“अरे!! भाई.. दोनों में से एक बैल तो अभी दांत वाला है, ठीक से कीमत बता. फिर बिना दांत वाला वैसे ही लेजा, उसका क्या करूँगा मैं..? आखिर खली-भूसा भी महंगा पड़ता है..”
“पटेल भैया .. दांत वाले की ही कीमत है, बुढ्ढे बैल को मुझ से भी कौन खरीदेगा..? यहीं खूंटे भी ही मरने दो..”
नजदीक ही पटेल भैया के बीमार पिता, चारपाई पर पड़े सारी बातें सुन रहे थे...
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2015 at 9:21pm — 28 Comments
दीवारों में दरारें-4
मीना का घर रामनवमी के दिन
“मीना,भोग तैयार है |- - - जाS ,लडकियों को बुला ला|”
“जी मम्मी |”
“अरी मीना,यूँ सुबह-सुबह कहाँ चली ?” चौखट पर बैठे अख़बार पढ़ रहे दादा जी ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा
“भोग लगाने के लिए कन्याओं को बुलाने |”मीना ने धीमी आवाज़ में कहा
“अच्छा-अच्छा,जा जल्दी जा,पड़ोस में छोटी लड़कियाँ वैसे ही कम हैं अगर दूसरे लोग उनके घर पहले चले गए तो हमें ईंतज़ार करना पड़ेगा |”
“जी,दादा जी |”कहकर वो…
ContinueAdded by somesh kumar on March 22, 2015 at 9:00pm — 8 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 22, 2015 at 8:00pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
मोतियों को गूंथकर धागा सदा हँसता गया
जंग खाये रास्तों को कांरवाँ चमका गया
ओस से भीगे बदन पर थी नजर खुर्शीद की
प्यास उसकी खुद बुझाकर फूल इक खिलता गया
बन गये अफ़साने कितने और नगमें जी उठे
जब जमीं ने सर उठाया आसमां झुकता गया
कहकशाँ में यूँ नहाई चाँदनी जल्वानशीं
नूर उसका देखकर महताब भी पथरा गया
हुस्न की मलिका कली की देख वो अँगड़ाइयां
चूम कर रुख्सार उसके दफअतन भँवरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 22, 2015 at 6:30pm — 24 Comments
नया बना भवन अपने रूप और बनावट पर मुग्ध हो रहा था | तभी अंदर से ईंट ने आवाज़ दी " क्यों इतने आत्ममुग्ध दिख रहे हो , रूपवान तो हम भी हैं "|
" हुँह , तुम्हारा रूप किसे दिखता है , सब तो मुझे ही देखते हैं ", भवन ने इतराते हुए कहा |
छड़ ने , कंक्रीट ने भी यही बात दुहरायी , भवन ने वैसे ही जवाब दिया |
ईंट बोली गर मैं हट जाऊं ? कंक्रीट बोला मैं पकड़ ढीली कर दूँ ? छड ने कहा मैं टेढ़ी हो लटक जाऊं?
