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तुम्हारी मुझे जुस्तजू न होती...

 बेहतर था

कुछ कमी न होती,

आँखों में

यूँ नमी न होती...

तुम न आते गर

‘’जान ‘’यूँ

अधूरी न होती...

बंद ही रहता

अँधेरा कमरा,

रौशनी की

फिर गुंजाइश न होती...

न देखते सपने

न पंखों की

उडान होती...

फूंका न होता

दिल अपना,

तुम्हारी हाथ सेकने की

जो फरमाइश न होती...

तुम्हारा ख्याल ही जो

झटक दिया होता,

मेरे प्यार की

फिर पैमाइश न होती...

प्यार न…

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Added by Priyanka singh on October 25, 2013 at 6:27pm — 21 Comments

क्षणिकाएं(राम शिरोमणि पाठक)

१-मीठा ज़हर

आज फिर खाली हाथ लौटा घर को

मायूसी का जंगल उग आया है

चारों तरफ

फिर भी मै

हँस के पी जाता हूँ दर्द का मीठा ज़हर

२- एहसान

एक एहसान कर दो

जाते जाते

समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।

आज जी भर कर सोना है मुझे

३-महान

सम्मान बेचकर भी

ह्रदय अब तक स्पंदित है

आप महान हो

४-तकिया

अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे

पता है क्यूँ?…

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Added by ram shiromani pathak on October 25, 2013 at 4:30pm — 32 Comments

ग़ज़ल : वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है

बह्र : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

 

मेरे संगदिल में रहा चाहती है

वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है

 

सदा सच कहूँ वायदा चाहती है

वो शौहर नहीं आइना चाहती है

 

उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ

नज़र उम्र भर की सजा चाहती है

 

बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने

चरागों को जब जब हवा चाहती है

 

न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती

मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 25, 2013 at 1:50pm — 25 Comments

कुण्डलिया

रावण जितने देश में घूम रहे हैं आज
हर बाला सहमी हुई, फैला रावण राज
फैला रावण राज, माँ बहनों को बचाओ
कपटी, नेता, भ्रष्ट ,जेल इन्हें पहुँचाओ
नहीं जमानत होय, बेल लें पापड़ कितने
घूम रहे हैं आज देश में रावण जितने //

.............मौलिक व अप्रकाशित ........

Added by Sarita Bhatia on October 25, 2013 at 1:38pm — 15 Comments

इक शख़्स इस हयात का नक़्शा बदल गया

इक शख़्स इस हयात का नक़्शा बदल गया।

दिल के चमन का रंगो बू सारा बदल गया॥

सोचा था अब न प्यार करेगा किसी से दिल,

उससे मिला तो सारा इरादा बदल गया॥

महफिल में हो रही थी उसी की ही गुफ़्तगू,

देखा उसे तो सबका ही चेहरा बदल गया॥

जबसे उसे सहारा किसी और का मिला,

उस दिन से बातचीत का लहज़ा बदल गया॥

अब रात दिन ख़यालों में ख़्वाबों में है वही,

अंदाज़ मेरे जीने का सारा बदल गया॥

आए गए हज़ार मगर कुछ नहीं…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on October 25, 2013 at 1:00am — 16 Comments

दीपावली : एक

घर में वह नोट कितना बड़ा लग रहा था , मगर बाज़ार में आते ही बौना हो कर रह गया । वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या खरीदें , क्या न खरीदें । मुन्ना निश्चय ही पटाखे - फुलझड़ियों का इंतज़ार कर रहा होगा । उसकी बीवी खोवा, मिठाई , खील- बताशे और लक्ष्मी - गणेश की मूर्तियों की आशा लिए बैठी होगी, ताकि रात की पूजा सही तरीके से हो सके ।



वह बड़ी देर तक बाज़ार में इधर उधर भटकता रहा । शायद कहीं कुछ सस्ता मिल जाए । मगर भाव तो हर मिनट में चढ़ते ही जा रहे थे । हार कर उसने कुछ भी खरीदने का इरादा छोड़ दिया ।…

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Added by ARVIND BHATNAGAR on October 24, 2013 at 9:00pm — 23 Comments

शाम

मैं लेटा हूँ घास पर / सूखी भूरी घास 

जिसके होने का एहसास भर है

 

जमीन गरम है

लेकिन लेटा हूँ 

धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी

तपन की अनुभूति

 

उड़े जा रहे हैं

पंछी एक ओर 

शरीर के नीचे

रेंगती चींटियाँ 

पास ही खेलते कुछ बच्चे 

कुछ लोग भी

इधर-उधर छितरे, घूमते-बैठे

 

