Added by Dr. Vijai Shanker on March 29, 2015 at 4:54pm — 20 Comments
221 2121 1221 212
जो होना था फ़रेब का अंजाम हो गया
इक मुह्तरम जहान में बदनाम हो गया
आफ़ाक़ के सफर में नहीं मिलती मंज़िलें
हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया
जलने लगे चराग सितारे चमक उठे
दीदारे ताबे हुस्न सरे शाम हो गया
बेदार शब तमाम जला चाँद अर्श पर
जाहिर जुनूने इश्क़ सरे बाम हो गया
तेरी मुहब्बतों से मुनव्वर किया दयार
आलम फ़रोज़ शम्स को आराम हो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 29, 2015 at 8:30am — 13 Comments
22/22/22/22 (सभी संभव कॉम्बीनेशंस)
यादो के जब पहलू निकले
जंगल जंगल आहू निकले. आहू-हिरण
.
काजल रात घटाएँ गेसू
उसके काले जादू निकले.
.
जज़्बातों को रोक रखा था
देख तुझे, बे-काबू निकले.
.
चाँद मेरी पलकों से फिसला
आँखों से जब आँसू निकले.
.
तेरे ग़म में जब भी डूबा,
मयखानों के टापू निकले.
.
भीग गया धरती का आँचल
अब मिट्टी से ख़ुशबू…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2015 at 8:30am — 22 Comments
2122—1122—1122—22
रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे
रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे
हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी
तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे
नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर
इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे
जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव
भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे
एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन
दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे
जानकी नाथ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 28, 2015 at 11:16pm — 9 Comments
कहें भी तो कहें किससे जला दिल वो दिखाता है
मिला कर जाम में आँसू मुझे हरदम पिलाता है
मिटाने को अगर तुम गम चले हो जाम पीने तो
न पीना तुम कभी इसको बहुत ये दिल जलाता है
न मैखाना कभी देखे समझ लो कुछ न देखे तुम
निराली है अदा इसकी गज़ल गूगॉं सुनाता है
बड़ी बेकार दुनिया है नहीं है प्यार अब इसमें
बिना मतलब यहाँ कोई न हाथो को बढ़ाता है
न रखनी है मुझे यारी कभी धीरज से मानव अब
जिसे मैं प्यार करता हूँ उसे…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on March 28, 2015 at 7:23pm — 5 Comments
“कार से एक लड़की उतरी और बस स्टैंड की तरफ बढ़ी, एक बुजुर्ग से बोली, अंकल ये ‘मौर्या शेरेटन’ जाने का रास्ता किधर से है, बेटा आगे से जाकर दायें हाथ पर मुड़ जाना, जी शुक्रिया, तभी उसके कानों में एक मधुर संगीत गूँज उठा, “ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी....! “
“उसने पलट कर देखा, रंगीन चश्मा लगाए हुए एक लड़का गा रहा था, बस देखते ही लड़की का पारा गर्म हो गया और तभी उसने उसे एक झापड़ दे मारा, ये ले!”
“बस इतना देखते ही वहाँ खड़े लोग उस पर टूट पड़े और चप्पल, लात,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 28, 2015 at 3:12pm — 8 Comments
निशा की गहराती निद्रा में ,
गूँजा था जब ‘ माँ ‘ का स्वर |
चहुँ दिशाओं में देखा मैंने ,
न पाया कोई , अंदर बाहर न अम्बर ||
बोली वो पुन: आर्द्र स्वर में ,
माँ मैं तेरी अजन्मी बेटी |
तेरे अंतर्मन की व्यथित दशा ,
पलभर को भी न सोने देती ||
तेरे अश्रु की अविश्रांत धारा ,
जता रही घटना सारी |
कल होगा मेरा दुर्दांत अंत ,
भ्रूण हत्या की है तैयारी ||
जीवन के अंकुर…
ContinueAdded by ANJU MISHRA on March 28, 2015 at 12:35pm — 7 Comments
१२२२/१२२२/१२२
किसी की आँख का क़तरा नहीं हूँ
ग़ज़ल में हूँ मगर मिसरा नहीं हूँ.
