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All Blog Posts (19,126)

इन बेखौफ लकीरों ने

हर अध्‍याय

अधूरे किस्‍से

कातर हर संघर्ष

प्रणय, त्‍याग

सब औंधे लेटे

सिहराते स्‍पर्श

कमजोर गवाही

देता हर दिन

झुठलाती हर शाम

आस की बडि़यां

खूब भिंगोई

पर ना आई काम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम

फलक बुहारे

पूनो आई

जागा कहां अघोर

मरा-मरा

आकाश पड़ा था

हुल्‍लड़ करते शोर

किसकी-किसकी

नजर उतारें

विधना सबकी वाम

हिम्‍मत भी

क्‍या खाकर मांगे

निष्‍ठुर दे ना दाम

इन बेखौफ…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:30pm — 8 Comments

भोर के पंछी

भोर के पंछी

तुम ...

रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी

तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,

सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,

खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट

और मैं ...

मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,

नींदों में मुस्करा देती थी,

तुम्हें पा लेती थी।

पर सुनो!

सुन सकते हो क्या ... ?

मैं अब

तुम्हें पा नहीं सकती थी,

एक ही रास्ता…

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Added by vijay nikore on January 2, 2013 at 2:30pm — 28 Comments

आधी जमींदारी हमारी भी है

अंततः हम एकल ही थे

स्मृति में कहाँ रही सुरक्षित

जन्म लेने की अनुभूति

और ना होशो हवास में

मौत को जी पायेंगे

समस्त

कौतुहल विस्मय

अघात संताप

रणनीति कूटनीति तो

मध्य में स्थित

मध्यांतर की है

उसमे भी

जब तुमने

ज़मीन छीनकर ये कहा की

सारा आकाश तुम्हारा

मैंने पैरों का मोह त्याग दिया

और परों को उगाना सीख लिया  

अब बाज़ी मेरे हाथ में थी

लेकिन हुकुम का इक्का

अब भी तुम्हारे…

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Added by Gul Sarika Thakur on January 2, 2013 at 9:33am — 12 Comments

दामिनी तुम जिंदा हो

दामिनी तुम जिंदा हो

हर औरत का हौंसला बनकर

न्याय की आवाज़ बनकर

वक्त की ज़रूरत बनकर

आस्था की पुकार बनकर

एकता की मिसाल बनकर

तुम लाखों दिलों में जिंदा हो

न्याय की उम्मीद बनकर…

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Added by नादिर ख़ान on January 1, 2013 at 10:25pm — 8 Comments

मुल्क की इस पाक माटी को मुबारक हो ये साल

मुल्क की इस पाक माटी को मुबारक हो ये साल

संग सी वीरों की छाती को मुबारक हो ये साल



चल पडा है कारवाँ अधिकार अपने मांगने

इस बगावत करती आंधी को मुबारक हो ये साल 



आग हर दिल में जला दी फूंक के डर का कफ़न 

हो चली रुखसत जो बेटी को मुबारक हो ये साल…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 1, 2013 at 4:00pm — 7 Comments

हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये....

हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये

या हमें अब डूब मरना चाहिये

 

देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक

देश को क्यों और धरना चाहिये  

 

दर्द ही है जख्म की संवेदना 

क्यों भला इससे उभरना चाहिये

 

रों रही है माँ बहन औ बेटियां

जिन्दगी इनकी सवरना…

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Added by अमि तेष on January 1, 2013 at 11:47am — 12 Comments

ओबीओ परिवार की ओर से सभी को नववर्ष की हार्दिक बधाइयाँ

छंद हरिगीतिका :

(चार चरण प्रत्येक में १६,१२ मात्राएँ चरणान्त में लघु-गुरु)

 

शुभकामना नववर्ष की सत,-संग औ सद्ज्ञान हो.

करिये कृपा माँ शारदा अब, दूर सब अज्ञान हो.

हर बालिका हो लक्ष्मी धन,-धान्य का वरदान हो.

सिरमौर हो यह देश अब हर, नारि का सम्मान हो.

सादर,

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2013 at 10:00am — 28 Comments

चीर हरण अब मत होने दो

दामिनी बोली मै तो जाती हूँ -
पर तुम सब मेरी बात सुनो,  
खुद ही लाज बचालो अपनी, 
चीर हरण अब मत होने दो ।
द्वापर नहीं यह कलियुग हैं,
इसमें कृष्ण नहीं आपायेंगे…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2012 at 7:30pm — 13 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नव वर्ष मंगलमय हो.. .

चिड़िया थी उत्साह में, सम्मुख था आकाश

किन्तु स्वप्न धूसर हुए, तार-तार विश्वास !

तार-तार विश्वास,  मगर जीवन  चलता है.. .…

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Added by Saurabh Pandey on December 31, 2012 at 7:30pm — 28 Comments

आओ फिर से दिए जलाएं //

माननीय अटलबिहारी जी की एक रचना की प्रसिद्ध पंक्ति "आओ फिर से दिए जलाएं "से प्रेरित 

टूटे मन के खँडहर तन में 

सूने अंतर के आँगन में …

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Added by seema agrawal on December 31, 2012 at 12:30pm — 15 Comments

चाँद सितारों से लड़ना आसान नहीं

चाँद सितारों से लड़ना आसान नहीं

क्या होगा अब हश्र कोई अनुमान नहीं

वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "

मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं................

.

