For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे

जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे
 
जाने कब से मैं सोया नहीं चैन से
इस कदर ख्वाब तुम बिन सताने लगे
 
झूठ पर झूठ बोला वो जब ला के हम
आइना आइने को दिखाने लगे
 
है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी
जिनका घर काँच का था, बताने लगे
 
बिन परिश्रम ही जिनको खुदा मिल गया
दौड़कर लो वो मयखाने जाने लगे
 
प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे
 
भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का

जिसको जीने में हमको जमाने लगे

Views: 445

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 16, 2012 at 6:54pm

शुक्रिया अजय जी

Comment by Ajay Singh on June 16, 2012 at 12:58pm

है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी

जिनका घर काँच का था, बताने लगे ,, 
                                                         बहुत खूब , धर्मेन्द्र जी ...
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 16, 2012 at 10:57am

नीलेश जी, संदीप जी, उमाशंकर जी, अलबेला खत्री जी एवं प्रदीप जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Nilansh on June 16, 2012 at 10:07am

bahut sunder ghazal aadarniya dharmendra ji

bahut badhaai

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 16, 2012 at 8:21am

waah waah sir ji .................bahut khoob kya baat hai

badhai aapko sir ji

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 11:37pm
जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे
शेर की हर लाइन  दमदार है
शब्द नही है इतने बढिया है आभार आपका जो हमें इतनी सुन्दर रचना दी
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 10:28pm

सम्मान्य धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने.............मुबारक हो...........
हर शे'र अपने आप में  एक बात लिए हुए है . ख़ासकर  यहाँ आकर तो मैं  निहाल हो गया  :

 
प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे
 
भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का

जिसको जीने में हमको जमाने लगे

____जय हो जय हो .......सादर अभिनन्दन !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 9:27pm

अंतिम पंक्ति में संसोधन है 

बड़े से बड़े शायर आपके क़दमों में पहुडे हैं

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 9:26pm

भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का

जिसको जीने में हमको जमाने लगे

आदरणीय सिंह साहब जी , सादर 

एक से एक  बढ़ फूल जोड़े हैं

गजलों के सुन्दर रिकार्ड तोड़े हैं

गजलों  के क्यों शेरो के बादशाह हैं

बड़े से बड़े शायर आपके क़दमों में पहुडे हुए हैं 

आदाब.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service