.
न जाने क्या करूँगा ज़िन्दगी भर
तेरे सदमे से मैं उबरा नहीं हूँ.
.
अना से आपकी टकरा गया था
मैं टूटा हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ.
.
खुदाया हश्र पर नरमी दिखाना
मैं काफ़िर हूँ प् ना-शुक्रा नहीं हूँ.
.
सफ़र में हूँ, कोई सूरज हो जैसे
कहीं भी एक पल ठहरा नहीं हूँ.
.
तराशेगी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 28, 2015 at 10:08am — 12 Comments
आज झुरमुट से उजास में
शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात
तुम से की, शरमाते हुए ,
आज कितने दिनों के बाद
तुमसे अकेले में की मुलाक़ात
और अपलक रही थी निहार…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 9:30am — 6 Comments
२१२२ २१२२ १२१२२
मेरी दुनिया रहने दो अपनी ख़्वाब आँखें
दो जहाँ हैं मेरी ये दो गुलाब आँखें
***
अब तू सम्हल जिंदगी होश खो चुके हम
साकिया ने है पिला दी शराब आँखे
**
ढूंढ लेंगे हम.....रहो पास तुम अगर बैठे
सब सवालों का देती हैं जव़ाब आँखें
***
मेरी मोहब्बत इबादत नफ़स-नफ़स है
रखती हर पल हैं मेरा सब हिसाब आँखें
**
तुम पलक के मस्त पन्ने उलटते जाओ
पढ़ रहा…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 27, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “
अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट, अपनी कोख से बहुत ही छोटे लग रहे थे..
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 10:52am — 42 Comments
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया
था रब्त मुझसे भी कभी वो मान तो गया
आवारगी वही रही है आशिकी वही
दीवानेपन की इन्तहा को जान तो गया
दिल थे जिगर भी थे कभी वो और ही थे दिन
अब तो मशीनें रह गई इन्सान तो गया
कट तो रहा है वक्त यूं तेरे बगैर भी
जीने का जिंदगी से वो सामान तो गया
मज़हब भी चल रहे हं सियासत की राह पर
ईमान से पहले सा वो ईमान तो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Added by charanjit chandwal `chandan' on March 27, 2015 at 7:00am — 1 Comment
हर फूल खुश्बू नहीं देता,हर कली फूल नहीं बनती
हर चमकता रात में तारा नहीं होता ,हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता
जरा संभल के मेरे दोस्त हर बात सच्ची नहीं होती
हर मीठा स्वर अच्छा नहीं होता, हर खड़ी जीज सहारा नहीं होती,
हर खून का रिश्ता अपना नहीं होता ,हर दोस्त सच्चा नहीं होता .
जरा सभंल........
हर रात काली नहीं होती,हर दिन उजाला नहीं होता,
हर रात दिवाली नहीं होती, हर रोज होली नहीं होती.
जरा संभल......
हर लाल कपड़ा कफ़न नहीं…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on March 26, 2015 at 8:44pm — 14 Comments
गरीब है
पर स्वाभिमानी बहुत है
सब्जी की ढकेल
शहर की कोलोनियों में
घुमाता है
जोर जोर से सब्जियों के
नाम की आबाज
लगाता है
आखिर में ले लो साहब
कहकर जरूर चिल्लाता है
कुछ आदतें हो गयी हैं
उस पर हावी
कल की सब्जियों को भी
कह जाता है ताजी
कुछ सब्जियाँ
पूरी बिक चुकी होती हैं
उनका भी नाम पुकार जाता है
बीच बीच में पानी के छींटों से
सब्जियों को सँवार जाता है
ऊँचे लोगों की नीची हरकतों को
बखूबी पहचानता है
लाखों…
Added by umesh katara on March 26, 2015 at 7:46pm — 24 Comments
भगवान किसी को लडकी न दे I लडकी दे तो उसे जवान न करे I जवान करे तो उसे खूबसूरत न बनाये I एक अदद जवान, खूबसूरत और कुमारी कन्या का खुशनसीब बाप होने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ I पहले मैं समझता था की स्वस्थ और सुन्दर लडकी का पिता होना एक गौरव की बात है I इससे न केवल उसका विवाह करने में आसानी होगी बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसे नर्तकी या अभिनेत्री भी बनाया जा सकता है और यदि उसमे कामयाबी न मिली तो किसी प्राईवेट फर्म में रिसेप्शनिस्ट का चांस तो पक्का ही है I लेकिन मेरे इन सभी सपनो पर उस समय…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 26, 2015 at 7:00pm — 18 Comments
मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,
जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !
मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं,
एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !
मैं हूँ बीमारे गम …………
मेरे महबूब ने मुस्कराते हुए ,
नकाब चेहरे से अपने सरका दिया !
चौदहवीं का चाँद रात शरमा गया,
चौदहवीं का चाँद
जितने तारे थे सब टूटकर गिर पड़े !
मैं हूँ बीमारे गम …………
जिक्र जब छिड़ गया उनकी अंगडाई का,
शाख से फूल यूँ ,टूट कर गिर पड़े…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:00am — 16 Comments
कहते हैं इल्ज़ाम छुपाकर रक्खा है
मैंने तेरा नाम छुपाकर रक्खा है.
.
झाँक के देखो मेरी इन आँखों में तुम
अनबूझा पैग़ाम छुपाकर रक्खा है.
.
शायद वो हो मुझ से भी ज़्यादा प्यासा
उसकी ख़ातिर जाम छुपाकर रक्खा है.
.
जिसको तुम सब कहते हो ईमाँ वाला,
उसने अपना दाम छुपाकर रक्खा है.
.
आया है वो आज जुबां पर गुड लेकर
शायद कोई काम छुपाकर रक्खा है.
.
मस्जिद की…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 11:21pm — 24 Comments
खुशियों में होते है सब हमसफ़र..
गम में साथ कोई खड़ा नही होता!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
जाने कितनी खायी ठोकरें
लाख रंजिश की गम ने..!
सामने खींचकर बड़ी लकीर
बड़ा बनना सीखा नही हमने..!!
यही करना था तो सियासत आजमाई होती!
हाथ में कलम की न रोशनाई होती..
जंग अदब की मै लड़ा नही होता!!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
जिसने रची है सारी ही सृष्टि!
उसने है…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 25, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
अंतिम शब्द
द्वार खुला था
तुम दहलीज़ पर अहम् के जूते उतार
सुस्मित शरद चाँदनी-सी कभी
कभी भोर की प्रथम किरण बनी
बाँहें फैलाए घर के भीतर चली आई
तुमने जिसे मंदिर बनाया
वह आँसू-डूबा उल्लास-भरा
मेरा मन था।
मन पावन था पावन रहा
कब कहा मैंने भगवान हूँ मैं
तुमने मुझको भगवान बनाया
और अब असीम बेरहमी से सहसा
जूतों समेत मेरे सीने पर चल कर
तुम्हारा प्रहार पर प्रहार ... उफ़ !
भीतर…
ContinueAdded by vijay nikore on March 25, 2015 at 12:30pm — 30 Comments
बहुत बार समझाया
कभी दिल को फुसलाया
मगर खुद ही ना समझ पाया
मैं हूँ क्यों यहाँ पर
बस रोज़ वो अँधेरे
और तेरी यादें के
दहकते अंगारे
परवानों सा जलने की
दुआ करता हूँ
कुछ हसीन सपनों का व्यापार
अपनी नींदों से
किया करता हूँ
दिल में बसी मूरत को
पलकों में छिपा रखता हूँ
तेरी यादों को
कागज पे अक्सर उतार देता हूँ
जब सूने पन्ने पे तेरा नाम आता है
क्या जानू क्यूँ पन्ने को
अहंकार हो जाता है
और मुझे फिर से प्यार हो जाता है…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:48am — 22 Comments
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