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दामिनी तुम जिंदा हो

दामिनी तुम जिंदा हो

हर औरत का हौंसला बनकर

न्याय की आवाज़ बनकर

वक्त की ज़रूरत बनकर

आस्था की पुकार बनकर

एकता की मिसाल बनकर

तुम लाखों दिलों में जिंदा हो

न्याय की उम्मीद बनकर

तुम जीवित हो दामिनी

हम सब के अंदर विश्वास बनकर

 

दामिनी

हमें तुम पर नाज़ है 

व्यर्थ नहीं जाएगा

तुम्हारा बलिदान

यह इंसाफ़ की आवाज़ बनकर

सड़कों से सत्ता की गलियारों तक

फुटपाथ से लेकर महलों तक

दब चुकी

या दबा दी गई

जुबाँ का राज़ खोलेगा

हर दामिनी के आँसुओं की कीमत 

दर्द का इलाज़

खून के एक एक बूँद का हिसाब

और अधिकारों का जवाब मागेगा

 

तुमने जो सहा दामिनी 

उसे पूरे  देश ने महसूस किया

अब ये हमारा दायित्व है

तुम्हें इंसाफ़ मिले

तुम जैसी हर दामिनी को इंसाफ़ मिले

और सबक मिले

ऐसे लोगों को

जो कभी

सत्ता के नशे में

कभी शराब के नशे में

तो कभी

ताकत के ज़ोर पर  

अपनी मर्दानगी का रौब दिखाते हैं

उन्हें सबक मिलकर रहेगा

 

दामिनी बादल छंटने को हैं

नई सुबह आने को है

वो आकर रहेगी

हमारा संकल्प पक्का है 

वह डगमगाएगा नहीं

झुकेगा नहीं

हारेगा नहीं

 

दामिनी

तुम हमारी हिम्मत बनकर

अन्याय को ललकारती रहोगी

हम सबके बीच

अपने होने का एहसास कराओगी

तुमने हम सबको

पूरे देश को जोड़ दिया है

एक कर दिया है

अब लोग

छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर

ऊँच-नीच, जाति धर्म भूलकर

एक हो चुके हैं

तुमने बता दिया                      

हमारी ज़रूरतें एक हैं

हमारा दर्द एक है

हमारे विचार एक है

हमारी आवाज़ें एक है

हमारा जज़्बा एक है

आँसुओं का सबब एक है

हमें इंसाफ़ भी एक चाहिए 

सिर्फ ओ सिर्फ एक

सजा ए मौत

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Comment

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Comment by अमि तेष on January 4, 2013 at 10:37am

दामिनी बादल छंटने को हैं

नई सुबह आने को है

वो आकर रहेगी

हमारा संकल्प पक्का है 

वह डगमगाएगा नहीं

झुकेगा नहीं

हारेगा नहीं

...सच ऐसा ही होना चाहिये ..

Comment by SUMAN MISHRA on January 4, 2013 at 1:12am

bilkul ,,,दामिनी निर्भया बनेगी अब और अपने संस्कारों से समाज की कुरीतियों में रचे बसे दरिंदों का दमन करेगी,,,,बहुत सुंदर कविता

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 3, 2013 at 10:10pm

दामिनी

तुम हमारी हिम्मत बनकर

अन्याय को ललकारती रहोगी

हम सबके बीच

अपने होने का एहसास कराओगी

तुमने हम सबको

पूरे देश को जोड़ दिया है

एक कर दिया है.................बिलकुल ठीक!

सुन्दर रचना आदरणीय नादिर खान साहब बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 2, 2013 at 4:56pm

हर जागृत संवेदनशील नागरिक के ह्रदय की आवाज को शब्द देने के लिए बधाई आदरणीय नादिर खान जी 

Comment by vijay nikore on January 2, 2013 at 4:23pm

जी हाँ, जिस प्रकार सारा देश आवाज़ में आवाज़ मिला रहा है, बलिदान नाकाम नहीं था।

रचना के लिए बधाई।

विजय निकोर

Comment by नादिर ख़ान on January 2, 2013 at 3:46pm

आदरणीय, सौरभ जी एवं सीमा जी बहुत शुक्रिया आप दोनों का आपने कविता के भावों को सराहा .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2013 at 3:36pm

आशाओं को तिल-तिल पगाती एक संवेनशील रचना.

वैसे उत्फुल्लता प्रदायी भोर इतनी शीघ्रता से होती तो क्या बात थी !  लेकिन बलिदान कोई हो कभी व्यर्थ नहीं जाता. कहते भी हैं, आशा ही जीवन है.

शुभ-शुभ

Comment by seema agrawal on January 2, 2013 at 11:21am

हमारी ज़रूरतें एक हैं

हमारा दर्द एक है

हमारे विचार एक है

हमारी आवाज़ें एक है

हमारा जज़्बा एक है

आँसुओं का सबब एक है.....सही कहा नादिर जी शायद किसी  भी क्रांतिकारी बदलाव के लिए जो मूलभूत ज़रुरत है वो है एक कंठ ...आज जिस बलिदान को सहने के बाद हम सब एक हुए हैं अब उसके उद्देश्य को पूरा करना ही है और निश्चित ही 

नई सुबह आने को है

वो आकर रहेगी

हमारा संकल्प पक्का है 

वह डगमगाएगा नहीं

झुकेगा नहीं

हारेगा नहीं....आमीन 

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