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माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी

इस दुनिया में कौन सुखी है बाबाजी

जिसको देखो, वही दु:खी है बाबाजी



तुम तो केवल चखना लेकर आ जाओ

बोतल हमने खोल रखी है बाबाजी



इसकी चन्द्रमुखी है, उसकी सूर्यमुखी

मेरी ही क्यों  ज्वालमुखी है बाबाजी



रिश्वत की मदिरा फिर उससे न छूटी

जिसने भी इक बार चखी है बाबाजी



बाप से बढ़ कर कौन सखा हो सकता है

माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी



काम अपना जी जान से करने वालों ने

अपनी किस्मत आप लिखी है बाबाजी



पथ के…

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Added by Albela Khatri on June 16, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

हमारे प्यारे रहनुमा - बाबा जी

 गांधी टोपी  पहन  के भागे कुरता पैजामा सिलवाने  बाबा जी 

कितना प्यारा देश का  मौसम जनता को उल्लू बनाने  बाबा जी 

कर जोर  मांगते  भीख वोटन  की  पाकर जीत तन  जाते  बाबा जी 

चोर चोर मौसेरे भाई  बैठ  संग देश की लाज लुटाते   बाबा  जी 

मुन्नी संग कमर मटकाते जेल में राखी बंधवाते बाबा जी 

सर्वस्व…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 1:37pm — 2 Comments

उगता सूरज -धुंध में

उगता सूरज -धुंध में

-----------------

कर्म फल -गीता

क्रिया -प्रतिक्रिया

न्यूटन के नियम

आर्किमिडीज के सिद्धांत

पढ़ते-डूबते-उतराते

हवा में कलाबाजियां खाते

नैनो टेक्नोलोजी में

खोजता था -नौ ग्रह से आगे

नए ग्रह की खोज में जहां

हम अपने वर्चस्व को

अपने मूल को -बीज को

सांस्कृतिक धरोहर को

किसी कोष में रख

बचा लेंगे सब -क्योंकि

यहाँ तो उथल -पुथल है

उहापोह है ...

सब कुछ बदल डालने की

होड़ है -कुरीतियाँ… Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 16, 2012 at 1:01pm — 39 Comments

मैं वोटर हूँ...

मैं वोटर हूँ

एक आम मतदाता,

इसी देश का नागरिक

भीड़ का एक चेहरा

ज्यादा नहीं कमाता

शायद लिखना भी नहीं आता;

मेरा कोई संगठन नहीं

कोई नारा नहीं

हैलीकॉप्टर से तो दिखता भी नहीं

बहुत छोटा हूँ मैं

चिल्लाता हूँ कोई सुनता नहीं

इतना खोटा हूँ मैं;

इसी का आदी हूँ

शिकायत नहीं करता,

मेरा भी महत्त्व है

अचानक पता लगता,

पाँच सालों में; एक बार,

जब झुग्गियों में स्कॉर्पियो आती है,

काफिले आते हैं,

मैं "जनता जनार्दन" हो जाता हूँ

देसी…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 16, 2012 at 12:10pm — 4 Comments

तकलीफ ये नहीं यारों की जमाना बदल रहा है

 
तकलीफ ये नहीं यारों की जमाना बदल रहा है
मगर तहजीब नहीं भूली जाती तरक्की के साथ…
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Added by yogesh shivhare on June 16, 2012 at 11:30am — 2 Comments

ये सुन्दर - सुन्दर बालायें बाबाजी

तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी

आओ,  मिल कर देश चबायें बाबाजी



राजनीति में किसी तरह घुस जाएँ तो

जीवन भर आनन्द मनायें  बाबाजी



चोर - चोर मौसेरे भाई हैं तो फिर…

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Added by Albela Khatri on June 15, 2012 at 10:22pm — 18 Comments

ग़ज़ल : कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे

जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे
 
जाने कब से मैं सोया नहीं चैन से
इस कदर ख्वाब तुम बिन सताने लगे
 
झूठ पर झूठ बोला वो जब ला के हम
आइना आइने को दिखाने लगे
 
है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी
जिनका घर काँच का था, बताने लगे
 
बिन परिश्रम ही जिनको खुदा मिल गया
दौड़कर लो वो मयखाने जाने लगे
 
प्रेम ही जोड़ सकता…
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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 15, 2012 at 9:08pm — 9 Comments

मेरे शब्द ..................मेरे अपने ...............!!

