For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,137)

साहित्य विहार में बहार देवनागरी

भीनी भीनी मीठी मीठी
मधुर सुगन्ध लिए
साहित्य विहार में बहार देवनागरी

बिखरी अनेकता को
एकता में जोड़ती है
तार तार से जुड़ी सितार  देवनागरी

नेताजी,पटेल,लाला
लाजपत राय  जैसे 
क्रान्तिकारियों की तलवार देवनागरी

तुलसी,कबीर,सूर,
रहीम,बिहारी,मीरा,
रसखान से फूलों का हार देवनागरी

Added by Albela Khatri on June 26, 2012 at 11:00pm — 12 Comments

तेरा मेरा साथ (गीत)

तू बादल है मैं मस्त पवन 

उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन 

गिरने न दूंगा धरा मध्य 

बाहों में ले उड़ जाऊँगा 

तू बादल है मैं मस्त पवन 

उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन 

.

मन के सूने आँगन में 

मस्त घटा बन छायी हो 

रीता था जीवन मेरा 

बहार बन के आयी हो 

जम के बरसो थमना नहीं 

प्यासा न रह जाए ये…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:14pm — 1 Comment


सदस्य कार्यकारिणी
फिफ्टी-फिफ्टी हास्य गज़ल.................

कच्ची रोटी भी  प्रेमिका की भली लगती है

बीबी अच्छी भी खिलाये तो जली लगती है |



बीबी  हँस दे  तो कलेजा ही  दहल जाता है

प्रेयसी  रूठी  हुई  भी  तो  भली  लगती है |



नये - नये  में  बहु  कितनी  भली लगती है

फिर  ससुर - सास को वो बाहुबली लगती है |



कलि  अनार की  लगती  थी ब्याह से पहले

अब मैं कीड़ा हूँ  और वो छिपकली लगती है |



फिर  चुनी  जायेगी  दीवार में पहले की तरह

ये    मोहब्बत  सदा  अनारकली  लगती  है |



इस  शहर …

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on June 26, 2012 at 9:14pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ४

बहुत कुछ हमने पढ़ा है किताबों में

ज़िंदगी मगर नहीं समातीहै बाबों में

 

इत्मीनान हुए तो बेचैन हो उठे हम

सुकूंकी आदत होगई है इज्तेराबों में

 

बेपर्दा हुएतो पहचान न पाए तुमको

जोभी देखाहै वो देखा है हिजाबों में 

 

तुम गएतो खराबातेइश्क उजड़ गया

नशा अब कहाँ बाकी रहा शराबों में

 

कारिज़ थे जो तेरे होगए हैं कर्ज़दार

न जाने चूक कहाँ होगई हिसाबों में

 

हमें धोखामिला उनसे जोथे मोतेबर

तुम सबात…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 9:00pm — 7 Comments

व्यंग रचना- अर्थ-तंत्र पर भारी

अर्थ-तंत्र पर भारी राज-तंत्र में गठबंधन सरकार,
गठबंधन-धर्म निभाने की मज़बूरी में यह सरकार |
 
डालर रुपये को मार रहा, ऊपर महंगाई की मार…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 26, 2012 at 7:30pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३

भोपाल की इक सुबह...

------------------------------

भोपाल की इक सुबह...जून का महीना और गर्मी का तेवर चढ़ा हुआ. किसी महानगर सी हलचल का कोई निशाँ नहीं. हाँ, इक छोटे, अलसाए से कस्बे के जीवन की मद्धम धड़कन की अंतर्ध्वनि कानों में आहिस्ता गूंजती, जैसे खामोशी अगर कभी बोलती तो यूँ बोलती. लताएं हल्के हलके अंदाज़ में सुस्त हवाओं के ताल पे डोलतीं, सडकों पे बेज़ार कुत्ते इधर उधर मुंह मारते, रुपहली धूप के गर्म होते साये मकानों पे फैलते- भोपाल की ये तस्वीर अद्भुत है. लोग कब घरों से निकल के दफ्तर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:13pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २

महीनों बाद भोपाल के घर में बैठा एकांतप्रस्थ मेरा मन.....

-----------------------------------------------------------------------

शाम इक दुल्हन की तरह सजी संवरी महक रही है. डूबते सूरज की लालिमा के घूंघट ने उसे और भी युवा बना दिया है, पीतवर्णी क्षितिज जैसे उसकी सुडौल बाहें हैं, सारी धरा इस दुल्हन की सौम्य काया, नीड़ों को लौटते पक्षियों का कलरव जैसे दुल्हन के आभूषणों की कर्णप्रिय ध्वनियाँ हैं, कोयल की आवाज़, जैसे दुल्हन की पाजेब की खनक. अस्तमान सूर्य के अर्धचन्द्राकार वलय से विकीर्ण…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:10pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १

दिन किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह है...