भवन थोड़ा सोच में पड़ गया |
" तुम इसलिए खूबसूरत दिख रहे हो क्योंकि तुममे हमने अपनी खूबसूरती…
Added by विनय कुमार on March 22, 2015 at 12:18am — 26 Comments
२२१२ २२१२ २२१२
खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥
इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,
सब चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥
सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥
निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥
कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥
मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने…
Added by Nazeel on March 21, 2015 at 9:30pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 21, 2015 at 9:17pm — 10 Comments
ताटंक छन्द,,,,,,
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आग लगी है नंदनवन मॆं,पता नहीं रखवालॊं का,
करॆं भरॊसा अब हम कैसॆ,कपटी दॆश दलालॊं का,
भारत माता सिसक रही है,आज बँधी ज़ंज़ीरॊं मॆं,
जानॆं किसनॆ लिखी वॆदना,उसकी हस्त लकीरॊं मॆं,
जिनकॊ चुनकर संसद भॆजा, चादर तानॆ सॊतॆ हैं,
संविधान कॆ अनुच्छॆद सब, फूट-फूट कर रॊतॆ हैं,
आज़ादी कॊ बाँध लिया अब, भ्रष्टाचारी डॊरी मॆं,
इन की कुर्सी रहॆ सलामत, जनता जायॆ हॊरी मॆं,
घाट घाट पर ज़ाल बिछायॆ, बैठॆ यहाँ मछॆरॆ हैं,
दॆख मछरिया…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 21, 2015 at 1:14pm — 10 Comments
नूतन वर्ष सुहाना आता
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नूतन वर्ष सुहाना आता
माता की गोदी में चढ़ कर
मन ही मन हर्षाता
दिनकर चुनरी लाल उड़ाता
शीतल पवन झकोरे लाता
कच्ची कच्ची धूप मनोहर
मलिया शगुन सुनाता
बगिया की गोदी में खिल कर
दिवस मल्हारें गाता ।
कलियाँ खिल कर युवा हो गईं
झोली भर कर सुगंध ले आईं
अंगनाई उर महके चन्दन
तितली काया सौरभ धोई
भोर की गोदी सूरज चढ़ कर…
Added by kalpna mishra bajpai on March 21, 2015 at 9:30am — 12 Comments
नीली बत्ती की एक अम्बेसडर कार तेजी से आकर रुकी और ‘साहब’ सीधा निकलकर अपने केबिन में चले गए ! पीछे – पीछे ‘बड़े-बाबू’ भी केबिन की तरफ भागे ! तभी एक आवाज आई ,“ क्या बात है ‘बड़े-बाबू’ बड़े पसीने से लतपथ हो , कहाँ से आ रहे हो ?”
“ पूछो मत ‘नाज़िर भाई’ , नए ‘साहब’ के साथ गाँव- गाँव के दौरे पर गया था, राजा हरिश्चंद्र टाईप के लग रहें हैं, मिजाज भी बड़ा गरम दिख रहा है, आपको भी अन्दर तलब किया है , आइये , मनरेगा, जल-संसाधन और बजट वाली फ़ाइल भी लेते हुए आइयेगा ! “
“ठीक है, आप चलिए मैं आ रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 21, 2015 at 4:04am — 22 Comments
आँगन के ऊपर बना ,सरिया का आकाश
दाना नीचे है पड़ा खा पाती मैं काश ॥
अंबर पर उड़ते मिले ,चतुर सयाने बाज
जीवन कितना है कठिन ,हम जैसों का आज ॥
सूरज दादा भी तपें ,करें गज़ब का खेल
सूख गए वन बावड़ी,बची न कोई बेल ॥
एक दिवस में क्या मिले,कैसे रखलूँ धीर
सोच सोच ये बात को,मन में उठती पीर ॥
मन करता है आज भी,आँगन फुदकूँ जाय
झूला झूलूँ तार पर......मुन्नी लख हर्षाय ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 21, 2015 at 12:00am — 13 Comments
Added by Samar kabeer on March 20, 2015 at 10:56pm — 28 Comments
212 212 212 212
आज दिल की कहानी छुपा ले गयी
आँख से नींद, यादें चुरा ले गयी
कैस खुद को भुलाए कोई तू बता
फिक्र तेरी ज़हन को बहा ले गयी
तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे
दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी
शीत की ये लहर टीस बन कर उठी
हाय दिल की अगन को बढ़ा ले गयी
हसरतें अब ये दिल से जुदा हो न हो
मौत की ये रवानी खुदा ले गयी
वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”
आस जीवन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 3:30pm — 10 Comments
व्यथित है पतितपावनी
अपनी दशा पर आज
प्रश्न पूछती यही सबसे हजार बार
की है किसने दुर्गति ये
कौन है इसका जिम्मेदार ?