जो बांटा करता है सबको जीवन रस ,

पीने को बस गरल मिला केवल उसको

जो पथ पर तेरे फूलों का बना बिछौना ,

काँटों का इक सेज मिला केवल उसको

कैसी हैं हम सन्तति , हम पूत कहा के ,

बचा सके इक जननी का सममान नहीं

वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "

मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं…

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Added by ajay sharma on December 31, 2012 at 12:30am — 4 Comments

शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .-2013

 

अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को ,

अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को .

 

अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर  आये …

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Added by shalini kaushik on December 30, 2012 at 8:33pm — 3 Comments

खुशी कैसी

पुराना जब भी जाता है नया इक साल आता है,

नया जब साल आता है उम्मीदे साथ लाता है/

 

कोई इक बार आकर के व्यथा उनसे भी तो पूछो,

जिन्हें आते हुए नव साल का इक पल न भाता है/

 

कभी तुम झाँक लो देखो जरा उस मन की तो बूझो,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 7:36pm — 13 Comments

जिंदगी से मौत ही भली

जिन्दा हूँ इसलिए की कुछ और पाप कटे ,
वर्ना ये जिंदगी से मौत ही भली। 

मिल जाते हैं हर मोड़ पर दुआ सलाम वाले ,
खैर ख्वाहों की गिनती में रहती उंगलियाँ खाली।

हर कदम पे मेरे रोड़े बहुत मिले ,
काश उनको मैं पहचानता नहीं।

मैं भी जानता बहुत को इसी जिंदगी में ,
काश रोज रोजलोग बदलते नहीं। 

जिन्दा हूँ इसलिए की सभी पाप कटे
फिर ये जिंदगी मुझे गवारा नहीं।

Added by ashutosh atharv on December 30, 2012 at 6:30pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण//डॉ प्राची

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

गुलशन उजड़ने से

सहमीं हैं कलियाँ,

पंखों को सिमटाये

दुबकी तितलियाँ,

कर्कश सा चिल्लाये भंवरा क्यों हर क्षण,…

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Added by Dr.Prachi Singh on December 30, 2012 at 2:30pm — 24 Comments

व्यंग्य रचना: हो गया इंसां कमीना... संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:

हो गया इंसां कमीना...

संजीव 'सलिल'

*

गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.

दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा गठी थी वह नवेली..

कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.

आंच इज्जत पर न आयेगी, भरोसा रखें मैडम..

जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.

आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'



कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.

आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'

'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.

मांग हो…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2012 at 9:08am — 11 Comments

गीत: झाँक रही है... संजीव 'सलिल'

गीत:

झाँक रही है...

संजीव 'सलिल'

*

झाँक रही है

खोल झरोखा

नए वर्ष में धूप सुबह की...  

*

चुन-चुन करती चिड़ियों के संग

कमरे में आ.

बिन बोले बोले मुझसे

उठ! गीत गुनगुना.

सपने देखे बहुत, करे

साकार न क्यों तू?

मुश्किल से मत डर, ले

उनको बना झुनझुना.



आँक रही

अल्पना कल्पना

नए वर्ष में धूप सुबह की...  

*

कॉफ़ी का प्याला थामे

अखबार आज का.

अधिक मूल से मोह पीला

क्यों कहो ब्याज का?

लिए बांह में बांह…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2012 at 8:56am — 8 Comments

प्रण

भोर भई अरु सांझ ढली दिन बीत गया अरु रात गई रे.

बात चली कुछ दूर गयी अरु जीवन हारत मौत भई रे,

मानत हैं नर नार प्रजा सब दामिनी नेह सहोद तई रे,

जीवन देकर ज्ञान दियो परखो नज़रें यह सीख दई रे/

 

सीख दई कछु ज्ञान दियो,पर जीव बचा नहि जान गई रे,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 12:56am — 7 Comments

चरित्रहीनता: विकराल सामाजिक समस्या

एक जोरदार झटका,

और शुरू हो गया विचारो का मंथन,

कई मंचो पर चिल्लाने लगे बुद्धिजीवी,

सियार की तरह,

कैसे हुआ ये ?

क्यों हुआ ?

अरे पकड़ो,

कौन है जिम्मेदार ?

लटका दो फांसी पर,

बना दो नपुंसक उन पिशाचो को,

जिन्होंने नरेन्द्र, गाँधी, बुद्ध की भूमि को,

कलंकित किया है |

पर कोई नहीं बात करता,

और न करना चाहता,

इस सतत, स्वाभाविक, जन्मजात मानवीय विकृति को,

जिसको हराया था गाँधी ने, नरेन्द्र ने और…

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Added by DRx Ravi Verma on December 30, 2012 at 12:30am — 4 Comments

अब सदबुद्धि का वरदान दे

दामिनी गयी दुनिया से देख,

क्या विधाता का यह लेख है |

बेटी पूछती अपना कसूर,

क्यां इंसानियत कुछ शेष है।

बेटे में ऐसा क्या है अलग,

जो देता दर्जा उसे विशेष है।

क्यों न सख्त सजा अपराध की,

गर तराजू करता इन्साफ है ।

मूक है शासक चादर ताने,

हैवानियत छू रही आकाश है ।

मानवता पर लग रहा कलंक,

सभ्य समाज का पर्दाफाश है ।

कानून बना है, और बन जाएगा,

उससे क्या संस्कार आ जायेगा।

समाज और सरकार अब जानले,

नैतिक शिक्षा जरूरी यह…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 29, 2012 at 6:30pm — 8 Comments

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