-------------------------------------------

दिन किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह है जिसपे हर सुबह हम सवार हो जाते हैं. रोज़ का बंधा बंधाया सफर सुब्ह से शाम तक का और फिर वापिस अपने अपने घरों में. सुबह की निकली ट्रेन दोपहर के स्टेशन आ चुकी है, कुछ थकी थकाई, सांसे थोड़ी ऊपर नीचे, चेहरे पे सफर की धूल और आँखों में रुकते-दौड़ते रहने की थकान. लोग अपने अपने मुकामों के प्लेटफोर्म पे उतर कर न जाने क्या ढूँढते रहते हैं, क्या कदो-काविश (भाग-दौड़) है, क्या कारोआमाल…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३

हज़ार जिगर को तेरे मिलने की चाहत हो

काम क्या बने जब न अपनी किस्मत हो

 

मैंने अक्सरहा रोटी और कपड़ों से पूछा है

ज़रूरतोंके दाफिएके लिए कितनी दौलतहो

 

क्यूँ अभीसे ही तू सूफियाना हुआ जाता है

ऐ दिल तुझे कोई ख्वाहिश कोई हसरत हो

 

हसरतों को लूटकर करते हो मिजाजपुरसी

दुआ है तुझेभी जूनूँ हो दर्द हो मुहब्बत हो 

 

लो ऐलान करदिया कि आगए हैं बाज़ारमें

ज़िंदगी तवाइफ़ है मेरी, अबतो इनायत हो

 

ज़िंदगी भर रहे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:26pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २

जिन्दगी है उलझी तेरे तुर्रा -ए-तर्रार की तरह

और इतनी साफ़ कि पढ़लो अखबार की तरह

 

एहसासेतवाफ़ेरोजोशब ये सोना- जागना अपना

भटकते हैं दर- दर तम्सीलके किरदारकी तरह   

 

आना ही था तो आ जाता जैसे नींद रातों को

तू ज़िंदगीमें क्यूँ आया फ़स्लेबेइख्तेयारकी तरह

 

तुझसे बिछड़नाभी हो गोया कोई कारेखुदकुशी

और तुझसे इश्क निभानाभी वस्लेनारकी तरह

 

दर्दकी दास्ताँ रहगई खतोंकी तहरीर की तरह

प्यार हमारा टूट गया मुंहबोले इकरारकी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:06pm — 6 Comments

खेवनहार

सोचने लगती हूँ तो लगता है जैसे कल की ही बात है, बारहवीं के पेपर देकर फ्री हुई तो खूब मस्ती हो रही थी | एक दिन मम्मी ने कहा “चल हेमा अजित भैया के घर चलते हैं, भाभी का फ़ोन आया था  भैया कई दिनों से ऑफिस नहीं गए उनकी तबियत ठीक नहीं है | मैंने कहा चलो चलते हैं | मामाजी के यहाँ मुझे हमेशा अच्छा लगता था, बस उनकी एक ही आदत शराब पीने वाली मुझे अच्छी नहीं लगती थी | मैंने मम्मी से पूछा कि मामाजी क्या अब भी शराब पीते हैं |मम्मी…

Continue

Added by savi on June 26, 2012 at 5:00pm — 12 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १

कुछ बातों की कोई इम्तेहा नहीं होती

होती है बस, कमोबेश वफ़ा नहीं होती

 

करो बहबूदीकी तमन्ना और भूलजाओ

जिसमें हो एहसान वो दुआ नहीं होती  

 

माँ माँ होतीहै लहुलुहान होकर भी माँ

बच्चोंके लिए कभी आब्लापा नहींहोती

 

गरीबों केलिए ज़्यादा गिज़ा नहीं होती

अमीरों केलिए भूखकी दवा नहीं होती

 

अगर न होती भूल आदमोहव्वा से तो

रंगभरी और दुःखभरी दुनिया नहींहोती

 

काश कि औरत न होती रागिबेपैदाइश

और…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:00pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मूसलाधार

आग उगलते सूरज का रथ

दौड़ रहा था

अनवरत, अन्तरिक्ष पर

पीछे जन्म लेते

धूल के गुबार ने ढक

दिए सब वारि के सोते

कुम्भला गए दम घोंटू

गर्द में कोमल पौधों के पर

चिपक गए परिधान बदन से

हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ

उसके अश्वों के स्वेद सितारे

छितरा गए सागर की चुनरी पर

मिल गए खारे सागर की बूंदों से

जबरदस्त उबाल उठा

सागर के अंतर में

प्यासी धरा की आहें

कर बैठी आह्वान

मंथन से मुक्त होकर

उड़ चला वो वाष्पित आँचल…

Continue

Added by rajesh kumari on June 26, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

यह शादी बे मेल हो गई बाबाजी

कितनी महंगी रेल हो गई बाबाजी

पैसेन्जर भी मेल हो गई बाबाजी



आदर्शों को फांसी  दे दी दिल्ली ने

नैतिकता  को जेल हो गई बाबाजी



सुख के बादल बिखर गये हैं बिन बरसे

दुःख की धक्कमपेल हो गई बाबाजी



नकल हो रही पास आज विद्यालय में

और पढ़ाई फेल हो गई बाबाजी



आई पी एल की हाट में हमने देखा है

खिलाड़ियों  की सेल हो गई बाबाजी



खादी वाले खड़े - खड़े खा जाते हैं

भोली जनता भेल हो गई बाबाजी



लोकराज ने लज्जा का…

Continue

Added by Albela Khatri on June 25, 2012 at 5:00pm — 41 Comments

मैंने क्या किया?

