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नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि: संजीव 'सलिल'

कालजयी गीतकार नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:

संजीव 'सलिल'

*

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...

*

नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .

जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..

कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.

गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..

चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-

अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 5, 2013 at 11:01am — 10 Comments

ग़ज़ल-जिंदगी हम भी समर तक आ गये

जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।

मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।

सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।

खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।

एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।

प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।

……सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2013 at 9:30pm — 6 Comments

एक नवगीत का प्रयास

मिर्च बुझी तेजाबी आंखें

हांक रहे चीतल,मृग, बांके

बुदबुद करते मूड़ हिलाते

वेद अनोखे बांच रहे हैं



अर्ध्‍वयु हैं पड़े कुंड में

जातवेद भी खांस रहे हैं



चमक रही कैलाशी बातें

दमक रही तैमूरी रातें

सांकल की ठंडी मजबूरी

खाप जतन से जांच रहे हैं



विविध वर्ण के टोने-टोटके

कितने सूरज फांस रहे हैं



बागड़बिल्‍लों के कमान में

पंजे, नख मिलते बयान में

पड़ी पद्मिनी भांड़ के पल्‍ले

खिलजी जमकर नाच रहे हैं



मिनरल वाटर हलक…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 4, 2013 at 5:06pm — 3 Comments

इंसानो की बस्ती

इंसानो की बस्ती

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

इंसानियत दफन हो गई, हैवानियत सब पे भारी है,

आत्मा है गिरवी सबकी, बेईमानो कि साहूकारी है,

बहता है लहु सडको पर, पानी की बुँदे बिकती है 

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

  

नारी ही नारी की आज, दुश्मन बन के बैठी है,

बच गई कोख मे तो, आग के हवाले…

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Added by बसंत नेमा on January 4, 2013 at 4:30pm — 4 Comments

एक दिन तुम देखना

एक दिन तुम देखना 

एक दिन तुम देखना



खौफ और आतंक ऐसे

बढ़ रहा है आज कैसे

लाज लुटती राह में यूँ 

लगता अंधा राज जैसे 



संस्कृति के जो हैं भक्षक सब बनेंगे सरगना ...........................



मान मर्यादा मिटाई

नींव रस्मों की हिलाई

अपने में सीमित हुई है

आजकल की ये पढ़ाई



बदलो ये सब अब नहीं तो होगा खुद को कोसना ..............................



शून्य ही बस अंक होगा 

पोखरों में पंक होगा

शुष्क होंगे वन और पर्वत  …

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 4, 2013 at 3:58pm — 10 Comments

मंगल मय हो नूतन वर्ष - लतीफ़ ख़ान

लिख कर अनुभव पत्रिका पार क्षितिज के पुराना साल गया |

ले कर कोरे पृष्ठ सहस्त्र देखो आया है फिर साल नया |

    हों सम्बंध नए हों अनुबंध नए,

    नव निर्मित बंधों के हों तटबंध नए,…

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Added by लतीफ़ ख़ान on January 4, 2013 at 3:18pm — 8 Comments

.........ग़ज़ब है.

मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.

रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है.



ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,

साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…



आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,

लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है.



वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,

उसपे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है.



वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,

ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.



हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”

चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब…

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Added by rajneesh sachan on January 4, 2013 at 3:04pm — 8 Comments

देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !

अकेल शेरनी
देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !
दूर अकेल रहेगी कैसे , आँखों की पुतली हमारी !
माँ बाप को घर में छोड़कर , सपने ले चली दुलारी !
यों मिलती रही कामयाबी , खिलती जाती फुलवारी !
जब कामयाब हो कर  निकली , बैरी राहों में आये !
देख कर अकेल शेरनी को , राहों में जाल बिछाए !
तडपती रही शिकार बनकर , बेबस पर  रहम न आये !
वर्मा  गयी वो इस दुनिया से , कैसे आंसू ना  आये !
श्याम नारायण वर्मा

