For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,125)

7..हाइकु....

हाइकु....
-----------
तेवर भी है
अंग-अंग सोने सा
जेवर भी है.
-------------
नही सूरत
सोच बदल डालो
है जरुरत.
----------
जान बचाओ
खतरे ही खतरे 
बाज तो  आओ.
-----------
मुर्गी क़े लिए
लड़ते बदस्तूर
कुर्सी क़े लिए
-------------
लड़कियां हैं
ताजगी साथ…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on June 13, 2012 at 8:30pm — 11 Comments

बहुत तेज़ है मेरी लुगाई बाबाजी

 

ओ बी ओ परिवार के समस्त स्वजनों को अलबेला खत्री का विनम्र प्रणाम .



एक शो  और एक शूटिंग के  चलते मैं  तीन दिन  सूरत से बाहर रहा . इसलिए यहाँ हाज़िरी नहीं दे पाया . परन्तु  अच्छा ये रहा कि  महा उत्सव  में एक कुंडलिया और एक  घनाक्षरी  मैंने  टी वी पर भी सुनाई तो लोगों ने  ख़ूब सराहा .  बाबाजी वाली एक ग़ज़ल भी …

Continue

Added by Albela Khatri on June 13, 2012 at 7:27pm — 24 Comments

एक अर्थशास्त्रीय कविता, जीडीपी की माया-

जीडीपी से नौकरी,

ये अर्थशास्त्र कभी समझ न आया,

क्यों उगलते हैं कारखाने काला धुंआ,

जीडीपी ने कभी नहीं बताया,



सोचो ज़रा आसमान में,

सुराख किसने है बनाया,

क्यों झुलसाती है सूरज की किरणे इतना,

जीडीपी ने कभी…

Continue

Added by अरुण कान्त शुक्ला on June 13, 2012 at 7:00pm — 7 Comments

छा गए नभ पे बादल (गीत)

छा गए नभ पे बादल

धरा पे हलचल हो गयी

बह चली शीतल पवन

आशाएं तरंगित हो गयी

बरसेगा धरती पे जल

किसान चलाएगा हल

डालेगा बीज खेतों में

स्वर्णिम होगा घर घर

बरखा बूँदें गिरने से

धरा तो गीली हो गयी

छा गए नभ पे बादल

धरा पे हलचल हो गयी

बह चला पानी धरती पर

अमूल्य है ये निर्मल जल

हो जाए कहीं बेकार नहीं

बना के मेड़ों पर बंद

जल निकास नाली हो गयी

छा गए नभ पे बादल

धरा पे हलचल हो…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 3:00pm — 11 Comments

(सर चकराए)

(सर चकराए)

राधे माँ के लटके झटके

नित्यानंद के देखो नखरे

निर्मल बाबा के अजीब उपाय

देख के भईया सर चकराए

बाबाओं की गजब कमाई

अपार दौलत शोहरत पायी

गरीब तलाशता गोबर में दाना

बाबाओं नें लुटिया डुबाई

साधू नहीं यह स्वादु हैं

भोली जनता इनकी बाजू हैं

मृदुवाणी से बस में करते है

और झोलियाँ अपनी भरते हैं

कोई तन लूटे कोई मन लूटे

सब धन लूटे चुपचाप

उनकी चिकनी चुपड़ी बातों से

हो रहे हम बर्वाद

यह बाबा फसल बटेरे हैं…

Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on June 13, 2012 at 2:53pm — 4 Comments

उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है

उसने यारों मुझको पागल कर रखा है।

उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है॥



अश्क़ों की बारिस को अब मैं रोकूँ कैसे,

आँखों को सावन का बादल कर रखा है॥



ख़ुद ही बढ़…

Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 13, 2012 at 1:30pm — 8 Comments

मासूम कली (गीत)

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ  

जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

मासूम सी कली तू बगिया में खिली है 

थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है 

चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ

जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ



बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए 

खा गया था काल तुम थे रो…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 1:22pm — 8 Comments

दोहा कहे मुहावरा: खोल देखकर आँख --संजीव 'सलिल'







दोहा कहे मुहावरा:

खोल देखकर आँख

संजीव 'सलिल'

*





रवि-किरणें टेरें तुझे, देख खोलकर आँख.