मैं निरपेक्ष

लेटा तकता आसमान

कि कभी टूटकर गिरेगा

और धरती का

रंग बदल जाएगा

             …

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Added by बृजेश नीरज on October 24, 2013 at 8:00pm — 29 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जो भी है आपका करम है सब ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

 2122       1212      22

ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में

आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में

वक़्त रद्दे अमल का आया तो 

तुम रहम खोजते  हो क़ातिल में

कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी

और क्या खोजते हो…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 7:00pm — 37 Comments

ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,

मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,



निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,

सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,



दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,

जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,



चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,

दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 4:30pm — 25 Comments

ग़ज़ल- सारथी || दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये ||

दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये 

बस जरा सा सनम मुस्कुरा दीजिये /१ 

लूट ले जायेगा कोई रहजन सनम 

आप दिल को हमीं में छुपा दीजिये /२ 

आखरी साँस भी ले गया डाकिया 

पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये /३ 

नींद को ठंड लग जाएगी ऐ खुदा   

लीजिये जिस्म मेरा उढ़ा दीजिये /४  

लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर 

पांव उसके दबाकर सुला दीजिये /५…

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Added by Saarthi Baidyanath on October 24, 2013 at 1:30pm — 22 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : डंक (गणेश जी बागी)

राहुल और निधि कब एक दूसरे के हो गये पता ही नही चला | दोनों ने साथ साथ जीने मरने की कसमें खायीं थीं । निधि के घरवाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे, किन्तु निधि की जिद के आगे उनकी एक न चली और अंतत: उन्हें शादी के लिए अपनी रज़ामंदी देनी ही पड़ी।



निधि उस दिन ऑफिस से जल्दी ही निकल गई, वह राहुल को यह खुशखबरी देना चाहती थी । निधि दरवाजे की घंटी बजाने ही वाली थी कि राहुल के कमरे से आ रही तेज आवाज़ों को सुन रुक गई,

"अरे राहुल, शादी की मिठाई कब खिला रहा है…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2013 at 12:30pm — 31 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- वक़्त ज़ाया करो, न राहों में....

२१२२ १२१२ २२   

.

वक़्त ज़ाया करो, न राहों में,

मंजिलों को रखो निगाहों में.

.

फूल ही फूल दिल में खिलते है,

आप होते हो जब भी बाहों में.

.

है नुमाया पता नहीं क्या कुछ,

और क्या कुछ छुपा है चाहों में.

.

तख़्त ताज़ों को ये उलट देंगी,

वो असर है मलंग की आहों में.

.

है डराती मुझे मेरी वहशत,

तू मुझे ले ही ले पनाहों में.

.  

आज है वक़्त तू संभल नादां,

क्यूँ फंसा है बता गुनाहों में.

.

साथ देने लगे हो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 11:47am — 14 Comments

कविता --- मेरे प्रियवर....................... अन्नपूर्णा

मेरे  प्रियवर .............

स्नेह सिक्त हृदय

तुम रहते  प्राण बन

जीवन की अविरल धारा

तुम रहते अठखेलियाँ बन

तुम मेरे प्रियवर.............

मद युक्त नयन

तुम रहते काजल रेख बन

शीश पर चमकते

यों सिंदूरी रेख बन

तुम मेरे प्रियवर.....................

तुमसे ही है जीवन

हर शाम सिंदूरी

फूलों सा महके सिंगार

संग तुम्हारा  अनुपम फुलवारी ॥

मेरे प्रियवर.................

.

अन्नपूर्णा…

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Added by annapurna bajpai on October 24, 2013 at 10:30am — 22 Comments

हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)

हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)

//1//



कन्या कुमारी

फैशन की बीमारी

पार्क घुमा री!

//2//



सुन्दर बेटी

भारतीय संस्कार

फूटती ज्वाला।

//3//



बेटी गहना

जुआरी क्या कहना

नेता आर्इना।

//4//



जय माता दी!

धार्मिक बोलबाला

देश में हिंसा।

//5//



लोक तंत्र क्या?