Added by Shyam Narain Verma on January 4, 2013 at 2:31pm — 2 Comments

तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है

तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है

तुझमे मिलती है खुशी और सहारा क्या है

तेरी यादों की कोई रुत तो नहीं होती, गो  

दिल तड़प तो रहा है ये इशारा क्या है

गम हैं तो और मुहब्बत के सिवा किस्मत में

और गम में किसी हो मौज इज़ारा क्या है

चाँद निकले है शब-ए-हिज़्र मगर कह दे तू

माह-ए-दह्र में कुछ भी यूँ हमारा क्या है

दिल जला है यूँ बहुत, खाक सिवा सर पे तू

तेरी यादों के सिवा और ये हारा क्या है !!



नोट:- मैंने ये गज़ल ३०मि में लिखी है.…

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Added by Raj Tomar on January 4, 2013 at 2:00pm — 2 Comments

अधजल गगरी छलकत जाए

आधा सुन के खूब सुनाये 

अधजल गगरी छलकत जाए



धैर्य नहीं इक पल भी रखना

चाहे मूरख सब कुछ चखना

क्या है मीठा क्या है खारा

नहीं भा रहा उसे परखना



अंतर में रख घोर अन्धेरा

बाहर बाहर दीप जलाए....................



सुने नहीं वो बात बड़ों की

आंके बस औकात बड़ों की

दिन को देख के नहीं सोचता 

गुजरे कैसे रात बड़ों की 



बिन अनुभव के बड़ा न कोई 

कौन भला इसको समझाए ........................



जो चाहूँ मैं अभी बनालूं

कच्ची माटी ऐसे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 3, 2013 at 3:41pm — 9 Comments

बोलो जी पाओगी ..........

तुम ने कहा,

तुम जी लोगी मेरे साथ हर हाल में,

मुझे शायद इसके लिये भी,

शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......

 

पर क्या तुम जानती हो,

इस कमबख्त दुनियां में

जहां कोई किसी का सगा नहीं,

हालात कैसे हो सकते है....

 

बोलो जी पाओगी,

जब दुनियां भर के थपेड़े,

बिना दरबाजा खटखटाये,

हमारे कमरे में दाखिल होंगे......

 

बोलो जी पाओगी,

जब मेरी शायरी में,

तिलमिलाएगी भूख,

नीम से कडबे…

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Added by अमि तेष on January 3, 2013 at 2:58pm — 13 Comments

लघु कथा - कीमती पत्र,

तुम लड़की जात हो , तुम्हें अपने दायरे में रहना चाहिए, तुम अनवर की तरह नहीं हो वो तो लड़का है , उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा , लेकिन तुम्हारे साथ अगर कुछ उंच नीच हो गया तो हम सबका जीना मुहाल हो जाएगा,,,,ये सीख हमेशा गाँठ बाँध कर रखना.

रोज ही हिदायतों का पुलिंदा शबनम को बाँध कर थमाया जाता था, अब्बू तो दुबई चले गए दो साल पहले , बचे दादी, अम्मी और छोटा भाई अनवर. इस अनवर में छोटे…

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Added by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 2:30pm — 3 Comments

अब तो मेरी सांसे भी /तेरी जिद से हार गई

मेरी बिखरी सुबह ओंटकर

तुम्‍हीं खड़े थे बाट जोहकर

कभी रूठकर कभी मनाकर

भाव भंगिमा नए दिखाकर

हर फिसलन पर भीत उकेरे

तुम्‍हीं थाम उस पार गई



लिखकर पहला पत्र तुम्‍हीं को

कलम मेरी पथ हार गई



सदा सुहागन तेरी काया

जब समेटती मेरी छाया

और ठठाते हुल्‍लड़ दिन पर

दांत पीसता सूरज जी भर

तभी दमकते श्रृंग ओट…
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Added by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 2:22pm — 12 Comments