आलस तज उठ जा 'सलिल', लग न जाए फिर आँख..

*







आँख मिलाकर आँख से, डाल आँख में आँख.

खुली आँख सपने दिखे, खुली रह गयी आँख..

*





आँख बंदकर आँख को, राह दिखाये आँख.

हाथ थामकर आँख का, गले लगाये आँख..

*



बाधा से टकरा पुलक, घूर मिलाकर आँख.…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 13, 2012 at 9:15am — 7 Comments

घोसले बनाते है बड़े अरमानो के साथ

अपने भावो को शब्दों में उतारना मुमकिन न था, एक कोशिश की है मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत कराएँ ताकि भविष्य में उनको दोहराने की भूल न करूँ

आपका योगेश शिवहरे "यश"

 

जो घोसले  बनाते है बड़े अरमानो के साथ

ज़माने ने देखे बड़े रंज-ओ  गम के साथ…

Continue

Added by yogesh shivhare on June 12, 2012 at 7:00pm — 10 Comments

= जीवन सन्दर्भ =

= जीवन सन्दर्भ =

खेत की मुंडेर पर चहकते पक्षियों की ढेर सारी बातें,

गेहूँ की बालियों के आँचल की मदमाती भीनी-भीनी सुगंध,

सर्दी की धूप का मेरी पीठ पर रखा दोस्ताना हाथ,

एक लय होकर काम करते हुए अनेक जीवन,

बैलों के गले की घण्टियों का राग,

यहाँ वहाँ उछलकूद करते बछड़े,

रंभाती गायें,

इन परिदृश्यों का स्वार्गिक…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2012 at 5:02pm — 6 Comments

था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है ( गीत )

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है

था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है



मेड पर गिरते पड़ते छुप जाते थे खेतों में

नदी किनारे बनाते घरोंदे मिटाते थे रेतों में

बरसते पानी में छप छपाना अच्छा लगता है

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है



कूकती कोयल अमरिया आसमा की अरुणाई

तप्त दुपहरिया पेड़ तले सालन रोटी खाई

माँ के हाथों घूंघट ओट मुस्कराना अच्छा लगता है

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है



वो रहट की आवाजें वो गन्ने…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 5:00pm — 20 Comments

सुग्गे!!!..............(लघुकथा)

सुग्गे!!!

(लघुकथा)
-----------------------------------------------------------
रोज की तरह आज भी रमेश सायकल पर सुग्गों  के पिंज़रे लटका कर बेचने के लिये निकला.आज की धूप सुबह से ही चिलचिलाती सी थी.
दिनभर आवाज लगा-लगा कर रमेश का गला सूखा जा रहा था.पूरब की लाली धीरे-धीरे पश्चिम के आकाश को लाल करने लगी थी मगर एक भी सुग्गे की बिक्री का संयोग रमेश के भाग में नहीं आया.धूप से बेहाल,थक कर चूर, रमेश सुग्गों के पिंज़रों से भरी…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on June 11, 2012 at 7:30pm — 8 Comments

अब दीप मुल्के इश्क में उन्माद चाहिए

रो मत अरे नादां नहीं ये आब चाहिए

दुनिया बदलने को दिलों में आग चाहिए



दहशत मिटे वहशत मिटे इस मुल्क से मेरे

बिस्मिल,भगत,अशफाक औ आज़ाद चाहिए



लड़ने बुराई से मिटाने गर्दिश-ए-वतन

चट्टान सा तन औ जिगर फौलाद चाहिए…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 11, 2012 at 5:13pm — 9 Comments

ठोकरें ज़माने की

ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की

मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की

 

फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा

तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की

 

ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा

ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की

 

रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में

अब…

Continue

Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 11, 2012 at 12:44pm — 14 Comments

बाबा जी ओये बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी

बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी ओए

पाकिस्तान बना समुन्दर चीन चलाये चप्पू जी

रामदेव का स्वदेशी अभियान बना रहा भारत महान

काला धन और भ्रष्टाचार देश की परम सुखी संतान

अन्ना को देश गांधी बोले हुंकार की उसके सिंहासन डोले

थे कभी अलग अलग दोनों अब अन्ना संग राम देव बोले

बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी



जनता में विश्वास जगा है जान गए किस किस ने ठगा है

राम देव को मिल गया ज्ञान क्या दगा है कौन सगा है

सोयी जनता चेत रही है बेईमानों को देख रही है…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 11:30am — 16 Comments

पता ही पूछ लेते आप भी मयखाने का

दिखा है आइने में अक्स जो अंजाने का

कोई किरदार था भूले हुए अफ़साने का



मुझे जिसने भुलाया चार दिन की चाहत कर

वही अब ढूंढता है इक बहाना आने का



शराबी मिल गया गुजरात की गलियों में गर

पता ही पूछ लेते आप भी मयखाने का



जरा सी बात पर…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 11, 2012 at 10:19am — 4 Comments

पानी



बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस

चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास

सात दीप और सात समुन्दर

सुन्दर कृति जल थल नभ पर

सात सुरों से संगीत बजता

पंचम पे पा सप्तम नी सजता

पंचम से गीत जब सजता

सप्तम बिना कंठ नहीं रुचता

पंचम सप्तम जब मिल जाते

गीत मनोहर सुन्दर भाते

जीवन का सुन्दर आधार

पंचम सप्तम का युगल संसार

तत्व समझते मुनिवर विज्ञानी

श्रष्टि जीवन शून्य बिन पानी

जल बिन जीवन मीन बिन पानी

पानी जीवन पर्याय बना है…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:00am — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : खौफ़

ट्रेन तकरीबन आधी रात के समय स्टेशन पर पहुंची, राजीव एक हाथ में सूटकेस संभालते पत्नी निधि को साथ लेकर जल्दी से ट्रेन से उतरा, अमूमन चहल पहल वाले इस स्टेशन पर सन्नाटा पसरा था, वहां केवल तीन चार ऑटो रिक्शा वाले ही मौजूद थे किन्तु उनमे भी सवारी बैठाने की कोई चिल्ल पौं न थी | राजीव ने बारी बारी सभी से कृष्णा कालोनी चलने को कहा, लेकिन कोई जाने को तैयार ही नहीं हुआ, तो उसने पूछा,

"आखिर बात क्या हैं, क्यों नहीं जाना चाहते ?"

"शहर के हालत अच्छे नहीं है बाबूजी, आज कुछ असामाजिक तत्वों ने…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2012 at 9:37pm — 39 Comments

रूपसी संध्या

अरुण करुण रतनार गगन में 

कुछ चंचल कुछ शांत भाव में लीन

अद्वैत रागिनी अलापती ...

धुल धूसित आभा से कुछ थकी मंशा से 

मधुर-मधुर करुण ध्वनि की रागिनी ! 



यों डगमग हलचल सरिता की लहरों सी

उथल पुथल कर गिरती चलती 

असफल पथिक की करुण कथा 

शांत-शांत शून्य में झाँकती

रोती मुस्कराती रूपसी

हरित धरा के अधर…

Continue

Added by Raj Tomar on June 10, 2012 at 8:16pm — 5 Comments

अब मुझे पता न बताओ मेरी मंजिलो का

अब मुझे पता न बताओ मेरी मंजिलो का

पूझे पता है की मुझे जाना किधर है

वही से आया हू वही जाऊंगा बेफिक्र रह

चाहो तो भाल पर पढ़ लो नक्सा इधर है

लूटे नहीं इस शहर में अमीर के घर…

Continue

Added by yogesh shivhare on June 10, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service