बलवा-व्यभिचार

जनता उदास।

//6//…



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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2013 at 8:30am — 20 Comments

यदि मैं भी रावण बन जाऊँ

यदि मैं भी रावण बन जाऊँ।

इन्द्रिय लोलुप इन्द्र विरुद्ध मैं, इन्द्रजीत सुत जाऊँ।

धरे लूट धन धन कुबेर जो, उसको अभी छुड़ाऊँ॥

भंग करे जो भगिनि अस्मिता, अंग भंग करवाऊँ।

घर के भेदी को तत्क्षण मैं, घर से दूर भगाऊँ॥

आँख उठाये देश तरफ वो, सिर धड़ से अलग कराऊँ।

बैरी बनकर ईश भी आयें, उनसे बैर उठाऊँ॥

नहीं देश में घुसने दूँ मैं, दसों शीश कटवाऊँ।

कर विकास निज मातृभूमि का, लंका स्वर्ण बनाऊँ॥

वैज्ञानिक तकनीकि उन्नति, स्वर्ग धरा पर लाऊँ।

शनि सम क्रूर जनों को अपने,… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 24, 2013 at 8:10am — 9 Comments

पुराना दरख्त

ये जो पुराना दरख्त है 

इससे बहुत पुराना संबंध है 

पंक्षी भी अब रात गुजारने  नहीं आते

आते हैं कुछ देर ठहर के चले जाते 

इसे अब पानी भी अब कोई नहीं देता

अब तो इसकी कोई छांव भी नहीं लेता

बड़ी रौनक थी आँगन मे इसकी 

बड़ी चमक थी चेहरे पे इसकी 

बूढ़ा दरख्त इसे याद करके काँप गया ... 

इक थरथर्राहट सी करी ....

और शांत हो गया 

ये जो पुराना दरख्त है ... 

इससे बहुत पुराना संबंध हैं .... ।

"मौलिक…

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Added by Amod Kumar Srivastava on October 24, 2013 at 6:30am — 12 Comments

लोकतंत्र (विविधि छंद)

दोहा

बज रही बड़ी जोर की, चुनावी शंखनाद ।

निंद उड़े जहां उनकी , तुम दिल रख लो हाथ ।।

सोरठा

लोकतंत्र पर्व एक, उत्सव मनाओं सब मिल ।

बढ़े देश का मान, कुछ ऐसा करें हम मिल ।।

ललित

वोट का चोट करें गंभीर, अपनी शक्ति दिखाओं ।

जो करता हो देश हित काज, उनको तुम जीताओं ।।

गीतिका

देश के मतदाता सुनो, आ रहा चुनाव अभी ।

तुम करना जरूर मतदान, लोकतंत्र बचे तभी ।।

राजनेता भ्रश्ट हों जो, मुॅह बंद…

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Added by रमेश कुमार चौहान on October 23, 2013 at 10:36pm — 5 Comments

भोर होने को है...!

अचानक कुछ होने का भय

कभी-कभी आत्मा को क्या पता क्यूँ..?

पहले से बोध करा देता है, कभी कभी सहसा

अचानक

ऐसा न हो कि

न छत्र न छाया न प्रथम सीढ़ी

और न ही कोई.....!

कहीं वक़्त का खोखलापन

मेरी आत्मा की गंभीरता

को तहस-नहस न कर दे..

मत भय खा चुप..! चुप व शांत रह

तू डरेगा तो क्या होगा..?

मत डर, कुछ नही होगा..रे

बस शांत होकर पीता जा..पीता जा

तुझे कभी कुछ नही होगा

लगने दे इल्जाम और लगाने दे

तू तो…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 10:30pm — 34 Comments

आज का रावण

युगो युगो से जल रहा है रावण

मगर रावण आज तक मरा नही

जलते दिखाया रावण गत साल बाबा ने

मगर रावण अभी मरा नहीं

लूट रहा सरे राह सीता कि इज्‍जत

घूम रहा खुले आम है

मगर ,राम का अभी पता नहीं

युगो से जल रहा रावण

मगर आज तक रावण मरा नहीं

चला रहा तीर की जगह गोलीया अब वह ...

निर्दोश की जान लेने केा

औरतो केा बेवा बच्‍चों केा अनाथ कर रहा है

मगर ,राम का अभी पता नहीं…

Continue

Added by Akhand Gahmari on October 23, 2013 at 9:00pm — 7 Comments

गजल - जिनके मुँह में नहीं बतीसी भार्इ साहब

जिनके मुँह में नहीं बतीसी भार्इ साहब ,

चले बजाने वो भी सीटी भार्इ साहब।

.

भारी भरकम हाथी पर भारी पड़ती है ,

कभी - कभी छोटी सी चींटी भार्इ साहब।

.

काट रहे हैं हम सबकी जड धीरे-धीरे ,

करके बातें मीठी - मीठी भार्इ साहब।

.

मंहगार्इ डार्इन का ऐसा कोप हुआ है ,

पैंट हो गर्इ सबकी ढीली भार्इ साहब।

.

प्रजातंत्र में गूँगी लड़की का बहुमत से ,

रखा गया है नाम सुरीली भार्इ साहब।

.

सबको रार्इ खुद को पर्वत समझ रहा…

Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2013 at 8:30pm — 10 Comments

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