//-उलझन-//

      //-उलझन-//  
आक्रोश,क्रंदन,कड़वाहट
सीने में भरी झुंझलाहट..
मुझे मार डालेगी ....!!
मेरे भीतर का लावा 
फूट पड़ने को आमादा !
मेरे पपड़ाते होंठ 
मौन की मुखर बौखलाहट !
मेरे मसले हुए ख़्वाब ,
मेरे असहाय दिन ,
मेरी ज़ख़्मी रातें ..
मेरा समूचा वज़ूद भयाक्रांत है !!
विधाता तुमसे शिक़ायत है 
क्यूँ रचा  मुझे 
कच्ची माटी…
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Added by भावना तिवारी on January 3, 2013 at 1:00pm — 10 Comments

दानव का किरदार ले गए

जीने के आसार ले गए,

जीवन का आधार ले गए,

भूखों की पतवार ले गए,

लूटपाट घरबार ले गए,

छीनछान व्यापार ले गए,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2013 at 11:59am — 14 Comments

इन बेखौफ लकीरों ने

हर अध्‍याय

अधूरे किस्‍से

कातर हर संघर्ष

प्रणय, त्‍याग

सब औंधे लेटे

सिहराते स्‍पर्श

कमजोर गवाही

देता हर दिन

झुठलाती हर शाम

आस की बडि़यां

खूब भिंगोई

पर ना आई काम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम

फलक बुहारे

पूनो आई

जागा कहां अघोर

मरा-मरा

आकाश पड़ा था

हुल्‍लड़ करते शोर

किसकी-किसकी

नजर उतारें

विधना सबकी वाम

हिम्‍मत भी

क्‍या खाकर मांगे

निष्‍ठुर दे ना दाम

इन बेखौफ…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:30pm — 8 Comments

भोर के पंछी

भोर के पंछी

तुम ...

रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी

तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,

सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,

खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट

और मैं ...

मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,

नींदों में मुस्करा देती थी,

तुम्हें पा लेती थी।

पर सुनो!

सुन सकते हो क्या ... ?

मैं अब

तुम्हें पा नहीं सकती थी,

एक ही रास्ता…

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Added by vijay nikore on January 2, 2013 at 2:30pm — 28 Comments

आधी जमींदारी हमारी भी है

अंततः हम एकल ही थे

स्मृति में कहाँ रही सुरक्षित

जन्म लेने की अनुभूति

और ना होशो हवास में

मौत को जी पायेंगे

समस्त

कौतुहल विस्मय

अघात संताप

रणनीति कूटनीति तो

मध्य में स्थित

मध्यांतर की है

उसमे भी

जब तुमने

ज़मीन छीनकर ये कहा की

सारा आकाश तुम्हारा

मैंने पैरों का मोह त्याग दिया

और परों को उगाना सीख लिया  

अब बाज़ी मेरे हाथ में थी

लेकिन हुकुम का इक्का

अब भी तुम्हारे…

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Added by Gul Sarika Thakur on January 2, 2013 at 9:33am — 12 Comments

दामिनी तुम जिंदा हो

दामिनी तुम जिंदा हो

हर औरत का हौंसला बनकर

न्याय की आवाज़ बनकर

वक्त की ज़रूरत बनकर

आस्था की पुकार बनकर

एकता की मिसाल बनकर

तुम लाखों दिलों में जिंदा हो

न्याय की उम्मीद बनकर…

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Added by नादिर ख़ान on January 1, 2013 at 10:25pm — 8 Comments

मुल्क की इस पाक माटी को मुबारक हो ये साल

मुल्क की इस पाक माटी को मुबारक हो ये साल

संग सी वीरों की छाती को मुबारक हो ये साल



चल पडा है कारवाँ अधिकार अपने मांगने

इस बगावत करती आंधी को मुबारक हो ये साल 



आग हर दिल में जला दी फूंक के डर का कफ़न 

हो चली रुखसत जो बेटी को मुबारक हो ये साल…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 1, 2013 at 4:00pm — 7 Comments

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