हो जाते है जब एकदम अकेले

हम अपनों की भीड़ में

तब जब दिल चाहता है कहना

किसी से बहुत कुछ

तब कोई नहीं मिलता ऐसा

जो साथ बैठकर सुने इस दिल की बाते

और कहे कि मैं हूँ न .........................



तब जब महसूस होता है

कि कोई नहीं है इस दुनिया में हमारा

तब एकदम से अचानक ...................

आ जाते है शब्द

और करने लगते हैं मुझसे बाते

तब जब दिल चाहता है जी भरकर रोना

लेकिन आंसू भी साथ देने से मना कर देते हैं

तब ये शब्द रोते है मेरे साथ…

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Added by Sonam Saini on June 15, 2012 at 4:00pm — 14 Comments

विवाद (लघु कथा)

 

लेखक की नई पुस्तक प्रकाशित हुई. कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए कि लेखक व प्रकाशक में युद्ध आरंभ हो गया. कई दिनों तक आरोप–प्रत्यारोप का दौर चला. इस घटनाक्रम से लेखन संसार दुखी हो गया. लेखन जगत ने लेखक व प्रकाशक से इस विवाद को आपस में सुलझा लेने का आग्रह किया.…

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Added by SUMIT PRATAP SINGH on June 15, 2012 at 2:00pm — 5 Comments

बाल श्रम (लघु कथा)

कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई.  झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.

"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........." 

दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.

"ये…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:00pm — 20 Comments

लघु कथा - सूचना तकनीक

जतिन जी ने बहुत ही लाड़-प्यार से अपने दो बेटों और एक बेटी को पाला. तीनो को बराबर उच्च शिक्षा दिलवाई, दोनों बेटे इंजिनियर और बेटी डॉक्टर बन गयी. उचित और उपयुक्त समय पर तीनो बच्चों का विवाह भी कर दिया. लड़की अपने पति के साथ विदेश चली गयी. लड़के भी बड़े बड़े शहरों में बड़ी कंपनियों में नौकरियां पाकर अपने-अपने परिवार को साथ लेकर वहीँ रहने लग गए. जतिन जी स्कूल की नौकरी पूरी करके सेवा निवृत्त हो गए और अपनी पत्नी के साथ अपने गाँव के घर में अकेले रह गए.



जब बच्चे छोटे थे तो उनके साथ बिताने…

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Added by Neelam Upadhyaya on June 15, 2012 at 10:00am — 9 Comments

शब्-ए-फुरकत है उजालों की जरुरत क्या है

शब्-ए-फुरकत है उजालों की जरुरत क्या है

पास तुम हो तो इशारों की जरुरत क्या है



तुम बसे हो जो बने नूर-ए-खुदा आँखों में

इन निगाहों को नजारों की जरुरत क्या है



दिल लुटे सबके नज़र उसपे पड़ी जैसे ही

बेचने दिल ये बाजारों की जरुरत क्या है…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 15, 2012 at 9:33am — 4 Comments

कस लो तीर कमान

कोई जड़ है खोद रहा कोई डाले खाद

हंगामा ऐसा करो  लोग करे फरियाद



फरियादी की आड़ में कोई झोंके भाड़

जबभी डंडा बरसे है कोई हो गया आड़



कोई का मतलब बड़ा राजनीती के लोग

आगे करके जनता को खूब लगाये भोग



आग लगी पेट्रोल में हंगामा था…

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Added by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 12:00am — 6 Comments

घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी

बोतल पर क्यों  डाट लगादी बाबाजी

मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी





हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी…

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Added by Albela Khatri on June 14, 2012 at 8:33pm — 18 Comments

तृष्णा

इन बारिश की बूंदों को
तन से लिपटने दो
प्यासे इस चातक का
अंतर्मन तरने दो
बरसो की चाहत है
बादल में ढल जाऊं
पर आब-ओ-हवा के
फितरत को समझने दो
फिर भी गर बूंदों से
चाहत न भर पाए
मन की इस तृष्णा को
बादल से भरने दो

Added by anamika ghatak on June 14, 2012 at 8:00pm — 4 Comments

कही अनकही...