राजा, रंक हो या संत
दिया सबको समान अधिकार
सिंचित कर धरा को
भरा संपदा जिसने अपार
विष भर उसकी रगों में फिर
धकेला किसने उसे मृत्यु के द्वार ?
स्नान आचमन से जिसके देव प्रशन्न होते हैं
मुख में इक बूँद ले लोग
स्वर्ग गमन करते हैं
आँचल में उसी के शवों को छुपा
ढेरों मैल बहाया है
दामन पर…
Added by Meena Pathak on March 20, 2015 at 3:24pm — 18 Comments
प्रधान मंत्री का कारवाँ चला जा रहा था कि बीच में एक जंगल से गुजरते हुए साइड विंडो से अचानक दिखाई दिया, कुछ स्त्रियाँ सिर पर लकड़ियों की गठरिया लिए जा रही थीं उनमे एक वृद्धा जो पीछे रह गई थी अभी गठरिया बाँध ही रही थी कि प्रधान मंत्री जी ने गाड़ी रुकवाई और उस वृद्धा से बातचीत करने पंहुच गए.|
“किस गाँव की हो माई? इस उम्र में ये काम!.. तुम्हारे बच्चे’?
“क्यूँ नहीं साब जी, एक बिटवा है जो फ़ौज में है, पोता है, बहू है” वृद्धा बोली.
“बेटा पैसा तो भेजता होगा”? “हाँ जी, जब से…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2015 at 11:20am — 39 Comments
डगर कठिन है
मंजिल से पहले पग रुकता है
फिर हौसलों के सहारे
एक-एक पग आगे बढता हूँ
गिरता हूँ, संभलता हूँ
क्या?
मंजिल भी
मेरे इस परिश्रम को देख रही होगी
क्या?
वह भी जश्न मनायेगी
मेरे वहाँ पहुँचने पर
कभी-कभी
ये उत्कण्ठा भी उत्पन्न हो जाती हैं
फिर विचार आता है!
मंजिल जश्न मनाये या ना मनाये
उसे पा तो लूँगा, उसे चुमूँगा
दुनिया को दिखाउँगा कि
इसी के लिए मैने अथक प्रयास किया है
और अनवरत ही चलता रहता हूँ
इक-इक पग बढाते…
Added by Pawan Kumar on March 19, 2015 at 7:20pm — 8 Comments
पुरवा बयार सी
मद भरे ज्वार सी
फूलो में जवा सी
स्पर्श में हवा सी
महुआ की गंध सी
पाटल सुगंध सी
आमों की बौर सी
करौंदे की झौर सी
नीम की महक सी
पलाश की दहक सी
टूटे मोर पंख सी
पूजागृह के शंख सी
मंदिर के दीप सी
मोती भरी सीप सी
जल भरे डोल सी
विद्युत् कपोल सी
लहराते व्याल सी
दृप्त इंद्रजाल सी
पावस की धार सी
राधा के प्यार सी
पतझड़ के अंत सी
सौरभ बसंत…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 19, 2015 at 6:30pm — 25 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 19, 2015 at 5:00pm — 16 Comments
ए-हुस्न-जाना..
दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...
अब मुझको आया कुछ आराम है।
कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
दिल अब तुझसे बेजार है..
हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।
हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।
ए-हुस्न-जाना..
दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...
मालूम मुझको तेरा मकाम है।
के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 19, 2015 at 4:00pm — 24 Comments
2122 1212 22
ज़िन्दगी दी ख़ुदा ने प्यारी है
चाहतें पर बहुत उधारी है
इस तरफ़ हम खड़े उधर अरमाँ
बेबसी बस लगी हमारी है
ख़्वाब तो रोज़ ही बुनें, लेकिन
हर हक़ीकत लिये कटारी है
ख़र्च का क़द बढ़ा है रोज़ मगर
रिज़्क की शक़्ल माहवारी है
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है
फुनगियों में लटक रहे अरमाँ
कोई सीढ़ी नहीं , न आरी है
तिश्नगी अश्क़ भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 2:00pm — 29 Comments
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