मैं जानता हूं

आप कुछ नहीं कर सकेंगे

पढ़ कर, सोचेंगे थोड़ा

या हो सकता है

बिल्कुल भी नहीं देंगे ध्यान

सही भी है

आपकी भी अपनी हैं परेशानियां

ऐसे में मेरे लिए कहां होगा समय

लेकिन फिर भी बताता हूं आपको

अपने मन की बात

बहुत परेशान करती है

छोटी-छोटी बातें

हो कोई बड़ी समस्या

तो की जा सकती है तैयारियां

मांगी जा सकती है मदद

लेकिन क्या करूं

जब समस्याएं हो छोटी-छोटी और

फैला दूं हाथ - मांगू मदद

तब लगता है

आखिर अब मैंने क्या…

Continue

Added by Harish Bhatt on June 25, 2012 at 2:42pm — 9 Comments

फ़ोकट की तुकबन्दी सारी बाबाजी

हांग कांग  की छटा है प्यारी बाबाजी

पर भारत  की बात ही न्यारी बाबाजी



प्यार मिला, सम्मान मिला इस महफ़िल में

ओ बी ओ पर मैं बलिहारी बाबाजी



रूपया रोक न पाया ख़ुद को गिरने से

डॉलर ने  वो  बाज़ी मारी बाबाजी



ममता,ललिता,सुषमा तीनों गायब हैं

तन्हा रह गये अटल बिहारी बाबाजी



कौन बनेगा सदर हमारे भारत का

ये भी संकट है इक भारी बाबाजी



चाट पकौड़ी खाओ,  किरपा आएगी

कहते  बाबा लीलाधारी  बाबाजी



'अलबेला' की इस…

Continue

Added by Albela Khatri on June 25, 2012 at 10:00am — 33 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
करें प्रकृति से प्यार

सोलह शृंगारों सजी, प्रकृति चंचला रूप .
उसकी मतवाली छटा, मन भाती है खूब ..
 
झरना झर-झर बह चले, मतवाली ले चाल .
मन में इक कम्पन करे, उसकी सुर लय ताल ..
 
कल-कल कर बहती नदी, मस्ती भर दे अंग .
वाचाला औ चंचला, बदले पल पल रंग ..
 
बारिश की बूंदों नहा, निखरा कैसा रूप .
अन्तः मन निर्मल करे, छाँव खिले या धूप ..
 
उढ़ता बादल कोहरा, मन ले जाए दूर .
बाहों में…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on June 24, 2012 at 2:30pm — 22 Comments

कुछ मुक्तक {मुक्तक काव्य "कमला "}

मुक्तक काव्य "कमला "



मन वीणा को झंकृत करती, मीठा स्पंदन हो कमला

छंदों में रस वर्षा करती, रस अभिवंदन हो कमला

निर्झर की पावन झर झर तुम, हंसती हो सरगम जैसा

साधक है खुद स्वर तेरे तो, तुम स्वर गुंजन हो कमला



तन मलयागिर का चन्दन सा, मुखड़ा कुंदन है कमला…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 10:40am — 7 Comments

ऐ गम ! जा के ढूंढ़ ले कोई दूसरा घर

ऐ गम ! जा  के  ढूंढ़ ले  कोई  दूसरा घर  , 

दिल में आज से मेरे , बसेरा उनका होगा ..
              इस घर का मालिक अब तू नही है ,वो हैं 
              खाली अभी तुझे  , घर ये करना होगा ..
दीवानगी ने उनकी पागल किया है हमको 
पागलपन का कर्ज तुझको ही भरना होगा ...
             घर ही तेरा अब ,  बेघर तुझे कर रहा है 
             खातिर इस घर की बेघर तुझे रहना होगा…
Continue

Added by Ajay Singh on June 24, 2012 at 10:01am — 7 Comments

व्यंगात्मक दोहे- स्वर्ग-नरक

स्वर्ग-नरक 

 
जिस घर द्वेष-कलेश हो, वहाँ नरक का भान,  
जिस कुनबे में प्रेम है, वो है स्वर्ग समान //

 
जिल्लत की हैं जिंदगी, भोग रहे संताप
फिर भी तो आशीष ही, देते हैं माँ बाप //…



Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 23, 2012 at 6:46pm — No Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service