For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बादलों पे
थिरकता है हुस्न
अरमानों की
मखमली चादर ओढ़े...
कजरारे नशीले नैन
मासूमियत से मुस्कुराते हैं,
निगाहों निगाहों में 
बूझ पहेलियाँ...
होठों पर लहराती
गुनगुनाती हँसी
सागर की चंचल लहरों सी,
करती है अठखेलियाँ...
गीले चमकीले
मोतियों के चिराग
झिलमिलाते है रिमझिम
गेसुओं पर...
हया की सुर्ख रंगत
बन सोलह  श्रृंगार
देती है
चांदनी सा निखार...
दिल की धड़कन की मदहोशी में
कभी हलचल कभी खामोशी में,
खो जाते हैं
सारे शब्द और भाव...
और
मन होता है
सपनों के बीच..
...............जब
देते हैं दस्तक
मोहब्बत के कदम
जीवन के प्रांगण में.....
 
डॉ. प्राची.....

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savi on July 8, 2012 at 5:25pm
प्राची जी,
मोहब्बत की अभिव्यक्ति करती रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2012 at 5:36pm

आहा प्राची जी बेहद सुन्दर

Comment by Harish Bhatt on July 3, 2012 at 12:29pm

आदरणीय प्राची जी नमस्‍ते

शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई

खो जाते हैं सारे शब्द और भाव...

और  मन होता है सपनों के बीच..
...जब देते हैं दस्तक मोहब्बत के कदम
जीवन के प्रांगण में.....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 1, 2012 at 5:33pm
इस प्रयास को सराहने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ सर 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2012 at 3:36pm

मन ही से दीखता है और मन ही जीता है. मन जब मधुर पलों में उतराये तो जगत में हो रहे परिवर्तन सुखद और भले लगते हैं.  बहुत सुन्दर प्रयास है, डा. प्राची.

बधाई इस रचना के लिये.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 23, 2012 at 8:21pm
आदरणीय संजीव वर्मा जी, आपका हार्दिक आभार आपने इस रचना की सरसता व माधुर्य को सराह कर मेरा उत्साह वर्धन किया.. मै इसी पृष्ठभूमि पर दोहे लिखने का प्रयत्न ज़रूर करूंगी..
पुनः आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 23, 2012 at 8:17pm

आदरणीय अविनाश बागडे जी , प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, अलबेला खत्री जी , शरीफ अहमद कादरी जी, राज तोमर जी, दीप ज़िर्वी जी, कुमार गौरव जी, अजय सिंह जी, उमाशंकर मिश्रा जी, राजेश कुमारी जी, इस रचना को सराहने के लिए आप सबका बहुत बहुत आभार..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2012 at 10:25pm

बहुत प्यारी प्रस्तुति दिल के कोमल एहसासों को बखूबी शब्दबद्ध किया है बधाई  बाहर होने के कारण देर से पढ़ पाई 

Comment by sanjiv verma 'salil' on June 18, 2012 at 8:27am

प्राची जी!
शालीन श्रृंगार का परिपाक करती सरस रचना हेतु बधाई. इसी पृष्ठ भूमि पर दोहे रचें तो आनंद सौगुना हो जायेगा. तब कथ्य की मधुरता के साथ लय की मिठास भी समाहित हो सकेगी.

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 9:05am
कजरारे नशीले नैन
मासूमियत से मुस्कुराते हैं,
निगाहों निगाहों में 
बूझ पहेलियाँ...
खो जाते हैं
सारे शब्द और भाव...सच्चे प्यार को परिभाषित करती
पंक्तिया है  प्यार ईश्वर की भाँती अदृश्यमान ...बहुत खूब बहुत सुन्दर श्रृंगार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service