For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

      //-उलझन-//  
आक्रोश,क्रंदन,कड़वाहट
सीने में भरी झुंझलाहट..
मुझे मार डालेगी ....!!
मेरे भीतर का लावा 
फूट पड़ने को आमादा !
मेरे पपड़ाते होंठ 
मौन की मुखर बौखलाहट !
मेरे मसले हुए ख़्वाब ,
मेरे असहाय दिन ,
मेरी ज़ख़्मी रातें ..
मेरा समूचा वज़ूद भयाक्रांत है !!
विधाता तुमसे शिक़ायत है 
क्यूँ रचा  मुझे 
कच्ची माटी  से 
क्यूँ गढ़ा मुझे 
मढ़ा हृदय भावनाओं से !!
अंतस में धधकता ज्वाल ..
उठते हुए कई सवाल 
ये पीड़ित छटपटाहट !
मुझे मार डालेगी ..!!
        -भावना 

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 5, 2013 at 8:26am

भावना जी सादर,मन की पीड़ा जज्बात पूरी तरह शब्द बनकर बह निकले हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2013 at 10:12pm

भावनाजी, आपके अंतस की वेदना मुखर हो कर उभर आयी है और उसका सचेत होना अत्यंत तोषकारी है.

सादर

Comment by Pankaj Trivedi on January 3, 2013 at 8:54pm

बहुत ही उम्दा और अति संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिये दिल से बधाई देता हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 7:53pm

वजूद के बिखरे टुकड़ों से भावाक्रांत आहत मन के स्वाभाविक सवालों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2013 at 6:08pm

वाह ह्रदय की छटपटाहट का सुन्दर चित्रण देखते ही बनता है, मन ले लिखी पंक्तियाँ मन में बस गईं हार्दिक बधाई आदरणीया.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 3, 2013 at 5:53pm

आपकी अति संवेदनशील भावनाओं को नमन डॉ भावना तिवाड़ी जी

Comment by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 5:52pm

मानव मन जब छटपटाता है तो ऐसा ही होता है और जब उसकी बात कोई नहीं सुनता तो वह विधाता से ही शिकायत करता है क्‍योंकि वही है जो हमेशा हर जगह आपके पास होता है, सुंदर प्रस्‍तुति

Comment by vijay nikore on January 3, 2013 at 5:16pm

भावना जी,

इतने सुन्दर भाव पढ़ने को कम ही मिलते हैं।

विधाता तुमसे शिक़ायत है
क्यूँ रचा  मुझे
कच्ची माटी  से
क्यूँ गढ़ा मुझे
मढ़ा हृदय भावनाओं से !!
बधाई।
विजय निकोर
Comment by Gambhir Singh on January 3, 2013 at 4:31pm
नायाब सत्य अभिव्यक्ति ।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 3, 2013 at 3:44pm

संवेदनाओं से भरी इस रचना के लिए बधाई हो आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service