी, बेचते जो प्यार 
झेलते तन बेचकर ही, रोज़ अत्याचार।

Comment by Shyam Narain Verma on October 15, 2015 at 1:03pm

लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service