ख्वाबों की दुकान से ख़रीदे थे अरमानो के बीज,

सोचा था रोपूँगी   एहसास की ज़मीं पे...
कहा था तुमसे सींच देना , क़द्र के पानी से अपने, 
कल जो देखा तो चिटक गयी थी…
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Added by Sarita Sinha on June 14, 2012 at 3:30pm — 4 Comments

तेरे संग के वो पल

तेरे संग के वो पल ..

सारे बीते हुए कल ..

सब याद आते हैं !! ..सब ..

वो चाँदी से पल ..

सोने में संग

सोने से पल ....

तेरे बालों की लट..

तेरा कहना वो चल हट .

सब याद आते हैं ..!!

तेरे होठों का रस ..

तेरा मिलना सरस ..

तेरा वो लड़ना  

मुझसे झूठा झगड़ना ..

सब याद आते हैं ..सब .!!

वो आँखे मिलाना

वो प्यार से बुलाना ..

पुरानी सभी बातें बताना ..

याद आते हैं ..सब ..

तेरे आंसू के धारे  

गिरते गालों सहारे ..…

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Added by Raj Tomar on June 14, 2012 at 1:56pm — 6 Comments

ख़बर बहुत ही दुखदायी है बाबाजी

करोड़ों  दिलों पर राज करने वाले शहंशाह-ए-ग़ज़ल एवं लोक लाड़ले  स्वर सम्राट जनाब  मेहदी हसन  के देहावसान से  हमें बहुत दुःख पहुंचा है . 

उनकी आत्मिक शान्ति के लिए  परम पिता से प्रार्थना करते हुए  एक ग़ज़ल के रूप में  दिवंगत  आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि :





आँख ग़ज़ल…

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Added by Albela Khatri on June 14, 2012 at 11:30am — 12 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मोहब्बत के कदम

बादलों पे
थिरकता है हुस्न
अरमानों की
मखमली चादर ओढ़े...
कजरारे नशीले नैन
मासूमियत से मुस्कुराते हैं,
निगाहों निगाहों में 
बूझ पहेलियाँ...
होठों पर लहराती
गुनगुनाती हँसी
सागर की चंचल लहरों सी,
करती है अठखेलियाँ...
गीले चमकीले
मोतियों के चिराग
झिलमिलाते है रिमझिम
गेसुओं…
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Added by Dr.Prachi Singh on June 13, 2012 at 11:09pm — 20 Comments

लम्बित न्याय (कहानी)

35 वर्ष की सेवा के बाद 31 जनुअरी ,2002 को कलक्टर कार्यलय में अधीक्षक पद से सेवा-निवृत ज्ञान स्वरुप भार्गव का कार्यलय में भव्य विदाई समारोह हुआ | स्वयं कलक्टर साहिब ने उनके कार्य की प्रशंसा की और उन्हें सफा, माला पहनकर स्वागत किया | कुछ साथी उन्हें घर तक छोड़ने आये, जहाँ द्वार पर परिवार के सदश्यों ने उनकी आरती उतार अन्दर ले गए| वहां स्वल्पाहार का आयोजन हुआ| ज्ञानस्वरूप ने अपने पोते-पोतियों,अपने बहिन-बहनोई और दोहिते को भेंट-उपहार देकर विदा किया|



दूसरे दिन से श्री भार्गव अपनी पेंशन…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 13, 2012 at 10:30pm — 2 Comments

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