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ग़ज़ल--( माँ) बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान-    212  212   212  212

 

दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|

तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ|

 

ख़ुद न सोने की चिंता वो करती  मगर,

लोरियां गा के हमको सुलाती है माँ|

 

रूठ जाते हैं हम जो कहीं माँ से तो,

नाज-नखरे हमारे उठाती है माँ|

 

लाख काँटे हों जीवन में उसके मगर,

फूल बच्चों पे अपनी लुटाती है माँ|

 

माँ क्या होती है  पूछो यतीमों से तुम,

रात-दिन उनके सपनों में आती है माँ|

 

माँ के मुंह से न छीनों निवाला कभी,

भूखे रहकर जो तुमको खिलाती है माँ|

 

राम लल्ला समझ अपनी औलाद को,

अपनी बाँहों में झूला झुलाती है माँ|

 

माँ के दिल को न हर्गिज दुखाओ कभी,

रूप भगवान का लेके आती है माँ|

 

 मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 512

Comment

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 30, 2015 at 5:06pm

रवि शुक्ला साहेब .... उचित सलाह हेतु आपसब गुणी जनों को नमन| 

Comment by Ravi Shukla on October 29, 2015 at 9:04pm
आदरणीय बैजनाथ जी ग़ज़ल का सुन्दर प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें । आदरणीय गिरिराज जी की सलाह पर विचार किजियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 29, 2015 at 8:48pm

आदरणीय बैजनाथ भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ  --  इस मिसरे मे  - जा कर कहने से मिसरा बेबह्र हो रहा है  , कर को एक मात्रा नही ले सकते अतः उसकी जगह  के  - कर लीजिये --  तब नहीं जाके फिर ... 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 27, 2015 at 7:07pm

श्याम वर्मा जी..... धन्यवाद|

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 27, 2015 at 7:06pm

मनोज साहेब, सही और उचित सलाह के लिए धन्यवाद|  .........गुणी जनों के मशवरे की प्रतीक्षा में..... बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'| 

Comment by Shyam Narain Verma on October 27, 2015 at 5:22pm
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
Comment by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 11:56am
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय शर्मा जी




दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|
तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ| इसमें जाकर को जाके कर लीजिये

माँ क्या होती है पूछो यतीमों से तुम,
रात-दिन उनके सपनों में आती है माँ| इसमें आपने क्या को एक मात्रिक लिया है
वैसे तो ठीक है पर गुणी जनों से भी कुछ मश्वरा मिल जाये तो अच्छा है

बहुत बधाई इस प्रयास के लिये
सादर

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